नोएडा की रहने वाली मोनिका अग्रवाल से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि दिल्ली जाना उनके लिए एक बुरे सपने जैसा हो गया है। उन्हें महज 20 मिनट के सफर को तय करने में दो घंटे का समय लगता है
किसान आंदोलन के चलते गाजियाबाद और नोएडा से दिल्ली आने और जाने में परेशानी का सामना कर रहे स्थानीय लोग परेशान हो चुके हैं। उन्होंने किसान आंदोलन समेत कई अन्य समस्याएं भी बताई हैं।
नोएडा से दिल्ली आते समय लगने वाले भारी ट्रैफिक जाम का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस कमिश्नर और केंद्र को नोटिस जारी किया है। वहीं गाजियाबाद कौशांबी की यातायात अव्यवस्था पर उत्तर प्रदेश और दिल्ली के उच्च अधिकारियों की नौ सदस्यीय कमेटी गठित करते हुए कमेटी से ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान मांगा है।
दरअसल, मार्केटिंग के पेशे से जुड़ी और नोएडा की रहने वाली एक महिला मोनिका अग्रवाल ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले पर केंद्र और दिल्ली पुलिस को निर्देश करने की मांग की थी। मोनिका ने याचिका दाखिल कर कहा है कि वह सिंगल पेरेंट ( एकल माता) हैं और उन्हें काम के सिलसिले में और स्वास्थ्य समस्याओं के चलते उन्हें दिल्ली जाना पड़ता है, लेकिन दिल्ली जाना अब उनके लिए एक बुरे सपने जैसा हो गया है, महज 20 मिनट के सफर को तय करने में 2 घंटे का वक्त लगता है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई के दौरान महिला ने कोर्ट के सामने खुद अपना पक्ष रखा और कहा कि इससे पहले भी कोर्ट की तरफ से सार्वजनिक सड़कों को बाधित न किए जाने को लेकर कई अहम दिशानिर्देश जारी किए जा चुके हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन की तरफ से इन्हें अमल में नहीं लाया गया।
महिला की दलीलों पर कोर्ट ने दिया ये जवाब
कोर्ट ने महिला की दलीलों को सुनकर कहा कि अगर ऐसा हो रहा है तो ये स्थानीय प्रशासन की विफलता है। कोर्ट ने नोटिस जारी कर सभी संबंधित पक्षों को निर्देश का पालन करने और 9 अप्रैल तक निर्देश पर उठाए कदमों की जानकारी और जवाब देने के लिए कहा है। अब इस मामले पर कोर्ट अगली सुनवाई 9 अप्रैल को करेगी। बता दें कि जस्टिस संजय किशन कौल ने ही नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग धरने मामले में एक जनहित याचिका पर फैसला दिया था.
किसान आंदोलन के चलते 4 महीनों से बंद हैं कई रस्ते
उस फैसले में कौल ने साफ तौर पर कहा था कि शांतिपूर्ण धरना हर नागरिक का अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक जगहों को अनिश्चितकाल काल तक के लिए बाधित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि ये स्थानीय प्रशासन का कर्तव्य है कि वो कानून के अनुसार उचित कार्रवाई कर बाधित स्थान को खाली कराए। केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर पिछले 4 महीने से धरने पर बैठे हुए हैं और दिल्ली आने-जाने के रास्तों को बंद किया हुआ है, इस मामले को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिका मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में लंबित हैं।
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