दिल्ली के टीकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन के नाम पर बैठे कुछ कथित किसानों ने पश्चिम बंगाल की एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया। उसके कुछ दिन बाद ही वह कोरोना से पीड़ित हो गई और 30 अप्रैल को इस दुनिया से चल बसी। लेकिन तथाकथित इन किसानों ने उसकी मौत पर पर्दा डालने के लिए उसकी शवयात्रा निकाली, लेकिन युवती के पिता ने उनकी मंशा पूरी नहीं होने दी और उन्होंने एफआईआर दर्ज कराई तो लोगों के सामने आंदोलनकारियों का भेड़िया रूप सामने आया
प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली के टीकरी बॉर्डर पर कथित किसान आंदोलन में शामिल पश्चिम बंगाल की एक युवती का 14 अप्रैल को बलात्कार हुआ। तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उसे 27 अप्रैल को हरियाणा के बहादुरगढ़ के शिवम अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां पता चला कि उसे कोरोना भी हो गया और 30 अप्रैल को वहीं उसकी मौत हो जाती है। लेकिन दुनिया को इस मामले की खबर 11 दिन बाद तब पता लगी, जब युवती के पिता बंगाल से दिल्ली आए और उन्होंने एफआईआर दर्ज करवाई। हालांकि उन पर भी बलात्कारियों ने एफआईआर न दर्ज कराने का दबाव डाला, पर वे नहीं माने। एफआईआर में चार आंदोलनकारियों के साथ दो महिला कार्यकर्ताओं का नाम है। ये आंदोलनकारी हैं— अनूप सिंह चानौत, अंकुश सांगवान, अनिल मलिक और जगदीश बराड़। इन चारों पर बलात्कार करने का आरोप है। वहीं कविता आर्य और योगिता सुहाग नामक दो महिला कार्यकर्ताओं पर आरोप है कि बलात्कार के बाद इन दोनों ने युवती पर दबाव डाला कि वह इस मामले को ज्यादा तूल न दे।
हिसार का रहने वाला अनूप आम आदमी पार्टी का नेता है। वह आम आदमी पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुका है। आरोप है कि ये सभी लोग एक अप्रैल को चुनाव प्रचार के लिए पश्चिम बंगाल गए थे। चुनाव प्रचार के दौरान इन लोगों की भेंट चंदन नगर में उस युवती से हुई थी। इन लोगों ने उसे दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा और वह युवती मान भी गई। 11 अप्रैल को ये सभी उस युवती के साथ रेलगाड़ी से दिल्ली के लिए चले। यह भी कहा जा रहा है कि रेलागाड़ी में ही उस युवती के साथ छेड़छाड़ की गई। युवती ने इस बात की चर्चा फोन पर अपने पिता से भी की थी। इसके बाद भी वह युवती 14 अप्रैल को टीकरी बॉर्डर पहुंची। वहीं दो दिन तक उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।
इस घटना ने पिंजरा तोड़ से जुड़ी उन लड़कियों की याद दिला दी, जिन्होंने सीएए के आंदोलनकारियों की बात मानकर दिल्ली में फरवरी, 2020 में दंगा भड़काने में अहम भूमिका निभाई थी। इनमें से कई लड़कियां अब भी जेल में हैं और कुछ को जमानत मिल गई है। काश, बंगाल की वह युवती इन कथित आंदोलनकारियों की बात नहीं मानती तो आज वह जिंदा रहती।
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