भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का बड़ा हिस्सा चीनी दुष्प्रचार को बढ़ावा दे रहा है
कोरोना संकट के साथ भारत इस समय एक सूचना युद्ध के भी बीच में है। जितना बड़ा हमला चीनी वायरस का है, उससे कहीं बड़ा हमला दुष्प्रचार का है। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस हमले का हथियार बने हुए हैं। वाशिंगटन पोस्ट, वाल स्ट्रीट जर्नल और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे समाचारपत्रों के माध्यम से भारत विरोधी ढेरों लेख छपवाए गए। सबकी पोल खुलने के बाद अब मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ सामने आया है। किसी भी मेडिकल जर्नल में चिकित्सा विज्ञान में नए शोध इत्यादि छपते है। लेकिन ‘लैंसेट’ के ताजा अंक में जो छपा है, वह विशुद्ध प्रोपगेंडा है। इसमें कोरोना से निपटने में भारत सरकार को विफल बताया गया है। अगले तीन महीने में भारत में 10 लाख लोगों के मरने की भविष्यवाणी की गई है। इसमें भारतीय वैक्सीन के बुरे प्रभावों के बारे में भी बताया गया है। कोई कल्पना नहीं कर सकता कि यह एक मेडिकल जर्नल की भाषा है।
भारतीय मीडिया ने इस कथित रिपोर्ट को हाथों-हाथ लिया। चैनलों और अखबारों ने बढ़ा-चढ़ाकर इसे दिखाया और लिखा। फिर पता चला कि ‘लैंसेट’ में छपा लेख शोध नहीं, बल्कि ‘निजी विचार’ है। इसे वुहान (चीन) की एक वैज्ञानिक ने लिखा है। वुहान की वायरस प्रयोगशाला पर ही संदेह है कि उसने कोविड-19 और भारत में फैले बी-1.617 प्रकार को बनाया है। यह ‘कथित’ वैज्ञानिक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य भी है। ‘द लैंसेट’ कहने को चिकित्सा विज्ञान की पत्रिका है, लेकिन इसने कश्मीर में धारा-370 हटाने पर भी लेख छापा था। पिछले कुछ वर्ष में ‘लैंसेट’ में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है, ताकि वह विश्व भर में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अपना दबदबा बना सके। अमेरिका की तरह चीन, भारत में भी अपने वायरस के दम पर सत्ता परिवर्तन कराना चाहता है। यह जांच का विषय है कि ‘लैंसेट’ में छपे दुष्प्रचार को बिना संपादकीय विवेक प्रयोग किए जस का तस छापने वाले भारतीय मीडिया संस्थानों को इसके बदले में क्या मिला?
आॅस्ट्रेलिया के न्यूज पोर्टल ‘द आॅस्ट्रेलिया टुडे’ ने महामारी को लेकर भारतीय मीडिया के एक वर्ग की नकारात्मक कवरेज पर लेख प्रकाशित किया। इससे भारत की एक तथाकथित बड़ी पत्रकार को मिर्ची लग गई। उन्होंने ट्वीट करके आॅस्ट्रेलियाई पोर्टल को ही भला-बुरा कहना शुरू कर दिया। कभी कांग्रेस सरकार में मंत्रिमंडल तय करने वाली यह पत्रकार महोदया आजकल विदेशी मीडिया में भारत विरोधी दुष्प्रचार का बड़ा स्रोत हैं। 2015 में गंगा में प्रदूषण के चित्रों को दिखाकर दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़ी संख्या में लोग शवों को बहा रहे हैं। कांग्रेस के दुष्प्रचार तंत्र की तरह काम कर रहे कई चैनलों और अखबारों ने बिना जांच-पड़ताल के उन्हें प्रकाशित भी किया। लगभग सभी मीडिया संस्थानों ने छापा कि भारत में टीकाकरण की जो गति है उससे सबको वैक्सीन लगने में 5 वर्ष से अधिक लग जाएंगे। भारत में चार महीने में लगभग 20 करोड़ लोगों को टीके लग चुके हैं। वैक्सीन का उत्पादन भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। टीकाकरण की गति भी बढ़ेगी। फिर 5 साल का आंकड़ा कहां से आया? किसी ने इसका ‘फैक्ट चेक’ क्यों नहीं किया? वैक्सीन की कमी का हंगामा विदेशी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की मंशा से किया जा रहा है। दिल्ली में आॅक्सीजन की कालाबाजारी की पोल खुलने के बाद अब राज्य सरकार और प्रायोजित मीडिया का ध्यान वैक्सीन का कृत्रिम संकट दिखाने पर है। जो मीडिया संस्थान मुख्यमंत्री के बयान छापते हैं, वे यह नहीं पूछते कि उन्होंने दूसरे राज्यों की तरह वैक्सीन खरीद का आदेश क्यों नहीं दिया। दिल्ली में मीडिया का पूरा ध्यान केजरीवाल सरकार की अकर्मण्यता छिपाने में रहता है।
दिल्ली में आॅक्सीजन संकट का वास्तिवक कारण बताते हुए हिंदुस्तान टाइम्स ने एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। बदले में केजरीवाल सरकार ने अखबार के 7 संवाददाताओं को सरकार के व्हाट्सएप ग्रुप से हटा दिया। विकासो पिकासो के नाम से चर्चित कार्टूनिस्ट को महाराष्ट्र में सरकारी वसूली पर व्यंग्यचित्र बनाने के लिए ट्विटर ने नोटिस भेज दिया। सोशल मीडिया पर आए दिन भाजपा विरोधी दुष्प्रचार पर आंख बंद कर लेने वाला ट्विटर राष्ट्रवादी विचारधारा वालों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इसी तरह से सम्मान करता है। राजस्थान में नसीम खान नामक पत्रकार को अस्पताल में अव्यवस्था का समाचार देने पर गिरफ्तार करा दिया गया। महाराष्ट्र, दिल्ली और राजस्थान में कांग्रेसी तंत्र की सरकारें हैं, इसलिए वहां मीडिया की स्वतंत्रता इतना महत्वपूर्ण विषय नहीं है। लिहाजा तीनों ही समाचार दबा दिए गए। ल्ल
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