कोरोना : चुनौतियों में से रास्ता
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कोरोना : चुनौतियों में से रास्ता

by WEB DESK
Apr 19, 2021, 11:35 am IST
in भारत, दिल्ली
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आलोक पुराणिक

अप्रैल 13,2021, दोपहर दो बजकर 34 मिनट, जब ये पंक्तियां लिखा जा रही हैं, तब मुंबई शेयर बाजार (मुंशेबा) का सूचकांक अपने पिछले साल के स्तर से करीब 58 प्रतिशत ऊपर था। सूचकांक निश्चय ही किसी अर्थव्यवस्था के आकलन का एकमात्र पैमाना नहीं होता। पर इससे यह जरूर साफ होता है कि इस बार कोरोना को लेकर उतना भय व्याप्त नहीं है, जितना पिछले साल था। कोरोना से निबटने के लिए भय नहीं, तैयारियों की जरूरत है, पर अर्थव्यवस्था के लिए यह उतना मारक नहीं साबित होगा, जितना मारक पिछले साल साबित हुआ था जब अप्रैल-जून तिमाही 2020 में अर्थव्यवस्था करीब 25 प्रतिशत सिकुड़ गयी थी।

रिजर्व बैंक का आकलन
देश में कोरोना के बढ़ते मामलों और अर्थव्यवस्था पर इसके असर को लेकर रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बयान दिया है। उन्होंने विश्वास दिलाते हुए कहा कि कोविड की मौजूदा लहर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगी और विकास की रफ्तार जारी रहेगी। रिजर्व बैंक गवर्नर ने कोरोना की वजह से देश में फिर से लॉकडाउन लगाने की संभावना से भी इनकार किया है। उनका यह बयान उस वक्त आया है जब देश में कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से कई राज्यों के शहरों में लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू के जरिये सख्ती बढ़ा दी गई है। उन्होंने कहा कि देश की आर्थिक गतिविधियों में सुधार जारी रहना चाहिए और वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए 10.5 प्रतिशत के वृद्धि अनुमान को घटाने की जरूरत नहीं लगती। रिजर्व बैंक के गवर्नर जब अर्थव्यवस्था की मजबूती को लेकर आश्वस्त हैं, तो एक स्तर पर चिंताएं कम होनी चाहिए। पर कुछ बातों को साफ समझ लेना जरूरी है। कोरोना अभी गया नहीं है। यहां यह भी समझा जाना चाहिए कि लॉकडाउन अब रास्ता नहीं है, सावधानी और टीकाकरण, ये ही अब विकल्प बचे हैं। लॉकडाउन के जो परिणाम अर्थव्यवस्था पर पड़ते हैं, उन्हें भी देखा जा चुका है यानी लॉकडाउन बहुत ही सीमित क्षेत्र और बहुत सीमित अवधि के लिए तो विकल्प हो सकता है पर पूरे देश के लिए लॉकडाउन का विकल्प अब नहीं सोचा जा सकता। यानी अब महाराष्ट्र जैसे चुनिंदा राज्यों पर फोकस किये जाने की जरूरत है। यहां पर टीकाकरण की रफ्तार बढ़ायी जानी चाहिए। टीके के लिए पूरे देश के लिए जो दिशा-निर्देश हैं, उन्हें राज्य विशेष की स्थितियों के हिसाब से समायोजित किया जा सकता है। जैसे नये निर्देशों के अनुसार 1 अप्रैल से 45 साल से ज्यादा की उम्र वाले लोग टीकाकरण करवा सकते हैं, महाराष्ट्र जैसे बुरी तरह से प्रभावित राज्यों में तो उम्र की सीमा हटा ही दी जानी चाहिए, जिसका मन करे, वह लगवा ले टीका, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। रिजर्व बैंक के गवर्नर की इस आशा पर हमें भरोसा होना चाहिए कि अब बगैर लॉकडाउन के ही हम कोरोना से पार पा लेंगे।

पटरी पर जीएसटी
मार्च 2021 में जीएसटी संग्रह बढ़कर 1.23 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, जो पिछले साल मार्च 2020 के मुकाबले 27 प्रतिशत अधिक है। जीएसटी राजस्व पिछले छह महीनों के दौरान एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है। इस दौरान तेजी से वृद्धि के रुझानों से महामारी के बाद आर्थिक सुधार के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। यानी कुल मिलाकर करों के आईने में यह साफ दिखायी पड़ता है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है पर चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं।

