प. बंगाल में एक वर्ग को उम्मीद बंधी थी कि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपने हिंसक कार्यकर्ताओं और जिहादी तत्वों पर लगाम लगाएंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पीड़ित परिवारों से मिलने गए राज्यपाल के दौरे में खुलेआम बाधा डालने की कोशिश की गई
पश्चिम-बंगाल में विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद जारी राजनीतिक हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। गत 8 मई को प्रदेश के राज्यपाल श्री जगदीप धनखड़ ने मुख्य सचिव व गृह सचिव को तलब करके पूछा था कि राज्य में राजनीतिक हिंसा से जुड़ी कानून-व्यवस्था की स्थिति की पूरी रिपोर्ट अतिरक्त मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने राज्यपाल को उस दिन तक क्यों नहीं सौंपी है। राज्य एक तरफ जहां राजनीतिक हिंसा की गंभीर स्थिति से गुजर रहा है वहीं ममता प्रशासन ने संवैधानिक व्यवस्थाओं का जैसे गला ही घोंट दिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यानी 14 मई तक राज्य के संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल को मांगी गई रिपोर्ट नहीं दी गई है। उधर राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को यह बताया है कि राज्य में कोई राजनैतिक हिंसा हुई ही नहीं, यहां पर शांति है। राज्यपाल की पीड़ा यह थी कि 2 मई दोपहर बाद से पूरा राज्य हिंसा की चपेट में आ गया था तो अभी तक राज्य की तरफ से कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाये गए हैं।
ममता सरकार जहां एक तरफ अदालत को यह रिपोर्ट सौंपती है कि कोई हिंसा नहीं हुई है, पर दूसरी तरफ पुलिस प्रशासन भाजपा कार्यकर्ताओं को सम्मन जारी करके उनको मानसिक तौर से परेशान कर रहा है। पूरे प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस गुंडों द्वारा भाजपा के कार्यकर्ताओं के घरों को तोड़ा जा रहा है, उनकी संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है। बीरभूम जिले के सिवड़ी विधानसभा क्षेत्र के मटिया, मेटला, गजलपुर सैथिया के कोमा गांव में तृणमूल के गुंडों द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं को ‘मिलने’ के लिए बुलाया जा रहा है और नहीं आने पर उनके घरों को तोड़ा जा रहा है। इतना ही नहीं भाजपा के बूथ एजेंटों को डरा-धमकाकर उनसे माफी मंगवायी जा रही है, यहां तक कि कुछ स्थानों पर पता चला है, 50-50 हजार रुपए का ‘दंड’ भी दिया जा रहा है। बेहाला की रहने वाली भाजपा कार्यकर्ता राखी मित्रा, जिनको पुलिस ने सम्मन जारी किया था, के लिए पुलिस का कहना है कि ‘उन्होंने प्रदेश में हिंसा भड़कायी है’। राखी कहती हैं कि 5 मई को तृणमूल कांग्रेस के 30 से भी ज्यादा गुंडे उनके घर पर आये और धमकी देकर गए थे। घर में राखी अपनी मां व बेटी के साथ रहती हैं। अब उनको भय है कि तृणमूल कांग्रेस के गुंडे कहीं उनका घर न कब्जा लें। डर के कारण उन्होंने अपनी बेटी को बंगाल से बाहर भेज दिया है। तृणमूल के गुंडों द्वारा राजनीतिक हिंसा आज भी जारी है। रामपुरहाट के नजदीक नलहाटी में भाजपा कार्यकर्ता मानब जायसवाल को पीट—पीट कर मार डाला गया।
राज्य में जारी हिंसा की रिपोर्ट न मिलते देख, राज्यपाल ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों से मिलने जाने की जानकारी देने वाला ट्वीट किया तो उलटा मुख्यमंत्री ममता गुस्से में आकर बोलीं, ”राज्यपाल संवैधानिक पद की गरिमा का अपमान कर रहे हैं।” राज्य में जारी हिंसा से हजारों हिन्दू पलायन कर गए हैं। वे असम के रंगपाली में शरण लिए हुए हैं। जब राज्यपाल ने वहां जाने के लिए हेलीकाप्टर उपलब्ध कराने को कहा तो राज्य सरकार ने राज्यपाल को हेलिकाप्टर देने से यह कहकर मना कर दिया कि पायलट को कोविड है। 13 मई को राज्यपाल जब कूचबिहार में पीड़ित व प्रभावित परिवारों से मिलने सीतलकुची, गोलकगंज व जोरपाट गए जहां राजनीतिक हिंसा चरम पर हुई थी और जहां से सबसे ज्यादा पलायन हुआ है, तो राज्यपाल का तृणमूल के गुंडों ने विरोध किया, काले झंडे दिखाए और वापस जाओ के नारे लगाये गए। राज्यपाल ने इस कृत्य को राज्यपाल बहुत गंभीरता से लिया है और पुलिस प्रशासन को आड़े हाथों लिया है। राज्यपाल ने कहा, ‘प्रदेश में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। लोगों में पुलिस का भय है, जिसको मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं। पीड़ित लोग भय से पुलिस थाने में रिपोर्ट तक नहीं लिखवा सकते हैं। यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।’
