बलूचिस्तान में फौज जुल्म कर रही है, इसमें कौन सी अचरज की बात है? यह तो वहां पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के साथ से ही हो रहा है। हैरानी की बात यह है कि इतने लंबे समय से यह सब बदस्तूर कैसे चल रहा है! हर काली रात के अंधेरे को चीरती हुई उम्मीद भरी रोशनी फैलती है, बलूचों की जिंदगी में वह रोशनी कब आएगी!
नाम अमीर मुराद। उम्र दस साल। केच जिले के होशाब इलाके में रहने वाला एक गुमनाम सा बच्चा। आज यह सुर्खियों में है। लेकिन वजह निहायत अफसोसनाक। इस बच्चे के साथ फ्रंटियर कॉर्प्स के जवान ने रेप किया है। वही फ्रंटियर कॉर्प्स, जिसे आगे रखकर पाकिस्तान की सरकारें बलूचिस्तान पर गैर-वाजिब कब्जे के खिलाफ उठती वाजिब आवाज को दबाने की कोशिश करती रही हैं। अमीर मुराद के साथ होशाब चेक पोस्ट पर तैनात फौजी ने रेप किया और इत्तेफाक से यह खबर बाहर आ गई। मुराद को चोटिल अवस्था में अस्पताल ले जाया गया जहां उसके साथ हुए रेप की बात साबित हुई। वैसे, बलूचिस्तान में इस तरह के वाकये होते रहते हैं। हां, ऐसी सभी खबरें बाहर नहीं आ पातीं।
बलूचिस्तान में जो कुछ भी सकारात्मक होता है, उसमें इत्तेफाक की भूमिका काफी होती है। इसके कई कारण हैं। पहला, बलूचिस्तान में फौज की मर्जी के बिना मीडिया कोई रिपोर्ट नहीं कर सकता। किसी वाकये के बारे में फौज जो कह देती है, मोटे तौर पर वही छपता है। हुक्म न मानते हुए फौज की दरिंदगी को बेनकाब करने की कोशिश में कई पत्रकारों को जान से हाथ धोना पड़ा है और इस कारण वहां से जमीनी हकीकत बाहर नहीं आ पाती। ऐसे में सोशल मीडिया का दौर हवा के ताजे झोंके जैसा है जिसके कारण बाहर की दुनिया को कुछ हद तक अंदाजा हो सका कि वहां क्या-कुछ हो रहा है।
मुराद के मामले में भी ऐसा ही हुआ। बलोच नेशनल मूवमेंट के ट्वीट से यह बात फैली। यह एक सियासी पार्टी है जिसकी शुरुआत वैसे तो बलूचिस्तान की आजादी के लिए हुई, लेकिन बाद में उसने पाकिस्तान से अलग होने की मांग छोड़ दी और चुनावों में भाग भी लिया। दूसरी बात, वहां की पुलिस आम तौर पर फौज के खिलाफ किसी शिकायत को दर्ज ही नहीं करती। अगर किसी कारण शिकायत दर्ज करनी भी पड़ी तो परिवार वालों पर तरह-तरह के दबाव बनाए जाते हैं कि वे मामले को वापस ले लें। अगर इसके बाद भी बात न बनी तो फौज वाले परिवार वालों को डराते-धमकाते हैं। मुराद के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। फौज की ओर से मुराद के परिवार वालों पर काफी दबाव है कि वे मामले को वापस ले लें। इसी सिलसिले में मुराद के बड़े भाई को फौजवाले पकड़कर अपने साथ ले भी गए।
दरिंदगी का सिलसिला
मुराद के साथ जिस तरह की दरिंदगी हुई, न तो वह पहली है और न ही अंतिम। ऐसी दरिंदगी आगे भी होगी। इसके कारण हैं। वैसे तो बलूचिस्तान में फौजी जुल्म का सिलसिला पाकिस्तान के अवैध कब्जे के साथ ही शुरू हो गया था, लेकिन सीपीईसी की सैद्धांतिक मंजूरी के बाद से ही फौजी जुल्म क्रूर से क्रूरतम होता गया। पहले फौजी कार्रवाई समुद्र की लहर की तरह होती थी। एक आई तो दूसरी थोड़े समय के बाद ही आएगी। लेकिन अब वो बात नहीं। फौजी कार्रवाई लगातार जारी है। बलूचिस्तान में क्रिया-प्रतिक्रिया का ऐसा सिलसिला चल निकला है, जिसके फिलहाल रुकने की कोई सूरत नहीं दिखती। फौजी जितनी क्रूरता के साथ आम लोगों पर कहर बरपाते हैं, बलूचिस्तान की आजादी के लिए हथियारबंद संघर्ष कर रहे लोग फौज के ऊपर उतना ही जबर्दस्त हमला बोलते हैं। इस सिलसिले में पूर्व छात्र संघ नेता कमाल बलोच सही ही कहते हैं कि ‘यह जंग एक ऐसे मुल्क और उसकी फौज से है जिसने एक आजाद देश पर गैर-वाजिब तरीके से कब्जा कर लिया। दुनिया का कौन सा कानून जबरन गुलाम बनाए देश को आजादी की आवाज उठाने से रोकता है? बलूचों ने कब्जागीर को उसी की जुबान में जवाब देना सीख लिया है। आप मारोगे, तो खुद भी मरोगे। जब तक बलूचिस्तान आजाद नहीं हो जाता, बलूच इसके लिए जद्दोजहद करते रहेंगे। हम अपना आज कुर्बान कर रहे हैं ताकि हमारी आने वाली नस्लों का कल बेहतर हो सके। वे आजाद हवा में सांस ले सकें।’
