प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले ‘वैश्विक ऊर्जा एवं पर्यावरण नेतृत्वकर्ता पुरस्कार’ से बढ़ी भारत की साख। दुनिया ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत की भूमिका को स्वीकारा। यह भारत के लिए गर्व और सम्मान की बात
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘सेरावीक वैश्विक ऊर्जा एवं पर्यावरण नेतृत्वकर्ता पुरस्कार’ दिया गया है। किसी भी पुरस्कार की महत्ता उसे प्रदान किए जाने के उद्देश्यों की पूर्ति में किए गए कार्यों को प्रोत्साहित करने में निहित होती है। इस पुरस्कार की अहमियत जलवायु संकट के दौर में इसलिए और बढ़ जाती है, क्योंकि यह र्इंधन के वैकल्पिक विकास और पर्यावरण संरक्षण की सफलताओं को व्यक्त करता है। इस पुरस्कार ने ऊर्जा की वैश्विक परिधि में भारत की बढ़ती साख के साथ जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए भारतीय दृष्टिकोण की स्वीकार्यता को भी दर्शाया है।
ऊर्जा से अंत्योदय की इस उपलब्धि पर चर्चा से पहले इंडिया एनर्जी फोरम सेरावीक 2019 से जुड़ी एक प्रेरक घटना याद आती है। दिल्ली में आयोजित इस सम्मेलन के लिए तय आतिथ्य क्रम में मिट्टी के कुल्हड़ों में चाय परोसी जा रही थी। ऊर्जा क्षेत्र के इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय समागम में जहां विश्व के कोने-कोने से तेल व गैस क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ और प्रतिनिधि शिरकत कर रहे थे, वहां स्वदेशी का यह आग्रह भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता का अनुपम दृश्य था। कार्यक्रम में सेरावीक के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. डेनियल येरगिन भी उपस्थित थे। व्यस्त सत्रों के बीच येरगिन ने चाय का कुल्हड़ हाथ में लेकर वहां उपस्थित लोगों की ओर एक संतोष भरा अभिवादन प्रेषित किया। ऊर्जा विशेषज्ञों ने येरगिन से जब वैश्विक र्इंधन परिदृश्य व पर्यावरणीय बदलावों में भारत की भूमिका पर उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने कुल्हड़ की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘सही अर्थों में पर्यावरण के प्रति भारत जैसी निष्ठा हर देश को दिखानी होगी।’’
1983 में स्थापित कैम्ब्रिज एनर्जी रिसर्च एसोसिएट्स वीक (सेरावीक) पिछले कुछ दशकों में ही ऊर्जा क्षेत्र की जानकारी को साझा करने और अभिमत निर्माण की प्रतिनिधि संस्था बनकर उभरी है। यह ऊर्जा क्षेत्र का वह मंच है जो दुनिया के कोने-कोने में तय होने वाली ऊर्जा संबंधित नीतियों व प्रयोगों का पर्यावरणीय दक्षता के आधार पर विश्लेषण करता है। अमेरिका के ह्यूस्टन में हर साल आयोजित होने वाले सेरावीक के सालाना सम्मेलन में वैश्विक प्रतिनिधि ऊर्जा व जलवायु क्षेत्र की चुनौतियों व उसके समाधान पर मंथन करते हैं। मार्च के पहले सप्ताह में सेरावीक का वार्षिक सम्मेलन वर्चुअल माध्यम से आयोजित किया गया, जहां प्रधानमंत्री मोदी को यह सम्मान प्रदान किया गया। इस वर्ष सम्मेलन का विषय ‘नया परिदृश्य : ऊर्जा, जलवायु और भविष्य के चित्रण’ थीम पर केंद्रित था। डेनियल येरगिन ने इस अवसर पर कहा कि ऊर्जा संक्रमण के दौर में भारत का पर्यावरण संवर्धन के साथ ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्य हासिल करना भावी पीढ़ी के लिए अच्छा संकेत है।
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामंजस्यपूर्ण नीतियों का पक्षधर रहा भारत आज पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक वैश्विक भागीदारी के केंद्र में है। मौजूदा दौर में जब ऊर्जा व पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को लेकर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में हितों का टकराव देखने को मिल रहा है, ऐसे समय में भारत का समाधानपरक नीतियों के साथ आगे आना नई राह दिखाने वाला है। हमने 2016 में पेरिस समझौते पर न सिर्फ हस्ताक्षर किए, बल्कि राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में जब अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर हुआ उस वक्त भी प्रधानमंत्री मोदी जलवायु परिवर्तन को लेकर विकसित और विकासशील देशों को एकजुट करने में जुटे रहे।
