झारखंड में कोरोना योद्धा के रूप कार्यरत चिकित्सकों को वेतन नहीं मिल रहा है। इसी तरह जन संपर्क विभाग के कर्मचारी भी वेतन नहीं मिलने से भूखे मर रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय में अनुबंध के आधार पर कार्यरत शिक्षकों को भी वेतन नहीं मिल रहा है, दूसरी ओर राज्य सरकार ने उर्दू शिक्षकों को ईदी के तौर पर वेतन देने के लिए 21.31 करोड़ रु. की राशि जारी कर दी है इन दिनों पूरा झारखंड महामारी से पीड़ित है। हालत यह है कि दूर—दराज के गांवों में भी लोग मर रहे हैं। उन्हें कोई देखने वाला नहीं है। चिकित्सकों की घोर कमी है और जो चिकित्सक दिन—रात काम कर रहे हैं, उन्हें समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। सरकारी अस्पतालों में नवनियुक्त 380 चिकित्सकों को पांच महीने से वेतन नहीं मिला है। इन चिकित्सकों के पास घर का किराया देने और राशन खरीदने का भी पैसा नहीं है। ऐसे में ये चिकित्सक कार्य कैसे करते होंगे, इसका अंदाजा लगाना बहुत कठिन नहीं है। चिकित्सकों ने मुख्यमंत्री से कहा है कि यदि उन्हें जल्दी ही वेतन नहीं मिला तो उनके सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। वहीँ दूसरी ओर कोरोना से संक्रमित रिम्स के रेजिडेंट डॉक्टर मोहम्मद सिराजुद्दीन की गत दिनों मेडिका अस्पताल में मौत हो गयी। इसके बाद झारखण्ड सरकार के खिलाफ जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन ने रोष प्रकट किया और सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम देकर मुआवजे की मांग की है। ऐसा नहीं होने पर एसोसिएशन ने आन्दोलन करने की बात कही है। झारखंड डॉक्टरर्स एसोसिएशन यानी जेडीए के मीडिया प्रभारी डॉ विकास ने बताया कि डॉ सिराजुद्दीन अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चे छोड़ गए हैं। उन्होंने मांग की है कि डॉ. सिराजुद्दीन के इलाज में जो खर्च हुआ है, उसकी भरपाई राज्य सरकार को करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार केवल प्रोत्साहन राशि की घोषणा करती है,लेकिन अब तक किसी भी डॉक्टर को प्रोत्साहन राशि भी नहीं मिली है। वहीं एसोसिएशन के सचिव डॉ अनीतेष गुप्ता ने कहा कि डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी सरकार की गलत नीतियों का शिकार हो रहे हैं। एक तरफ झारखंड सरकार मौजूदा डॉक्टरों का वेतन और मुआवजा देने में आनाकानी कर रही है, वहीं दूसरी ओर कहा जा रहा है कि राज्य में डॉक्टरों और नर्सों की कमी के लिए अनुबंध पर नियुक्ति की जाएगी। जहां पहले से डॉक्टरों को वेतन नहीं मिल पा रहा है, वहां अनुबंध पर नियुक्त कर्मचारी और डॉक्टरों के वेतन की व्यवस्था करना कैसे संभव हो पाएगा, यह विचार करने वाली बात है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी कहते हैं, ''इस विपदा के दौर में जो डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी दिन—रात काम कर रहे हैं, उन्हें वेतन नहीं देना बहुत ही शर्मनाक है। राज्य सरकार समय पर अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन देने की व्यवस्था करे।'' झारखंड में ने केवल डॉक्टर, बल्कि जन संपर्क विभाग के कर्मचारियों को भी छह माह से वेतन नहीं मिलने से उन लोगों के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया है। उल्लेखनीय है कि इन कर्मचारियों की नियुक्ति झारखंड सरकार के आदेश पर निजी कंपनियों ने की है। इनका काम है सरकार की बिगड़ती छवि को प्रचार के माध्यम से ठीक करना, लेकिन इन कर्मचारियों को छह महीने से वेतन नहीं मिला है। निजी कंपनियों का कहना है कि सरकार जब तक इनके लिए पैसे नहीं देगी तब तक इन्हें वेतन नहीं दिया जा सकता है। आर्थिक परिस्थिति और कोरोना महामारी से जूझ रही एपीआरओ नेहा तिवारी ने पिछले दिनों ट्वीट कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपनी पीड़ा बताई है। नेहा ने लिखा है, ''मेरे द्वारा निष्ठापूर्वक काम किया गया और आज मेरा परिवार कोविड-19 पॉजिटिव हो चुका है। छह महीने से वेतन नहीं मिलने से हालत खराब है।'' जन संपर्क विभाग के 150 कर्मचारी ऐसी ही स्थिति से गुजर रहे हैं। इन दिनों रांची विश्वविद्यालय में अनुबंध के आधार पर सेवा देने वाले 450 शिक्षकों को भी वेतन नहीं मिल रहा है। उल्लेखनीय है कि चार वर्ष पहले रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों और कॉलेजों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए अनुबंध पर 600 प्रवक्ता नियुक्त किए गए थे। इनमें से अभी भी 450 प्रवक्ता सेवा दे रहे हैं। इन्हें कभी भी समय पर मानदेय नहीं दिया गया है। एक वर्ष से इन लोगों को मानदेय का एक पैसा भी नहीं मिला है। इस कारण बहुत सारे प्रवक्ता भुखमरी का शिकार हैं। रांची विश्वविद्यालय के अधीन केसी कॉलेज, गुमला में अर्थशास्त्र विषय के प्रवक्ता डॉ. बिंदेश्वर साहू को समय पर मानदेय का भुगतान नहीं होने की वजह से उन्हें अपने बेटे के स्कूल की फीस जमा करने के लिए इन दिनों राजमिस्त्री का काम करना पड़ रहा है। गुमला के सिसई क्षेत्र के रहने वाले डॉ. साहू का कहना है कि आर्थिक विपन्नता और समय पर मानदेय न मिल पाने की वजह से वे रांची समेत आसपास के कई स्थानों पर राजमिस्त्री का काम कर चुके हैं। विश्वविद्यालय के पीजीटी विभाग में कार्यरत शिक्षकों को मार्च के बाद से मानदेय नहीं मिला है, वही डोरंडा कॉलेज में 16 माह, आरएलएसवाई कॉलेज में 15 माह, जैन कॉलेज में 13 माह, मारवाड़ी कॉलेज में 16 माह से शिक्षकों का मानदेय बकाया है। जो सरकार अपने चिकित्सकों, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे रही है, वही अपने वोट बैंक के लिए उर्दू शिक्षकों को वेतन देने में तनिक भी देर नहीं करती है। लोग कह रहे हैं कि यह सरकार है या बला! —रितेश कश्यप
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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