जैसे को तैसा
अब तो आजादी के लिए सशस्त्र आंदोलन कर रहे गुट इतने ताकतवर हो गए हैं कि वो अक्सर उन लोगों को चुन-चुनकर मारते हैं जो आम लोगों पर कहर बरपाते हैं। इस संदर्भ में पिछले साल अप्रैल के ही महीने में केच में फौजी आॅपरेशन को याद करना चाहिए। उस आॅपरेशन के दौरान कई बेकसूर लोग मारे गए थे और इसके चंद दिनों बाद ही बलूचिस्तान में आजादी के लिए सशस्त्र आंदोलन करने वाले गुटों के संगठन बलूची राजी आजोही संगर (ब्रास) ने उस आॅपरेशन को अंजाम देने वाली टुकड़ी को घेरकर उसपर हमला किया था जिसमें उसके 12 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे।
इस बार मुराद के साथ की गई दरिंदगी के चंद दिन पहले ही होशाब के पास ही हाईवे-85 की सुरक्षा के लिए बनी फ्रंटियर कॉर्प्स की चौकी पर हमला हुआ था जिसमें कॉर्प्स के सिपाही असद मेहदी की मौत हो गई थी। उस हमले के बाद फौज होशाब समेत आसपास के इलाके को घेरकर हमलावरों की खोजबीन कर रही थी। इस आॅपरेशन के दौरान फौज वाले कई लोगों को अपने साथ उठाकर भी ले गए थे। इसी इलाके में नन्हे मुराद के साथ दरिंदगी इस तरह की आशंकाओं को भी जन्म देती है कि संभव है कि फौजी ने अपने साथी का बदला न ले पाने की हताशा में ऐसा किया हो। अगर अपने साथी की मौत का बदला लेना वजह न भी रही हो, तो भी पाकिस्तान फौज की लंबे समय से यह रणनीति रही है कि बलूचों के हौसले के तोड़ने के उपाय भी साथ-साथ किए जाएं। मासूम मुराद के साथ ऐसी हैवानियत उसी रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
लेकिन यही बात तो आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलूचों के लिए भी लागू होती है। परवेज मुशर्रफ के राष्ट्रपति रहते उनके इशारे पर मार डाले गए नवाब अकबर बुगती के पोते और बलूचिस्तान रिपब्लिकन पार्टी के नेता बरहमदाग बुगती, हरबयार मर्री जैसे तमाम लोग भले पाकिस्तान के बाहर से बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन बलूचिस्तान में तमाम सशस्त्र गुटों को एक बैनर के तले लाने वाले डॉ. अल्लाह नजर बलोच जैसे लोकप्रिय नेता तो फौज से सीधे-सीधे दो-दो हाथ कर रहे हैं। ये लोग भी जब आम लोगों पर जुल्म ढाने वाले फौजियों को चुन-चुनकर मारते हैं, तो वे भी तो फौज पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते हैं। दरअसल, फौज ने बलूचों पर जुल्म ढा-ढाकर उन्हें सिर पर कफन बांधकर मुकाबले के लिए निकल जाने का मजबूर कर दिया है। केच के ही इलाके में पिछले साल ब्रम्श नाम की चार साल की बच्ची सुर्खियों में थी। फ्रंटियर कॉर्प्स के डेथ स्क्वायड ने ब्रम्श के घर पर धावा बोला था और अपने परिवार की जान बचाने के लिए उसकी मां मलिक नाज एक-47 से लैस हमलावरों के सामने खड़ी हो गई थीं। डेथ स्क्वायड के लोगों ने उस पर गोलियां बरसी दीं जिससे मलिक नाज की मौत हो गई और ब्रम्श भी गोली लगने से घायल हो गई।
जरा सोचिए, जिस समाज में एक निहत्थी महिला एक-47 के आगे खड़ी होने का जज्बा रखती हो, उस समाज में कितना उबाल होगा!
पाकिस्तान की एक के बाद एक सरकारों ने बलूचिस्तान को ऐसा ज्वालामुखी बना दिया है जो फटने को तैयार है और जिस दिन यह फटा, दुनिया के नक्शे पर एक और आजाद देश आकार ले लेगा।
प्रस्तुति : अरविन्द
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