पड़ोसी देश पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को लेकर जुल्म और ज्यादतियों की वारदातें बेतहाशा बढ़ी हैं। जहां हिंदू अल्पसंख्यकों की बहू-बेटियों के अपहरण और कन्वर्जन का खतरा चुनौतीपूर्ण हद तक पहुंच गया है, वहीं शिया और ईसाई समुदाय के विरुद्ध ईशनिंदा का मुकदमा ठोंक कर उन्हें फांसी के तख्ते पर पहुंचाने की साजिश गहरा गई है। इसी क्रम में पाकिस्तान की एक अदालत ने फिर एक ईसाई को मौत की सजा सुनाई है।
पाकिस्तान का ईसाई समुदाय अधिकतर पंजाब और सिंध प्रांत में बसा है। इन दो प्रांतों में ही ईशनिंदा कानून के दुरुपयोग के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। लाहौर स्थित सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के एक आंकड़े के अनुसार, पिछले साल पाकिस्तान में सबसे ज्यादा 200 ईशनिंदा के मामले दर्ज हुए। संस्था का कहना है कि 1987 के बाद से पंजाब और सिंध प्रांत में ईशनिंदा कानून के दुरुपयोग के मामले बढ़े हैं। यह बढ़ोतरी सर्वाधिक 76 प्रतिशत पंजाब में और 19 प्रतिशत सिंध में दर्ज की गई।
यह सच है कि पाकिस्तान ऐसे मामलों में वहां की पुलिस और कोर्ट का झुकाव आरोपियों की तरफ होता है, जिसके कारण ईशनिंदा के आरोपी का जेल की सलाखों के पीछे जाना लगभग तय माना जाता है। पिछले एक पखवाड़े में कराची के एक गार्मेंट फेक्ट्री और एक क्लिनिक की नर्सिंग स्टाफ पर उनके साथियों ने ईशनिंदा का आरोप लगाकर धुनाई कर दी थी। अधमरा करने के बाद उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया था। मगर सबूत नहीं होने के कारण उन्हें बड़ी मुश्किल से छुड़ाया जा सका।
मगर ऐसे भाग्यशाली कम ही होते हैं। ऐसे ही लोगों में सज्जाद मसीह गिल है। पैगंबर मुहम्मद के बारे में अनुचित बातें कहने के आरोप में लाहौर उच्च न्यायालय ने एडवेंटिस्ट चर्च के सदस्य सज्जाद मसीह गिल को अपराधी करार देते हुए मौत की सजा सुनवाई है। यह मामला कोर्ट में सात वर्षों तक चला। इस दौरान आरोपी को जेल के अंदर और उसके परिजनों को जेल के बाहर प्रताड़ित किया गया।
मामला कुछ यूं है
एक दशक पहले दिसंबर, 2011 में पंजाब के गुजरां शहर में रहने वाले सज्जा मसीह गिल पर उसके एक दोस्त ने ईशनिंदा का आरोप लगाया था। कहते हैं कि चर्ज में मसीही चर्चा के दौरान गिल ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कुछ गलत बातें कहीं थीं। निचली अदालत से होता हुआ यह मामला जुलाई, 2013 में हाईकोर्ट पहुंचा। अब इस मामले में मौत की सजा सुनाई गई है। फैसले में 314,500 रुपये का जुर्माना भी शामिल है। लाहौर हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई इस सजा को लेकर गिल परिवार में मातम छाया हुआ है। हालांकि इस मामले में परिजन सुप्रीम कोर्ट जाने की बातें कह रहे हैं। मगर अब तक जिस तरह का कोर्ट का रवैया रहा है, उसे देखते हुए गिल के परिजनों को इंसाफ मिलने की संभावना कम ही लगती है। यही नहीं 283,280 वर्ग मीटर में फैली एशिया की सबसे बड़ी जेल माने जाने वाले साहिवाल के सेंट्रल जेल में गिल पर हमले भी हो चुके हैं। यहां तक कि 2015 में जब उसके भाई और भतीजे जेल से गिल से मिलकर लौट रहे थे, तब भी उन पर जानलेवा हमला किया गया था। कोर्ट में उनकी पैरवी करने वाले वकीलों को भी हथियारबंद लोग धमकी दे चुके हैं।
नफरत से भरे हैं बहुसंख्यक
पाकिस्तान का ईसाई समुदाय अधिकतर गरीब है। ऐसे में यदि वे किसी मुसीबत में फंसते हैं तो ईसाई संगठन उनकी सहायता को आगे आता है। सज्जाद मसीह गिल के मामले में भी
इंजील एसोसिएशन उसकी सहाता कर रही है। 2016 में एसोसिएशन द्वारा गिल को उपलब्ध कराए गए दो वकीलों को कसूर और लाहौर की सड़कों पर हथियारबंद लोग पैरवी न करने की धमकी दे चुके हैं। अल्पसंख्यक ईसाइयों के प्रति बहुसंख्यकों के दिलों में किस कदर नफरत है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कोर्ट द्वारा मौत की सजा सुनाने पर एक मुस्लिम वकील ने अपने फेसबुक पोस्ट में खुशी जाहिर की।
ईशनिंदा में मौत
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के तहत अधिकतम मौत की सजा है। पैंबर, इस्लाम के बारे में बातें कहने वालों को अधिकतम अजीवन कारावास और मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है। बचाव पक्ष के वकीलों में एक जीशान अहमद अवन का कहना है कि इस मामले में अदालत ने आरोपी पक्ष के इस तर्क को स्वीकार लिया कि ईशनिंदा के तहत गिल को मृत्युदंड की सजा एकमात्र सजा है। उनकी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने मृत्युदंड को आजीवन कारावास में नहीं बदला। पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून में पैगंबर मुहम्मद के अपमान के लिए अधिकतम सजा मौत है, जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अन्य मत—पंथों के अनुयायियों और अल्पसंख्यकों जैसे शिया और ईसाई के खिलाफ इस कानून का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले महीने लाहौर उच्च न्यायालय ने शगुफता कौसर और उनके पति शफकत इमैनुएल की अपील पर सुनवाई के बिना ही ईसाई दंपत्ति को ईशनिंदा का दोषी करार देते हुए सात वर्षों के बाद मौत की सजा सुना दी थी। w.html
टिप्पणियाँ