पूर्वोत्तर भारत की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता हिमन्त बिस्वा शर्मा असम के 15वें मुख्यमंत्री बन गए। राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने उन्हें 10 मई को गुवाहाटी में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। आशा है कि उनके नेतृत्व में असम से बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर करने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाएगा
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ‘कांग्रेस—मुक्त भारत’ का नारा देकर केन्द्र में सत्तारूढ़ हुए थे तब असम राज्य से भारतीय जनता पार्टी के खाते में 07 सीटें आयी थीं। पूरे पूर्वोत्तर में असम के अलावा केवल अरुणाचल में पार्टी का खाता खुला था और किसी राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं था। अगले वर्ष, यानी 2015 में, असम की तरुण गोगोई सरकार के सबसे प्रभावी मंत्री हिमन्त बिस्वा शर्मा मंत्री पद छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और इसके बाद से पूरे पूर्वोत्तर का राजनीतिक परिदृश्य ही मानो बदल सा गया। साल 2018 का समापन होते—होते इस क्षेत्र के सभी राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकार बन गई और कांग्रेस—मुक्त पूर्वोत्तर भारत का सपना साकार हो गया।
इस घटनाक्रम का सिलसिलेवार उल्लेख आज इसलिए आवश्यक हो गया है कि इस कायाकल्प के सूत्रधार हिमन्त बिस्वा शर्मा ने अब जाकर पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम के 15 वें मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली है।
1991 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के छात्र नेता के रूप में राजनीति में कदम रखने वाले हिमन्त बिस्वा शर्मा ने 1996 के विधानसभा चुनाव को छोड़कर आजतक कभी हार का मुंह नहीं देखा है। 1996 में जिस जालूकबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में उन्हें हार का सामना करना पड़ा वहीं से वह 2001 से अब तक अजेय बने हुए हैं। कांग्रेस के टिकट पर लड़कर उन्होंने 2001 में असम गण परिषद के कद्दावर नेता भृगु कुमार फूकन को हराया था। तब से हर विधानसभा चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़ता जा रहा है। इस बार वे 1,00,000 से भी ज्यादा मतों से जीते हैं। उनका राजनीतिक सफर भले ही आसू और कांग्रेस के रास्ते भाजपा तक पहुंचा हो लेकिन इस समय वे पूर्वोत्तर में खरी—खरी बात करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं। ऐसा कहने का साहस केवल और केवल हिमन्त बिस्वा शर्मा ही कर पाते हैं, “मुझे कोई ‘मिया’ वोट नहीं चाहिए, जो मुस्लिम खुद को मिया पहचान से जोड़े वह मुझे वोट न दे, उसका वोट यदि मुझे मिलता है तो मैं विधानसभा में खड़े होने में भी शर्म महसूस करूंगा। जो मुस्लिम असम की संस्कृति में घुल—मिल गए हैं, जो अपने को असमिया पहचान से जोड़ चुके हैं, हम केवल उन्हीें के साथ हैं।’’
जोड़—तोड़ में माहिर माने जा रहे हिमन्त जब भाजपा में शामिल हुए थे तो दिल्ली से गुवाहाटी लौटते ही उन्होंने घोषणा कर दी थी, “मैं कांग्रेस के अनेक विधायकों को भाजपा में ला सकता हूं, लेकिन समस्या यह है कि सबको पार्टी में जगह कहां और कैसे दे पाएंगे।’’ तब राज्य की विधानसभा में भाजपा के मात्र 05 विधायक थे और विधानसभा चुनाव में पार्टी को महज 12 प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे। हालांकि, तब तक सर्वानन्द सोनोवाल की अगुआई में लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन कर बदलाव की पटकथा लिखी जा चुकी थी, बस इसे अंजाम पर पहुंचाना बाकी था। सोनोवाल-हिमन्त की जोड़ी ने 2016 के विधानसभा चुनावों में इसे अंजाम पर पहुंचा ही दिया। इस सफर में हिमन्त से कांग्रेस के 09 विधायक तोड़ लिए थे और 2021 आते—आते तो तीन दर्जन कांग्रेसी विधायक-सांसद उनका साथ देने के लिए भाजपा का दामन थाम चुके थे। 2016 में असम में बनी पूर्वोत्तर की पहली भाजपा सरकार में हिमन्त बिस्वा शर्मा को वित्त, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की कमान दी गई। वह इससे पहले भी 12 वर्ष तक कांग्रेस सरकार में कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके थे। इसी समय उन्हें नवसृजित पूर्वोत्तर लोकतान्त्रिक गठबंधन (नेडा) का संयोजक भी बनाया गया। उनके नेतृत्व में नेडा के सहयोगी दल पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में सत्तारूढ़ हुए और असम में पार्टी दोबारा सत्ता में आयी।
