भारत के सांस्कृतिक गौरव का दर्शन
July 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

भारत के सांस्कृतिक गौरव का दर्शन

by WEB DESK
Mar 4, 2021, 08:21 pm IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

कुम्भ जैसे पर्व मनुष्य को आत्मोत्कर्ष के ऐसे ही सुअवसर उपलब्ध कराते हैं।मनुष्य के अंतस में मन, आत्मा और बुद्धि के संतुलित होने पर उस पर ज्ञान गंगा की अमृत वर्षा होती है। कुम्भ के अमृतरूपी जल के स्पर्श मात्र से मनुष्य के जन्म-जन्मांतरों के पाप कट जाते हैं; यही है आस्था सनातनधर्मियों की

सनातन धर्म में कुम्भ यानी कलश को पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। पूर्णता के इस चरम लक्ष्य की प्राप्ति का सर्वसुलभ उपाय बताकर वैदिक ऋषियों ने कुम्भ पर्व की गरिमा का बखान किया है। माना जाता है जैसे कुम्भकार पंच तत्वों से कुम्भ की संरचना करता है, उसी प्रकार पंच तत्वों से इस सृष्टि का सृजन हुआ है। आध्यात्मिक चेतना से जुड़ा अमृतपर्व कुम्भ हमारे राष्ट्र के समन्वयात्मक सांस्कृतिक जीवन का व्यावहारिक आधार है।

हर सनातन धर्मावलम्बी समुद्र से अमृत पाने की कामना से सागर मंथन, उससे चौदह रत्न और अंत में अमृत निकलने की अंतर्कथा करीब-करीब जानता है। इस पौराणिक कथानक के अनुसार अमृत पाने के द्वंद्व में देवों व दानवों के बीच लगातार बारह वर्ष तक घनघोर युद्ध चला। इस युद्ध के दौरान अमृत कलश की सुरक्षा में तैनात इंद्र के पुत्र जयन्त के इधर-उधर छिपते समय कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती के चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जयिनी और नासिक में गिरीं। कालान्तर में इन्हीं चार स्थानों पर निर्धारित मुहूर्त में कुम्भ पर्व के आयोजन की परंपरा पड़ी। ज्योतिर्विदों के अनुसार इस महापर्व का सीधा संबंध सौरमण्डल के ग्रहों की गति से है। सौरमण्डल के विशिष्ट ग्रहों के विशेष राशियों में पहुंचने पर बने खगोलीय संयोगों के कारण इस महापर्व का आयोजन होता है। कुम्भ कारक ग्रहों में तीन प्रधान ग्रह हैं-वृहस्पति, सूर्य व चन्द्रमा। ये तीनों ग्रह जब किन्हीं निश्चित राशियों में क्रमश: संक्रमण करते हैं तो कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। अथर्ववेद में ‘चतुर: कुम्भाश्चतुर्था दधामि’ कहकर इन चारों कुम्भ का सविस्तार वर्णन किया गया है।

कुम्भ पर्व अपने चरित्र और उद्भव में मां गंगा से बेहद गहनता से सम्बद्ध है। गंगा परब्रह्म की प्रतिनिधि हैं। तत्वदर्शी उसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश की समष्टिरूपा कहते हैं। भारतीय संस्कृति गंगाजल को देवत्व और शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करती है। गंगाजल अमरत्व का कोष है और कुम्भ अमृत पर्व। कुम्भ पर्व के दौरान विश्व के कोने-कोने से उमड़कर आया अपार जनसमूह गंगा में स्नान कर पुण्य ही अर्जित नहीं करता अपितु उन पावन तीर्थों में तपस्वी संतों के ज्ञानामृत का लाभ प्राप्त कर आत्मशुद्धि भी करता है। इसीलिए हमारी संस्कृति में कुम्भ पर्व को सिर्फ स्नान पर्व नहीं, अपितु संपूर्ण समाज की विचार शुद्धि का महान पर्व माना जाता है। साथ ही यह पर्व नदियों की शुद्धता व सुरक्षा के प्रति संकल्पित होने का भी महापर्व है।

कुम्भ जैसे पर्व मनुष्य को आत्मोत्कर्ष के ऐसे ही सुअवसर उपलब्ध कराते हैं। वैदिक दर्शन कुम्भ पर्व की तात्विक विवेचना करते हुए कहता है कि सूर्य आत्मा का, चंद्रमा मन का और वृहस्पति बुद्धि का कारक है। मनुष्य के अंतस में मन, आत्मा और बुद्धि के संतुलित होने पर उस पर ज्ञान गंगा की अमृत वर्षा होती है। कुम्भ के अमृतरूपी जल के स्पर्श मात्र से मनुष्य के जन्म-जन्मांतरों के पाप कट जाते हैं; यही आस्था सनातनधर्मियों की सबसे बड़ी शक्ति है। कुम्भ मेला महज एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है अपितु यह दर्शन, विज्ञान एवं संस्कृति का वह अनुष्ठान है जो सदियों से समय के साथ कदमताल करते हुए नित नए विचार तत्वों और संदर्भों की तलाश के साथ प्रवाहमान है। शास्त्रों में कुम्भ स्नान का महत्व बताते हुए कहा गया है कि एक हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ, एक लाख बार भूमि की परिक्रमा करने जितना पुण्य कुम्भ स्नान कर प्राप्त होता है।

