पंजाब के मुस्लिम-बहुल क्षेत्र मालेरकोटला को भी जिला बना दिया गया। इससे पहले केरल में मलप्पुरम, बिहार में किशनगंज और हरियाणा में मेवात को भी मुस्लिम-बहुल होने के कारण जिले का दर्जा दिया गया था। आज इन जिलों में हिंदुओं का बहुत ही बुरा हाल है। इन जिलों से हिंदू पलायन कर रहे हैं। मालेरकोटला में भी ऐसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए
गत 14 मई को जब मुस्लिम समाज ईद मना रहा था, तब मानो पंजाब सरकार ने उन्हें ईदी के रूप में मालेरकोटला नाम से एक नया जिला दे दिया। इसके साथ ही मालेरकोटला पंजाब का 23वां और एकमात्र मुस्लिम-बहुल जिला हो गया है। इसी दिन पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बड़े गर्व के साथ यह भी कहा कि पंजाब सरकार ने मालेरकोटला में एक मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए 500 करोड़ रु. का आवंटन कर दिया है। इस कॉलेज का नाम मालेरकोटला के पूर्व नवाब शेर मोहम्मद खान के नाम पर रखा गया है।
कैप्टन ने मालेरकोटला को जिला बनाकर कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति को ही आगे बढ़ाने का काम किया है। इसलिए उन्होंने यह देखने की कोशिश तक नहीं की कि अब तक मुस्लिम-बहुल जितने जिले बने हैं, उनमें गैर-मुस्लिमों की क्या स्थिति है।
कह सकते हैं कि मालेरकोटला को उसी कांग्रेसी और वामी मानसिकता ने जिला बनवाया है, जिसने इससे पहले मलप्पुरम, किशनगंज और मेवात जैसे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को जिला बनवाया था। आज इन मुस्लिम-बहुल जिलों में हिंदुओं का क्या हाल है, यह जिसने देखा है, वह मजहब के नाम पर बन रहे किसी भी जिले या राज्य का समर्थन नहीं करेगा।
लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण को ही सच्चा सेकुलरवाद मानने वाले कांग्रेसियों और वामपंथियों को हिंदुओं के दर्द से क्या मतलब है? चाहे जैसे भी हो उन्हें तो मुसलमानों को वोट बैंक बनाकर अपने साथ रखना है। इसलिए वे उनकी हर मांग को पूरी कर रहे हैं।
बता दें कि मुस्लिमों को खुश करने के लिए ही 16 जून, 1969 को वामपंथी नेता और केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ई.एम.एस. नम्बूदिरीपाद ने मलप्पुरम जिले का गठन किया था। मुस्लिम-बहुल यह जिला आज जिहादियों का गढ़ बन चुका है। मलप्पुरम जिला मुख्यालय भी है। यहां लगभग 80 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। ये लोग साल में कई बार ऐसी घटनाएं करते हैं, जिससे कि हिंदुओं में भय पैदा हो और वे यहां से दूसरी जगह पलायन कर जाएं। यही कारण है कि आज यहां हिंदुओं की आबादी बहुत ही कम रह गई है। आज मलप्पुरम ही वह जगह है, जहां पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) के गुर्गे सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। पीएफआई कट्टरवादी मुस्लिमों का संगठन है। इस संगठन के अनेक गुर्गे आतंकवादी बन चुके हैं।
इसी तरह बिहार के किशनगंज में भी हो रहा है। 14 जनवरी, 1990 को बिहार के एकमात्र मुस्लिम-बहुल क्षेत्र किशनगंज को जिला बनाया गया था। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे कांग्रेसी नेता जगन्नाथ मिश्र। किशनगंज जिले की सीमा पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर और मालदह जिले से मिलती है। यह क्षेत्र बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के लिए जन्नत के समान है। इन घुसपैठियों के कारण किशनगंज के ग्रामीण इलाके पूरी तरह मुस्लिम-बहुल हो गए हैं। किशनगंज शहर में भी हिंदुओं की आबादी कम होती जा रही है। किशनगंज ही वह क्षेत्र है जहां से बिहार में पहली बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का विधायक निर्वाचित हुआ है। मुस्लिम-बहुल होने के कारण ही यह पूरा क्षेत्र अति संवेदनशील बन गया है।
कुछ ऐसा ही हाल मेवात का है। उल्लेखनीय है कि 4 अप्रैल, 2005 को हरियाणा के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को मिलाकर मेवात नाम से एक जिले का गठन किया गया था। कांग्रेसी नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा 5 मार्च, 2005 को पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने और एक महीने के अंदर ही उन्होंने मेवात जिले का गठन कर दिया। आज मेवात ‘छोटा पाकिस्तान’ बन चुका है। यहां जिहादियों की जड़ें इतनी मजबूत हो गई हैं कि उन्होंने हिंदुओं का जीना दूभर कर दिया है। इस कारण मेवात के विभिन्न हिस्सों से हिंदू पलायन कर रहे हैं। मेवात में आतंकवादियों को शरण मिलती है। यही नहीं, कुख्यात पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद की मदद से मेवात में मदरसे और मस्जिदें बन रही हैं। हालांकि अब इनकी जांच भी चल रही है और इस कारण कई स्थानों पर निर्माण कार्य बंद है।
मुसलमान पहले मुस्लिम-बहुल जिले की मांग करते हैं। यह मांग पूरी होने के बाद दूसरी मांग करते हैं कि जिले के बड़े-बड़े पदाधिकारी मुसलमान ही होने चाहिएं। यानी जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, थानेदार आदि मुस्लिम ही हों। उनकी इसी मानसिकता को देखते हुए सोनिया-मनमोहन सरकार ने सच्चर कमेटि से सिफारिश करवाई थी कि मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मुसलमान अधिकारियों की तैनाती हो। इसके बाद तो देश के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मुसलमान अधिकारियों की तैनाती भी होने लगी थी। तुष्टीकरण का यह खेल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक होता रहा था।
अब फिर उसी तुष्टीकरण की नीति को धार देने का काम कैप्टन अमरिंदर ने किया है। शायद उन्हें राहुल गांधी के गोत्र, तिलक और जनेउ वाली नीति पर भरोसा नहीं रह गया है।
-अरुण कुमार सिंह
टिप्पणियाँ