दिल्ली सरकार ने सिर्फ लोगों को धोखे में रखा। स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था की दुर्गति की। जिस मोहल्ला क्लीनिक का सबसे अधिक विज्ञापन इस सरकार ने किया, उसकी कहीं उपस्थिति नजर नहीं आ रही। यह सीधा—सीधा पैसों का अपव्यय नहीं तो और क्या है ?
पिछले साल की बात है। उत्तर पूर्वी दिल्ली के एक मोहल्ला क्लीनिक में डॉक्टर दंपति कोविड पीड़ित हो गए। बताया गया कि सऊदी अरब से लौटी एक महिला के संपर्क में आने की वजह से यह दोनों संक्रमित हुए। उसके बाद मोहल्ला क्लीनिक पर ताला लग गया। उसी दौरान यह कयास लगाया जाने लगा था कि दिल्ली के सारे मोहल्ला क्लीनिक को बंद कर दिया जाएगा। इस मुद्दे पर पिछले साल 4 अप्रैल को अरविन्द केजरीवाल का एक बयान प्रकाशित हुआ। जिसमें केजरीवाल कह रहे हैं,”यह दुख की बात है कि मोहल्ला क्लीनिक के डॉक्टर, उनकी पत्नी और बेटी को कोरोना संक्रमित पाया गया है, लेकिन इस दुर्घटना के साथ एक ग़लतफ़हमी दिल्ली में फैल रही है कि सरकार की मोहल्ला क्लीनिक बंद करने की कोई योजना है। यदि मोहल्ला क्लीनिक बंद होते हैं तो इससे लोगों को दूर-दूर बड़े अस्पतालों में जाना पड़ेगा। इसलिए आगे भी मोहल्ला क्लीनिक खुले रहेंगे। वहां मौजूद डॉक्टर और बाकी स्टाफ़ ज़रूरी एहतियात बरतेंगे, जिससे डॉक्टर भी सुरक्षित रहें और मरीज़ों को भी दिक्क़त न हो।”
जबकि इस बयान के तीन दिन पहले ही कपिल मिश्रा ने एक अप्रैल को एक ट्वीट कर केजरीवाल को इस सफाई के लिए मजबूर कर दिया था। कपिल ने लिखा,”दिल्ली में मौजपुर और बाबरपुर के मोहल्ला क्लीनिक के डॉक्टर्स को कोरोना होने के बाद 2000 लोगों को क्वारंटाइन किया गया है। मोहल्ला क्लीनिकों का करोड़ों का विज्ञापन, तमाशा खड़ा किया। आज ज़रूरत पर मोहल्ला क्लीनिक बंद हैं। ईलाज तो दूर, बीमारी फैला रहे हैं।”
कपिल सही साबित हुए। धीरे—धीरे दिल्ली के सभी मोहल्ला क्लीनिक पर ताला लगा दिया गया। स्वास्थ्य व्यवस्था का कथित तौर पर विश्व स्तरीय माडल जब दिल्ली को सबसे अधिक उसकी जरूरत है, ध्वस्त पड़ा हुआ है।
कहां तो महिलाओं के लिए खुलना था मोहल्ला क्लीनिक
मार्च में दिल्ली सरकार का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री एवं उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने फिर एक बार मोहल्ला क्लीनिक और दिल्ली के स्वास्थ्य की बात की तो लगा कि सरकार राजधानी के लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। मनीष ने अपने बजट भाषण में महिलाओं के लिए अलग मोहल्ला क्लीनिक शुरू करने की भी बात कही थी। दिल्ली सरकार के अनुसार— स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं में झिझक दूर करने के उद्देश्य से दिल्ली में 100 महिला मोहल्ला क्लीनिक खोले जाने की योजना है। इस बात को दो महीना हो गया, लेकिन इस दिशा में एक कदम भी सरकार आगे बढ़ी हो, नजर नहीं आ रहा।
