वेब सीरीज ‘बॉम्बे बेगम’ में बच्चों के जरिए नशाखोरी और अश्लीलता परोसने को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने राज्य सरकार और मुंबई पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया है। आयोग के निर्देश पर न तो नेटफ्लिक्स ने कदम उठाया और न ही मुंबई पुलिस ने ओटीटी के खिलाफ कार्रवाई की। इसके बाद आयोग ने सख्त रुख अपनाया है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने वेब सीरीज ‘बॉम्बे बेगम’ को लेकर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है। नेटफ्लिक्स पर दिखाई जाने वाली इस वेब सीरीज में बच्चों के जरिए नशाखोरी और अश्लीलता परोसने की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए आयोग ने 25 मई को नोटिस जारी किया। इससे पूर्व आयोग ने नेटफ्लिक्स से सीरीज का प्रसारण तत्काल बंद करने और 24 घंटे के भीतर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। लेकिन उसने आयोग के निर्देशों का पालन नहीं किया। इसके लगभग एक माह बाद आयोग ने 12 अप्रैल को मुंबई पुलिस से नेटफ्लिक्स के खिलाफ मामला दर्ज करने को कहा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंत में आयोग ने महाराष्ट्र के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) मनु कुमार श्रीवास्तव को नोटिस जारी कर तीन दिन में रिपोर्ट देने को कहा है।
आयोग को दो ट्विटर हैंडल से शिकायत मिली थी कि ‘बॉम्बे बेगम’ वेब सीरीज में बच्चों को स्कूल में मादक पदार्थ तथा अश्लील फोटो व सेल्फी लेते हुए दिखाया गया है। आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा है कि बच्चों द्वारा इस तरह के कृत्यों की प्रस्तुति, चित्रण और महिमामंडन करना तथा किसी भी मीडिया मंच, इंटरनेट, ओटीटी आदि के जरिए भारत में इसे प्रकाशित करना बच्चों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिए बने कानूनों की भावना के विरुद्ध है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसलिए ऐसे प्रकाशन को तत्काल रोकने के लिए कदम उठाया जाना चाहिए। साथ ही, कहा कि इस तरह की सामग्री वाली सीरीज न केवल बच्चों के मासूम दिमाग को भ्रष्ट करेगी, बल्कि उनकी मानसिकता पर नकारात्मकता असर डालेगी। इसके कारण बच्चों के प्रति दुर्व्यवहार और शोषण जैसे अपराध बढ़ सकते हैं। यह गंभीर मामला है और बच्चों के लिए खतरनाक है।
ओटीटी मंच की ढिठाई
आयोग ने नेटफ्लिक्स को बच्चों या बच्चों से जुड़ी किसी भी सामग्री का प्रसारण करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतने और भविष्य में इस तरह की सामग्री प्रकाशित करने से परहेज करने का निर्देश दिया था। इसे लेकर नेटफ्लिक्स के अनुरोध पर 16 मार्च, 2021 को एक बैठक बुलाई गई थी। बैठक में नेटफ्लिक्स से चर्चा के बाद आयोग ने उसे वेब सीरीज से आपत्तिजनक दृश्यों को हटाने का निर्देश दिया था। 18 मार्च को नेटफि्लक्स ने जवाब दिया, पर आयोग के निर्देशों का पालन नहीं किया।
मार्च से टाल रही मुंबई पुलिस
वेब सीरीज के एक दृश्य में एक नाबालिग बच्ची को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया था, जो किशोर न्याय अधिनियम-2015 की धारा 77 का उल्लंघन है। इस पर आयोग ने 16 मार्च को पत्र लिखा और मामले की जांच के लिए इसे 26 मार्च मुंबई पुलिस आयुक्त को अग्रेषित किया। आयोग ने पुलिस आयुक्त से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इस वेब सीरीज की शूटिंग के दौरान किसी बाल श्रम कानून या किसी अन्य संबंधित कानून या ‘टेलीविजन धारावाहिकों, रियलिटी शो और विज्ञापनों में बाल भागीदारी को विनियमित करने वाले दिशानिर्देशों’ का उल्लंघन नहीं किया गया है और बच्चों की भागीदारी के लिए पारिश्रमिक या भुगतान तय दिशानिर्देशों के तहत किया जाता