फरवरी 2020 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान दिल्ली में जैसी हिंसा हुई थी वैसी ही हिंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे के बाद ढाका मेंहुई। क्या इन सारी घटनाओं का आपस में कोई संबंध है? क्या भारत में जो हुआ और बांग्लादेश में जो हुआ वह किसी अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी नेटवर्क की निगरानी में चल रहा है
कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन ‘हिफाजत ए इस्लाम’ का बांग्लादेश में हुई हिंसा के पक्ष में दिया गया बयान, भारत में सेकुलरिज्म की राजनीति करने वालों को मुंह चिढ़ा रहा है। बयान को आए अब 72 घंटे से ऊपर हो चुका है लेकिन भारत के कथित सेकुलर दलों और बुद्धिजीवियों ने इसका संज्ञान तक नहीं लिया। ‘हिफाजत ए इस्लाम’ के अनुसार — बांगलदेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान ने एक सेकुलर राष्ट्र के लिए संघर्ष किया। कट्टरपंथी संगठन के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री मोदी साम्प्रदायिक हैं। इसलिए बांग्लादेश में उनका विरोध हुआ। ऐसा कहने वाला संगठन ‘हिफाजत ए इस्लाम’ बांग्लादेश में आईएसएआई के इशारे पर चलने वाला खिलौना माना जाता है। जिसे सऊदी के शेखों से पैसा मिलता है। कथित तौर पर सेकुलरिज्म की दुहाई देने वाला यह संगठन संविधान से बड़ा अल्लाह को मानता है। वह अल्लाह निन्दा के कानून के पक्ष मेंं खड़ा है। इस कथित सेकुलर संगठन की मांग है कि जो अल्लाह को सर्वश्रेष्ठ न माने और खुदा की आलोचना करे उसे मौत की सजा दी जाए।
26—27 मार्च को जब प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश में थे तो इसी संगठन के लोगों ने बांगलदेश में उत्पात मचाया। इनके उत्पात से वहां की पुलिस भी नहीं बच सकी। 26 पुलिस वाले घायल हुए। इस हिंसा की चपेट में कई हिंदू मंदिर आए। मतलब जो सेकुलर होने की दुहाई दे रहा है, उसके प्रदर्शनों की आग में सबसे अधिक हिन्दू ही झुलस रहे हैं। बांग्लादेश में हिन्दुओं की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है।
बांग्लादेश खुफिया विभाग की जो रिपोर्ट अब सामने आ रही है, उसे पढ़कर ऐसा लग रहा है कि यह पूरी योजना उन्हीं लोगों ने बनाई है जो शाहीन बाग में थे। जो दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे कथित किसान आंदोलन में हैं। हिंसा की पटकथा एक जैसी है।
मोदी के खिलाफ चलने वाले हिंसक प्रदर्शनों में भी बच्चों को और महिलाओं को सामने रखने की सिफारिश की गई थी। दिल्ली दंगों को जिन लोगों ने कवर किया है, उन्हें बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम के षडयंत्र और दिल्ली में भड़की हिंसा के बीच समानता दिख ही जाएगी। ‘जमात ए इस्लामी’ ने ढाका में बड़ी संख्या में अपने लोगों को इकट्ठा होने का निर्देश दिया हुआ था। उन्होंने हिंसा के बीच बच्चों और महिलाओं की संख्या अधिक हो, इसके लिए अलग से प्रयास किया।
बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियां ही कह रही हैं कि ‘जमात ए इस्लामी’ के कट्टरपंथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान हिंसा के माध्यम से ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते थे ताकि शेख हसीना की सरकार में कानून व्यवस्था की खराब स्थिति पर सवाल उठाए जा सकें।
‘जमात ए इस्लामी’ ने बड़ी चालाकी के साथ विभिन्न इस्लामिक छात्र संगठनों से, जमात के महिलाओं के संगठन से महिलाओं और बच्चों को अलग—अलग बहाने से ढाका में प्रवेश कराया। अब प्रवेश के बाद उनकी योजना इन्हें तीन हिस्सों में बांटने की थी। खुफिया रिपोर्ट ही यह बताती है कि छात्र संगठनों से आए समूह को मोदी के विरोध में चल रहे विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होना था। दूसरे समूह को वामपंथी संगठनों के साथ मिलकर मोदी के विरोध में निकल रही रैली में शामिल होना था। तीसरा समूह ‘हिफाजत ए इस्लाम’ के साथ मिलकर राजनीतिक दलों के प्रदर्शनों में शामिल होने वाला था। यह बाहर से आए जमात और हिफाजत के कैडर के लोग ढाका में हिंसा फैलाकर वापस अपने—अपने घर को लौट जाते।
बांंग्लादेश की एक जांच एजेंसी की ही रिपोर्ट है कि इस तरह अव्यवस्था फैलाकर ‘हिफाजत ए इस्लाम’, ‘जमात ए इस्लामी’ और बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी मिलकर आवामी लीग सरकार को गिराने की योजना बना रही थी। मतलब बांग्लादेश में कट्टरपंथी और वामपंथी संगठन बांग्लादेशी राष्ट्रवादी पार्टी के साथ षडयंत्र कर रहीं हैं कि शेख हसीना बांग्लोदश की प्रधानमंत्री ना रहे और मोदी विरोध से बांग्लादेश में भारत के लिए नफरत का माहौल बने।
बहरहाल सोचने वाली बात यह है कि जिस तरह भारत में मोदी के विरोध में सारा विपक्ष एक हो गया है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस और वामपंथी एक घाट का पानी पी रहे हैं। उसी तरह मोदी के बांग्लादेश पहुंचते ही सारी कट्टरपंथी शक्तियां एक हो गईं। जिस तरह भारत के अंंदर शाहीन बाग से लेकर दिल्ली दंगे तक की साजिश में विपक्ष के नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। वैसे ही मोदी के बांग्लादेश पहुंचने पर उसी तरह का षडयंत्र, उसी तरह की हिंसा, वहां दिखाई दे रही है। क्या इन सारी घटनाओं का आपस में कोई संबंध है? क्या भारत में जो हो रहा है और बांग्लादेश में जो हुआ, किसी अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी नेटवर्क की निगरानी में चल रहा है। यह सोचने वाली बात है।
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