बजट में सिर्फ महिला मोहल्ला क्लीनिक का ही जिक्र नहीं था बल्कि दिल्ली के हर नागरिक के हाथ में अगस्त तक हेल्थ कार्ड होने की बात भी है। दिल्ली को भूलना नहीं चाहिए कि अगस्त आने में तीन महीना ही शेष है। हेल्थ कार्ड के अलावा दिल्ली में ऑनलाइन हेल्थ इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम स्थापित किया जाना है। दिल्ली सरकार एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था बनाने का वादा कर रही है, जहां नागरिकों की बीमारी, उपचार, जांच रिपोर्ट, दवाइयां आदि की सारी जानकारी का डेटाबेस उपलब्ध रहेगा। जिससे चिकित्सकों को उपचार में सुविधा हो। यह तो है बजट में प्रावधान की बात। जबकि सच्चाई यह है कि अस्पताल में बिस्तर ना मिलने और आक्सीजन, वेंटीलेटर की कमी की वजह से लोगों की मौत हो रही है।
दिल्ली सरकार ने सिर्फ लोगोें को धोखे में रखा। स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था की दुर्गति की। जिस मोहल्ला क्लीनिक का सबसे अधिक विज्ञापन इस सरकार ने किया, उसकी कहीं उपस्थिति नजर नहीं आ रही। यह सीधा—सीधा पैसों का अपव्यय नहीं तो और क्या है ?
2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में सिर्फ 189 मोहल्ला क्लीनिक चलते हुए पाए गए। जबकि केजरीवाल सरकार का 1600 मोहल्ला क्लीनिक खोलने का वादा था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल की सरकार से उचित ही प्रश्न किया है कि यदि सरकार ने स्वास्थ्य का कोई मूलभूत ढांचा बनाया है और दिल्ली वाले इसका इस्तेमाल महामारी में नहीं कर सकते तो फिर इसका क्या मतलब है ? उच्च न्यायालय ने कहा कि कोरोना सिर्फ समृद्ध और सुविधा सम्पन्न लोगों को नहीं हो रहा। ये माेहल्ला क्लीनिक में जिस आय वर्ग के लोग आते हैं, उन्हें भी हाे सकता है। मोहल्ला क्लीनिक को लेकर दिल्ली सरकार को न्यायालय में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश मिला है।
दिल्ली सरकार के अनुसार उनके मोहल्ला क्लीनिक में जगह कम है और वहां वेटिंग एरिया नहीं है। वहां पर शारीरिक दूरी के नियमों का पालन नहीं हो सकता है। सरकार का यह भी कहना है कि कम संसाधनों के साथ चलने वाले मोहल्ला क्लीनिक का इस्तेमाल कोविड 19 जैसी बीमारी के ईलाज के लिए संभव नहीं है।
जबकि दिल्ली इस वक्त जिस हालत से गुजर रही है, ऐसे समय में उसे सहायता चाहिए। जिस तरह केजरीवाल पांच सितारा होटल पर अनावश्यक खर्च कर रहे हैं, उसकी जगह, हर एक मोहल्ला क्लीनिक में दस—बीस बिस्तर लगाकर, उसके साथ आक्सीजन, वेंटीलेटर की व्यवस्था करा सकते हैं। इसमें खर्च कम आएगा और अधिक से अधिक लोग इससे लाभान्वित भी हो सकेंगे। ऐसा मोहल्ला क्लीनिक मैदानों और स्कूलों में चल रहे अस्थायी कोविड केन्द्रों से बेहतर साबित होंगे। क्योंकि मोहल्ला क्लीनिक के पास अपने विशेषज्ञ डॉक्टर पहले से उपलब्ध हैं। कोविड 19 की इस संकट की घड़ी में मोहल्ला क्लीनिक के डॉक्टरों को भी तो सेवा का मौका मिलना चाहिए।
अब अगर मोहल्ला क्लीनिक को फिर से बहाल करने के लिए भी दिल्ली सरकार को केन्द्र सरकार की मदद चाहिए। जब बात—बात पर केजरीवाल को केन्द्र की ही उंगली पकड़ कर चलना है फिर वह इस्तीफा ही क्यों नहीं दे देते।
आशीष कुमार ‘अंशु’
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