कार्बन तटस्थता को लेकर भारत के लक्ष्य अत्यंत महात्वाकांक्षी हैं। मौजूदा नेतृत्व ने 2005 के स्तर की तुलना में इस दशक के अंत तक कार्बन उत्सर्जन में 30 से 35 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य तय किया है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भारत बिजली उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा गैर जीवाश्म आधारित र्इंधन पर केंद्रित करने की प्रतिबद्धता पहले ही प्रकट कर चुका है। 2015 में फ्रांस के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन यदि अस्तित्व में आया तो उसके पीछे नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सौर गठबंधन पहल ने 2030 तक सौर ऊर्जा माध्यमों से एक ट्रिलियन वाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया है। इन आंकड़ों को हासिल करने के लिए भारत ने परंपरागत र्इंधन नीति को हरित ऊर्जा की ओर उन्मुख करते हुए साहसिक निर्णय लिए हैं। आज गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर हम जिस प्रभावी गति से कदम बढ़ा रहे हैं, उससे इस दशक के अंत तक ऊर्जा खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगी। पिछले पांच वर्ष में भारत ने नवीनीकृत ऊर्जा संसाधनों के विकास में लंबी छलांग लगाई है। कार्बन उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य अक्षय ऊर्जा संसाधनों के विकास पर निर्भर है। वर्तमान में कुल राष्ट्रीय बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा स्रोतों की लगभग 90,000 मेगावाट से अधिक हिस्सेदारी है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक पिछले पांच वर्ष में हमारी नवीनीकरण ऊर्जा क्षमता 162 प्रतिशत बढ़ी है। केंद्र सरकार ने 2022 तक 175 गीगावाट और 2035 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसी क्रम में पीएम मोदी और उनके स्वीडीश समकक्ष स्टीफन लोफवेन ने हाल ही में जैव अपशिष्ट से ऊर्जा ऊत्पादन की दिशा में द्विपक्षीय सहयोग को प्रगाढ़ करने पर जोर दिया है। इन बहुआयामी प्रयासों का परिणाम यह है कि भारत वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में शीर्ष 10 देशों में स्थान बनाने में सफल हुआ है। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइआॅक्साइड का उत्सर्जन 1.8 टन रहा, जबकि अमेरिका में 16 और सऊदी अरब में लगभग 20 टन रहा।
ऊर्जा स्रोतों में विविधता और पर्यावरण को पुनर्जीवन प्रदान करने की यह यात्रा आर्थिक विकास की गति के साथ समानांतर रूप से बढ़ती है। देश में चल रहे वनीकरण कार्यक्रम को जिस प्रकार सामुदायिक प्रयासों से बढ़ाया जा रहा है, वह अब सामाजिक जिम्मेदारी का रूप ले रहा है। इससे निकट भविष्य में 260 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि को उर्वर भूमि में तब्दील करने का लक्ष्य है। प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौतियों से मुकाबले के लिए जलवायु न्याय को समय की जरूरत बताया है। इस नीति का सबसे मजबूत पक्ष विकासशील व गरीब देशों की ऊर्जा जरूरत का समाधान है। इसी क्रम में दिसंबर, 2020 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से आयोजित वैश्विक जलवायु सम्मेलन में भारत ने पर्यावरणीय अपकर्षण से निबटने के लिए एकीकृत, व्यापक और समग्र तंत्र की स्थापना का आह्वान किया।
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कुछ लोग भारत की चाय और योग को लांछित करने की कोशिश कर रहे हैं, उनको करारा जवाब देता है डॉ. डेनियल का कुल्हाड़ में चाय पीना
मौसम में हो रहे बदलावों से जुड़ी हर रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि धरती में परिमापित कुल कार्बन उत्सर्जन में अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ एक-दूसरे को पछाड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन ने अपनी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान रिपोर्ट में पर्यावरण संरक्षण के प्रति इन देशों की गंभीरता को उजागर किया है। बावजूद इसके अमेरिका जहां पेरिस समझौते को लेकर उदासीन बना रहा, वहीं चीनी ड्रैगन लगातार अपनी ऊर्जा जरूरत के लिए कोयला आधारित संसाधनों का अतिशय प्रयोग कर रहा है। ऐसी परिस्थितियों में जलवायु संकट पर वर्षों से शेष दुनिया को अपनी सुविधा के नाम पर हांकने वाली कथित महाशक्तियों की अधिनायकवादी दृष्टि को भारत अपने सामंजस्यवादी दृष्टिकोण से खारिज कर रहा है। ऊर्जा और पर्यावरण के क्षेत्र में यह नेतृत्व हम उस दौर में दुनिया को प्रदान कर रहे हैं, जब विकास की तीव्र आकांक्षाओं के बीच हमारे यहां र्इंधन खपत दोगुनी रफ्तार से बढ़ रही है।
कुदरत के प्रति मानवीय दायित्वों के निर्वहन के लिए दूसरी आर्थिक महाशक्तियों का अनुगामी बनने के बजाए भारत का नेतृत्वकर्ता की भूमिका में आना, हमारी उस महान संस्कृति का वैश्विक प्राकट्य है जो प्रकृति व पर्यावरण के सह-अस्तित्व से उर्वर हुई है। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में भारत में पर्यावरण संरक्षण सनातन काल से हर नागरिक के आचरण का हिस्सा रहा है। आज दुनिया को ऊर्जा व पर्यावरण जनित वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए एक बार पुन: स्वदेशी के उसी मार्ग पर चलना होगा, जिसके उन्नायक महान पर्यावरण संरक्षक महात्मा गांधी रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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