है। साथ ही, मामले में 7 दिनों के भीतर एटीआर प्रस्तुत करने को कहा था। करीब एक माह बाद, 12 अप्रैल को आयोग ने मुंबई पुलिस के डीसीपी (प्रवर्तन) को पत्र भेजा। इसमें किशोर न्याय अधिनियिम-2015 और पॉक्सो (3) कानून-2012 के विभिन्न प्रावधानों तथा वेब सीरीज की शूटिंग के दौरान एनसीपीसीआर के निर्देशों का उल्लंघन करने पर नेटफ्लिक्स के खिलाफ ‘बॉम्बे बेगम’ के प्रसारण के लिए प्राथमिकी दर्ज करने को कहा था। साथ ही, 15 अप्रैल तक प्राथमिकी की प्रति और 15 दिनों के भीतर विस्तृत एटीआर पेश करने को कहा था। लेकिन एक माह से अधिक समय बीतने के बाद प्राथमिकी दर्ज करने संबंधी कोई सूचना नहीं मिली तो आयोग ने सीपीसीआर अधिनियम-2005 की धारा 14 के तहत समन भेजा और 18 मई को नोटिस जारी किया।
मुंबई पुलिस का बहाना
इसके बाद 24 मई को डीसीपी (प्रवर्तन) ने आयोग को बताया कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए उन्हें ‘उच्च अधिकारियों से अनुमति’ चाहिए, क्योंकि यह मामला ‘ग्रे एरिया’ में आता है। अब आयोग को समझ में नहीं आ रहा है किशोर न्याय अधिनियम-2015 की धारा 77 के तहत कोई संज्ञेय अपराध ‘ग्रे एरिया’ में कैसे आ सकता है? संज्ञेय अपराध होने के बावजूद मुंबई पुलिस प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज कर रही है? ऐसे मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए उसे उच्च अधिकारियों की अनुमति की आवश्यकता क्यों है, जबकि इसके लिए सीआरपीसी-1973 के तहत प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इसमें कहा गया है कि आयोग से जुड़े संज्ञेय अपराधों की कोई भी सूचना मिलने पर प्रभारी अधिकारी के लिए उसे पंजीकरण कराना जरूरी है।
बाद में 24 मई को रात 20:45 बजे आयोग को मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के पुलिस निरीक्षक और जांच अधिकारी अरुण पोखरकर का एक पत्र मिला। इसमें उन्होंने आयोग से एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का आग्रह किया है, जो व्यक्तिगत रूप से शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी भी पुलिस स्टेशन में जाए। साथ ही, यह आग्रह भी किया है कि शिकायतकर्ता या एनसीपीसीआर का प्रतिनिधि जीरो नंबर पर दिल्ली के पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा सकता है और संबंधित पुलिस थाना इसे आगे की जांच के लिए मुंबई पुलिस को भेज सकता है।
28 मई को पूरी हो रही मियाद
महत्वपूर्ण बात यह है कि मामला संज्ञेय अपराध से जुड़ा होने के बावजूद मुंबई पुलिस एफआईआर दर्ज करने में हीलाहवाली कर रही है और आयोग के अनुरोध को दरकिनार कर रही है। लिहाजा, आयोग ने राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को लिखे पत्र में कहा है कि यह एक गंभीर मुद्दा है। पुलिस अपने क्षेत्र में निर्धारित मापदंडों का पालन नहीं कर रही है, इसलिए आपसे अनुरोध है कि इस मामले को देखें और सुनिश्चित करें कि इसमें कहीं बाल अधिकार और भूमि कानून का उल्लंघन तो नहीं हुआ है। साथ ही, कार्रवाई की रिपोर्ट 3 दिनों के भीतर पेश करने को कहा है।
मुंबई पुलिस आयुक्त भी तलब
आयोग ने अपने अधिकारों का उल्लेख करते हुए मुंबई पुलिस आयुक्त हेमंत नगराले को भी समन जारी किया है। आयोग ने सख्त लहजे में कहा है कि वेब सीरीज को मुंबई में फिल्माया गया, इसलिए यह मुंबई पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है। आयोग ने मुंबई पुलिस आयुक्त को 28 मई को 11 बजे सुबह आवश्यक कार्रवाई रिपोर्ट के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश होने को कहा है। साथ ही, चेतावनी दी है कि यदि वे पेश नहीं हुए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
-web desk
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