बेहतरीन चुनाव प्रबंधन और गहरा जनसम्पर्क हिमन्त बिस्वा शर्मा की ऐसी विशेषताएं हैं, जिनके बल पर वे पूर्वोत्तर के सबसे कद्दावर नेताओं की पंक्ति में शुमार हो गए हैं। हाल के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार के बीच—बीच में छोटे बच्चों से मिलना, उन्हें गोद में उठाकर घूमना, रैलियों से ज्यादा पदयात्राओं को महत्व देना, कार्यकर्ताओं से मेल—जोल बनाए रखना और अपनी बात पर दृढ़ रहना उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं। अपने ट्विटर और फ़ेसबुक के माध्यम से तथा अन्य रूप में भी वे जनता के लिए सर्वसुलभ हैं। उनकी मिलनसारिता और बेहतर जनसम्पर्क तथा प्रबंधन का नमूना कोविड 19 जनित परिस्थितियों में भी दिखा जब महामारी के शुरुआती दौर में वे पूरे असम के लोगों की समस्या का समाधान सोशल मीडिया के माध्यम से त्वरित गति से करते दिखे। इसके अलावा जरूरतमंदों को कॉल सेंटर के माध्यम से उनके घर तक दवा पहुंचाना, कोविड के प्रसार की रोकथाम, कान्टैक्ट ट्रेसिंग जैसे मामलों में उनके कुशल नेतृत्व ने राज्य को पूरे देश में अलग पहचान दी। इससे पहले कांग्रेस सरकार के दौरान असम समझौता विभाग के मंत्री के रूप में भी उनकी भूमिका अहम रही थी और उग्रवादियों के हथियार समर्पण कर मुख्यधारा में लौटाने की प्रक्रिया को उनके सहयोग से दिया जा सका था। इस शांति प्रक्रिया की पूर्णाहुति भाजपा सरकार की ताजपोशी के बाद जाकर हुई।
गत विधानसभा चुनाव (2016) के दौरान हिमन्त बिस्वा शर्मा असम भाजपा की चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक थे। सर्वानन्द सोनोवाल इस समिति के अध्यक्ष थे। हिमन्त बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस के 09 विधायकों समेत दर्जनों दिग्गज नेताओं को भाजपा से जोड़ा। इनमें से आधा दर्जन विधायक भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव में आए और दो तो भाजपा सरकार में मंत्री भी बने। यह कवायद पार्टी में हिमन्त को मजबूत कर रही थी और जमीन पर भाजपा को। भाजपा का कार्यकर्ता आधार लगातार बड़ा होता गया और इसका परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला जब पार्टी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और 09 में उसे सफलता मिली। इस लोकसभा चुनाव के आते—आते हिमन्त असम की राजनीति और भाजपा दोनों में ‘अद्वितीय’ साबित हो चुके थे। फिर 2019 का लोकसभा चुनाव हो या हाल का विधानसभा चुनाव, हिमन्त ने जिस उम्मीदवार पर दांव आजमाया, अधिकांशत: वह दांव सही साबित हुआ। हाल के विधानसभा चुनाव में तो सिल्चर और होजाई जैसी सीटों पर उनके दांव का तमाम भीतरघातों के बाद भी सफल होना उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है। इस चुनाव के प्रचार अभियानों में हर तरफ हिमन्त की छाप दिख रही थी जिससे यह संकेत मिलने शुरू हो गए थे कि वे चुनाव बाद ‘ड्राइविंग सीट’ पर हो सकते हैं।
हिमन्त ने 1985 में गुवाहाटी के कामरूप एकेडमी स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज में दाखिला लिया। वे 1991 से 1992 तक कॉटन कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के महासचिव रहे। उन्होंने गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से राजनीति शास्त्र में 1990 में स्नातक और 1992 में स्नातकोत्तर किया। इसके बाद गुवाहाटी के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एलएलबी और गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। वे 1996 से 2001 तक गुवाहाटी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता भी रहे।
हिमन्त बिस्वा शर्मा का कांग्रेस से मोहभंग तरुण गोगोई के परिवारवाद के कारण हुआ था, जब तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई को पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका देने का उन्होंने विरोध किया था। उन्होंने कांग्रेस के 78 में से 52 विधायकों के समर्थन का दावा भी पार्टी आलाकमान के सामने पेशकर दिया था, लेकिन तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस सबको नकारते हुए गोगोई का साथ दिया था। परिणाम यह निकला कि भाजपा के रथ के सारथी बन हिमन्त ने गोगोई और राहुल दोनों को असम से उखाड़ दिया।
हिमन्त बिस्वा शर्मा एक अच्छे खेल प्रशासक भी हैं। सर्वसम्मति से उन्हें 2017 में भारतीय बैडमिंटन संघ का अध्यक्ष चुना गया था। वे असम बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे जून 2016 में असम क्रिकेट एसोसिएशन (एसीए) के अध्यक्ष बने। इससे पहले वे एसीए के उपाध्यक्ष थे।
अब भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें असम के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी है। उम्मीद है कि वे असम को बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और रोहिंग्या मुस्लिमों से बचाने के लिए निर्णायक कदम उठाएंगे।
स्वाति शाकंभरी
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