शास्त्र कहते है- ‘कुं भूमिं उभ्यति गन्धेन पूरयति इति कुम्भ:।’अर्थात् जब कोई विशिष्ट भूमि किसी विशेष प्रकार की गंध यानी गुण से पूर्ण हो जाती है तो उसे कुम्भ कहते हैं। पुण्य तीर्थ क्षेत्र हरिद्वार की भूमि इस समय धर्म के स्वर्गीय गुणों से परिपूर्ण हो रही है। तभी तो देश-दुनिया के धर्मप्राण मनीषी व श्रद्धालु इस पावन तीर्थ पर कुम्भ स्नान को जुट रहे हैं। गत जनवरी से आरम्भ हुआ यह पर्व अप्रैल माह तक चलेगा। इस वर्ष भी कुंभ महापर्व को लेकर एक अनूठा उत्साह दिख रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण कुछ मर्यादाएं अवश्य होंगी पर कुंभ की महत्ता जस की तस रहने वाली है।

कुम्भ पर्व का इतिहास
इतिहास विशेषज्ञों ने कुम्भ पर्व की प्राचीनता को अनेक स्थानों पर प्रमाणित किया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण (644 ई.) के अनुसार भारत के तत्कालीन चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन माघ मास में प्रयागराज में आयोजित पंचवर्षीय धर्मसभा में अपना सर्वस्व दान कर दिया करते थे। 9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने पुरी, द्वारका, शृंगेरी एवं बद्रीनाथ में चार मठों की स्थापना करने के पश्चात लोक कल्याण की दृष्टि से कुम्भ मेले की परंपरा शुरू की थी। तमाम लिपिबद्ध प्रमाणों के अनुसार मध्ययुग में कुम्भ पर्व अपने पूर्ण विकसित रूप में मौजूद था। इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार 1234 ई. में नागा संन्यासियों ने कुम्भ के अवसर पर ही निर्णायक विजय प्राप्त की थी। ‘एशियाटिक रिसर्चेज’ के छठवें खण्ड में कैप्टन टामस हॉर्डविक ने भी 1796 में हरिद्वार में आयोजित कुम्भ मेले का उल्लेख किया है। इससे पहले के ऐतिहासिक दस्तावेजों में 1398 में हरिद्वार के कुम्भ मेले का विवरण मिलता है, जिसमें विदेशी आक्रान्ता तैमूर लंग ने भारी लूटपाट की थी। चैतन्य महाप्रभु के जीवनवृत्त में भी कुम्भ महापर्व का उल्लेख मिलता है। 14वीं शताब्दी के विद्वान सरस्वती गंगाधर की मराठी पुस्तक ‘गुरुचरित्र’ तथा नाशिक से प्राप्त एक ताम्रपत्र में नाशिक में आयोजित होने वाले कुम्भ महापर्व का विवरण मिलता है। मध्यकालीन इतिहास के विशेषज्ञ बताते हैं कि उन दिनों भारत के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों की संख्या में आस्थावान जन हरिद्वार प्रयाग, उज्जैन एवं नाशिक में आयोजित होने वाले कुम्भ मेलों में भाग लेते थे। आदि शंकराचार्य एवं समर्थ गुरु रामदास के कुम्भ पर्व में सम्मिलित होने के बारे में भी इतिहासकार सांकेतिक विवरण देते हैं। 1678 ई. में हरिद्वार महाकुम्भ पर्व पर विख्यात प्रणामी संत महामति प्राणनाथ ने विद्वानों से शास्त्रार्थ करके निष्कलंक बुद्ध की पदवी प्राप्त की थी। आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने भी महाकुम्भ के अवसर पर पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई थी। 1915 में हरिद्वार महाकुम्भ के अवसर पर स्वामी श्रद्धानन्द के साथ महात्मा गांधी भी सम्मिलित हुए थे। उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र में हरिद्वार के इस कुंभ पर्व का वर्णन करते हुए लिखा था, ‘‘मैं यात्रा की भावना से हरिद्वार नहीं गया था। तीर्थ क्षेत्र में पवित्रता के शोध में भटकने का मोह मुझे कभी नहीं रहा, किन्तु कुंभ पर्व में स्नान को जुटे 17 लाख लोगों को देखना मुझे बेहद विस्मयकारी लगा। इतना तो तय है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग पाखण्डी तो कदापि नहीं हो सकते। इस तरह की श्रद्धा मनुष्य की आत्मा को किस हद तक ऊपर उठाती होगी; यह कहना बेहद कठिन है।’’

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies