सर्वोच्च न्यायालय को पत्र सौंपकर 2093 महिला वकीलों ने की पश्चिम बंगाल हिंसा के दोषियों को कड़ी सजा और पीड़ितों को मुआवजे की मांग। 146 पूर्व अधिकारियों ने राष्ट्पति को सौंपे ज्ञापन में हिंसा को बताया लोकतंत्र के लिए खतरा, राज्य प्रशासन को कठघरे में खड़ा करके कड़ी कार्रवाई की अपील की
गत 24 मई को देश की दो हजार से ज्यादा महिला वकीलों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र सौंपकर पिछली 2 मई से पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा, हत्या, बलात्कार और लूटमार के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर आवश्यक कदम उठाने की मांग की गई है। पत्र पर देश के 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों की कुल 2093 महिला वकीलों के पते, ईमेल आईडी और फोन नंबर सहित हस्ताक्षर हैं। मुख्य न्यायाधीश से मांग की गई है कि बंगाल में कानून—व्यवस्था ध्वस्त हो गई है, राज्य का शासन और पुलिस मूक है, हिंसा पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, रपट तक दर्ज नहीं की जा रही हैं। ऐसे में न्यायालय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए वहां हिंसा की जांच के लिए एसआईटी गठित करे और बंगाल के बाहर के, एक नोडल अधिकारी बनाए जो पीड़ितों की शिकायतें बाकायदा दर्ज करे।
उल्लेखनीय है कि 21 मई को वेब के जरिए देश की महिला वकीलों से इस मांग से जुड़ने का आह्वान किया गया था और 60 घंटे से भी कम वक्त में 2093 महिला वकीलों ने बंगाल के वर्तमान हालात पर दुख व्यक्त करते हुए हस्ताक्षर किए थे। पत्र में कहा गया है कि राज्य में शासन जड़ हो गया है, हिंसा बेलगाम चलती रही जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, महिलाओं और छोटे बच्चों तक को नहीं बख्शा गया। हिंसा का ऐसा वीभत्स तांडव पहले कभी देखने में नहीं आया है और इस पत्र के साथ संलग्न चित्रों, वीडियो, घटनाक्रम विश्लेषणों के अलावा भी ऐसे कई चित्र और वीडियो हैं जो इतने वीभत्स हैं कि यहां संलग्न नहीं किए गए हैं। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह भी प्रस्तुत कर दिए जाएंगे। पत्र के संलग्नक में घटनाओं का सिलसिलेवार हवाला है और वीडिया के लिंक हैं।
महिला वकीलों के इस पत्र में साफ लिखा है—”पुलिस की गुंडों से साठगांठ है जिसके चलते पड़ित रपट तक दर्ज नहीं करवा पा रहे हैं। राज्य में संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया भी चुप है और पश्चिम बंगाल की असली और वर्तमान तस्वीर नहीं दिखा रहा है।” पत्र में चुनाव परिणामों के बाद हुई हिंसा पर न्यायालय सीधे उसकी निगरानी में तय समय सीमा में जांच की मांग की गई है। कहा गया है कि जहां भी हिंसा पर एसआईटी आरोप पत्र दायर करे, वहां फास्ट टे्क अदालत में सुनवाई कराई जाए।
महिला वकीलों ने न्यायालय से गुहार की है कि हिंसा, आगजनी, लूट, बलात्कार, मौत से आहत लोगों, उनके परिजनों को राज्य सरकार से मुआवजा दिलाया जाए। पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक को हर स्तर पर प्राथमिकता के साथ शिकायतें दर्ज करने का एक प्रभावी तंत्र बनाने का निर्देश दिया जा सकता है जिसकी सर्वोच्च नयायालय को दैनिक रपट दी जाए। पुलिस महानिदेश पीड़ितों का पूरी सुरक्षा मिलना सुनिश्चित करें।
इसके साथ ही, महिला वकीलों ने एक स्वर से मांग की है कि राष्टी्य मानवाधिकार आयोग, राष्टी्य महिला आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, अनुसूचित जाति—अनुसूचित जनजाति आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग को सक्षम नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया जाए जो आभासी तरीके से पीड़ितों के बयान दर्ज करें। इन अधिकरियों के फोन नंबर सर्वसुलभ होने चाहिए।
सेवानिवृत्त अधिकारियों बंगाल हिंसा पर राष्ट्पति को सौंपा ज्ञापन
देश में विभिन्न सेवाओं से निवृत्त 146 अधिकारियों ने बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्पति को संबोधित ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। हस्ताक्षर करने वालों में 17 पूर्व न्यायाधीश हैं, 31 पूर्व आईएएस और लोक सेवा अधिकारीख, 32 पूर्व आईपीएस, 10 पूर्व राजदूत और 56 पूर्व सेना अधिकारी शामिल हैं। ज्ञापन में कहा गया है—”हाल ही में जिस तरह पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद लोगों को चिन्हित करके मारा गया है, उसने हर सही सोच वाले इंसान में हर हालत में अहिंसा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इसमें प्रतिशोध, गुस्से और बदला लेने जैसी बातें नहीं होतीं।” ज्ञापनदाताओं का कहना है कि बंगाल में लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करते हुए वोट देने वाले लोगों के खिलाफ बेलगाम हिंसा की रपटों से वे बहुत आहत हैं, इसलिए यह ज्ञापन सौंपा जा रहा है।
पूर्व अधिकारियों के ज्ञापन में लिखा है—”प्रत्यक्षदर्शियों के ब्योरे के साथ आई रपटें देश विरोधी तत्वों द्वारा हत्या, बलात्कार, लोगों और उनकी संपत्ति पर हमलों की व्यथित करने वाली जानकारी देती हैं। इसकी वजह से लोगों को पलायन करके राहत शिविरों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। रपट बताती हैं कि राज्य में चुनाव बाद हुई हिंसा पर पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने उचित कार्रवाई नहीं की। अगर इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण गतिविधियां बेलगाम जारी रहीं तो यह एक चलन बन जाएगा और भारत में लोकतंत्र की गहराई तक समाई परंपराएं अंतत: ध्वस्त हो जाएंगी। मीडिया से 15 हजार से ज्यादा हिंसक घटनाएं होने का पता चला है। महिलाओं समेत दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए हैं। राज्य के 23 में से 16 जिले हिंसा की चपेट में आए हैं। नतीजा यह हुआ कि 4000—5000 लोगों को असम, ओडिशा और झारखंड की तरफ पलायन करना पड़ा है।
ज्ञापन में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाा गया है कि यह हिंसा से पीड़ित राज्य में कानून व्यवस्था कायम नहीं रख पाई। इसे राज्य के कानून व्यवस्था तंत्र का किया या उसके द्वारा कानून की अनदेखी करना, या ‘राज्य प्रायोजित आतंक’ माना जा सकता है।
ज्ञापन में मांग की गई है कि जो जन सेवक अपना कर्तव्य निभाने में नाकाम रहे, उनकी पहचान करके कड़ी कार्रवाई हो। दूसरे, राजनीतिक उकसावा देने वालों की पहचान हो, हिंसा के सभी मामले दर्ज किए जाएं। तीसरे, जो भी असली दोषी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई हो। यह मांग भी की गई है सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में एसआईटी गठित की जाए जिससे निष्पक्ष जांच हो और जल्दी से जल्दी न्याय मिले।
-आलोक गोस्वामी
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