लॉकडाउन का अर्थशास्त्र
कोरोना वायरस संक्रमण की नई लहर से देश में आंशिक रूप से ‘लॉकडाउन’ लगाए जाने की आशंकाओं के बीच उद्योग जगत का मानना है कि ऐसा हुआ तो श्रमिकों और माल की आवाजाही प्रभावित होगी तथा इसका औद्योगिक उत्पादन पर बड़ा असर पड़ेगा। उद्योग मंडल सीआईआई की ओर से कंपनियों के सीईओ के बीच कराए गए सर्वे के आधार पर सुझाव दिया गया है कि ‘कोविड कर्फ्यू’ और प्रभावित जगहों पर ‘सूक्ष्म-स्तरीय नियंत्रण की रणनीतियों’ के साथ-साथ संक्रमण से बचने के उपयुक्त व्यवहार (मास्क पहनना और दूरी बनाये रखना आदि) अपनाने की रणनीति संक्रमण पर काबू पाने में प्रभावकारी रहेगी। सीआईआई के सर्वे में शामिल ज्यादातर सीईओ ने यह संकेत दिया, ‘आंशिक रूप से लॉकडाउन लगाये जाने से श्रमिकों के साथ-साथ वस्तुओं की आवाजाही प्रभावित हो सकती है। इससे औद्योगिक उत्पादन पर उल्लेखनीय रूप से प्रतिकूल असर पड़ सकता है।’ सर्वे में शामिल सीईओ में से आधे से ज्यादा ने कहा है कि अगर आंशिक ‘लॉकडाउन’ के दौरान मजदूरों के आने-जाने पर पाबंदी लगती है, तो उनका उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

56 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि वस्तुओं की आवाजाही अगर प्रभावित होती है, तो उन्हें 50 प्रतिशत तक उत्पादन का नुकसान हो सकता है। सीआईआई के अनुसार कोरोना की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन जरूरी है। साथ ही उद्योगों के कामकाज को सामाजिक रूप से एक जगह एकत्रित होने पर पाबंदी जैसे उपायों के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए। उद्योग मंडल के अनुसार पाबंदियों के प्रभाव को कम करने के लिए सर्वे में शामिल करीब 67 प्रतिशत सीईओ ने पात्र लोगों के टीकाकरण के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई।

सीआईआई का यह सर्वेक्षण एक बात तो साफ करता है कि समग्र लॉकडाउन या आंशिक लॉकडाउन से भले ही कोरोना संक्रमण की घटनाएं कम हो जायें, पर इससे अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पड़ती है। अर्थव्यवस्था की चोट के भी गहरे असर हैं। अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल तब और धुंधले दिखायी देते हैं, जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में कोरोना के मामलों पर नियंत्रण लगा पाना असंभव दिखायी दे रहा है। कोरोनाग्रस्त लोगों के लिए जरूरी दवाइयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा, कोरोना के टीकों की अपर्याप्तता की खबरें हैं। दरअसल लोग कोरोना के अलावा उन अव्यवस्थाओं से परेशान हैं, जो शाश्वत हैं और जिनका सिर्फ कोरोना से संबंध नहीं है। आॅक्सीजन की कमी के समाचार हैं। कुल मिलाकर कोरोना ने इस देश की चिकित्सा व्यवस्था की कमजोरी को एक बार फिर रेखांकित किया है और चिंता की बात यह है कि यह कहीं चिंता-चिंतन का विषय नहीं है। देश की जनता को यह समझ लेना चाहिए कि ढंग से मास्क पहनकर, बराबर हाथ धोकर, सिर्फ काम के लिए घर से बाहर निकलकर खुद को यथासंभव कोरोना मुक्त रखना चाहिए। यदि आप सतर्क नहीं होंगे तो सरकार आपकी ज्यादा मदद नहीं कर पाएगी।

चमक और चुनौतियां
आईएमएफ इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 2021 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर के 12.5 फीसदी रहने का अनुमान है, जो चीन की वृृद्धि दर से भी अधिक है। आईएमएफ रिपोर्ट के अनुसार 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत के आसपास आ जाएगी। चीन की वृद्धि दर के 2021 में 8.6 प्रतिशत और 2022 में 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। यानी कुल मिलाकर भारत की विकास दर के चीन के मुकाबले बेहतर रहने के आसार हैं। आईएमएफ को उम्मीद है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौटेगी। आईएमएफ के आकलन में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2021 में 6 प्रतिशत और 2022 में 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। समग्र लॉकडाउन यानी सब कुछ बंद, इस रणनीति से एक हद तक कोरोना के प्रसार को रोका जा सकता है, पर यह नीति अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर चोट करती है। पिछले साल के समग्र लॉकडाउन के अनुभव हमारे सामने हैं। तबाह रोजगार, तबाह धंधे सबने देखे हैं। अब दो ही विकल्प हैं जिन पर अमल होना चाहिए। कोविड-आचार का सम्यक् पालन, हरेक को अपनी जिम्मेदारी समझनी है, जो ना समझे, उसे दंडशुल्क के जरिये समझाई जाए।
कुल मिलाकर उद्योग का चक्का बंद नहीं होना चाहिए, सावधानियां बढ़ाई जानी चाहिए और टीकाकरण की रफ्तार तेज होनी चाहिए। रास्ते चुनौतियों से ही निकलेंगे। ल्ल

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