कूचबिहार में आहत महिलाओं ने राज्यपाल के पैरों में गिरकर अपना दु:ख व्यक्त किया। उन्होंने रो—रोकर बताया कि कैसे तृणमूल के गुंडों ने उनको मारा, उनके घर जलाए, उनके बच्चों को मारा और बेघर कर दिया। बड़ी तादाद में पीड़ितों ने सीधे राज्यपाल को अपना दर्द सुनाया। 14 मई को राज्यपाल श्री धनखड़ असम के अलीपुर द्वार स्थित उस आश्रयस्थल पर पहुंचे जहां पलायन करके आए भाजपा समर्थकों को पनाह दी गई है। स्थानीय सांसद और अन्य नेता उनकी देखभाल में लगे हैं। वहां भी बड़ी संख्या में आहत परिवारों की दुर्दशा देखकर राज्यपाल को बहुत क्षोभ हुआ। उन्होंने सबकी बात विस्तार से सुनी, सबके लिए वहां की जा रही व्यवस्था का जायजा लिया। पीड़ितों ने उनसे न्याय की गुहार की और कहा कि अब प. बंगाल लौटने में डर लगता है। राज्यपाल ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनको न्याय अवश्य मिलेगा। पलायन करके आए परिवारों में छोटे छोटे बच्चे हैं जिनके भविष्य के प्रति उनके माता—पिता बेहद आशंकित हैं।
ममता की शह, गुंडों का कृत्य
ममता राज्यपाल श्री धनखड़ से उस समय से ही चिढ़ी हुई हैं जब गत वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान मुर्शिदाबाद जिले में एक हिन्दू परिवार की हत्या की गयी थी और जब राज्यपाल ने कहा था कि प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है। तब से ममता ने राज्यपाल के पद का सम्मान नहीं किया और दुगार्पूजा के बाद हुए प्रदेश के एक उत्सव में प्रोटोकॉल को ताक पर रखते हुए राज्यपाल के बैठने के लिए कुर्सी पीछे की पंक्ति में लगवाई। अभी हाल में राज्यपाल मुर्शिदाबाद के डोमकल में प्रदेश सरकार द्वारा मुस्लिम महिलाओं के लिए निर्मित नए कॉलेज का भवन देखने गए तो वहां तृणमूल वालों ने उनको काले झंडे दिखाए, उनकी कार को तोड़ने का प्रयास किया, उनके खिलाफ नारे लगाये गए। इसी प्रकार से पिछले माह जब राज्यपाल उत्तर 24 परगना में एक योजना के परीक्षण के लिए गए तो प्रदेश सरकार का कोई भो अफसर उनकी अगवानी के लिए नहीं पहुंचा।
ममता राज्यपाल के साथ मनमाना व्यवहार करना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि राज्यपाल उनकी हां में हां मिलाएं लेकिन श्री धनखड़ ने स्पष्ट कहा है कि वे ममता सरकार के रबर स्टाम्प नहीं हैं। इससे चिढ़ीं ममता समेत पूरे सरकारी तंत्र द्वारा उनका अपमान किया जाता है।
ममता का राज्यपाल के प्रति असंवैधानिक बर्ताव क्यों!
30 जुलाई 2019 को जब से श्री जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त हुए हैं तब से राज्यपाल व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच कई मौकों पर तीखा प्रतिवाद हुआ है। ममता ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि 2011 से सत्ता में बैठी तृणमूल कांग्रेस की सरकार को अभी तक किसी भी राज्यपाल ने कोई संवैधानिक चुनौती नहीं दी थी। लेकिन जगदीप धनखड़ ममता के हर गलत बर्ताव पर उनको न केवल संवैधानिक बल्कि कानूनी रूप से भी चुनौती देते आ रहे हैं। प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार व कानून व्यवस्था पर जब राज्यपाल ने कानूनी रूप से जवाब तलब करना शुरू किया तो ममता बौखला गईं। जबकि ऐसा करना राज्यपाल का संवैधानिक अधिकार होता है। ममता की तानाशाही का आलम यह है कि राज्य सरकार प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्तियां बिना राज्यपाल की अनुमति से कर देती है, जबकि वह पदेन चांसलर होते हैं। राज्यपाल ने जब संबंधित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से जवाब मांगा, पर जवाब नहीं मिला। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय जाने की सूचना भेजी तो वहां के कुलपति ने कोई उत्तर नहीं दिया। उनको कोलकाता विश्वविद्यालय आने ही नहीं दिया। राज्य के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राज्यपाल प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश ने चल रही विभिन्न योजनाओं पर जवाब-तलब कर सकते हैं। उनके परीक्षण का आदेश दे सकते हैं। वे प्रदेश की कानून व्यवस्था पर जवाब मांग सकते हैं। उनको यह अधिकार भारत का संविधान देता है। लेकिन उनके द्वारा अपने वैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करने से ममता चिढ़ जाती हैं।
प्रदेश में 2004 से 2009 तक गोपाल कृष्ण गांधी राज्यपाल रहे। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा सिंगूर व नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण का विरोध किया था। प्रदेश में गरीबों/मजदूरों के साथ हो रहे शोषण के खिलाफ बोला था। राज्यपाल ने उस समय के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को पत्र लिखा था कि सरकार अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल का रही है। तब राज्यपाल के इस कृत्य से ममता बहुत उत्साहित हुई थीं, उन्होंने राज्यपाल के प्रति धन्यवाद व आभार प्रकट किया था। लेकिन जब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार से जवाब तलब शुरू किया तो वह उनसे इतना नाराज हुईं कि विधानसभा के उनके लिए बने प्रवेश द्वार पर ताला लगवा दिया और राज्यपाल को प्रवेश ही नहीं करने दिया।
अम्बा शंकर बाजपेयी
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