विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें हम सब वीर सावरकर कहते हैं वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। सशस्त्र क्रांतिकार्य के साथ—साथ पत्रकारिता, कविता, इतिहास, अस्पृश्यता निवारण, समाज सुधार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार प्रसार करने में उनका बड़ा योगदान था।
सावरकर का हिंदुत्व धर्म पर नहीं अपितु हिंदुस्थान राष्ट्र के आधार पर था । इसलिए 26 फरवरी 1966 को उनके निधन के बाद एक लेख में लंदन टाइम्स ने उन्हें ‘पहला हिंदू राष्ट्रवादी’ करार दिया था। उनका विश्वास था, भारत की स्वतंत्रता युद्धभूमि से ही आएगी किसी तरीके से नहीं । यहां पर यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उनकी यह धारणा गांधी जी की अहिंसा की प्रतिक्रिया स्वरूप नहीं थी बल्कि इतिहास के गहरे सत्य को समझने के पश्चात ही तैयार हुई थी। उन्होंने 16 वर्ष की छोटी आयु में भारत को दासता से छुड़ाने की प्रतिज्ञा ली थी।
वीर सावरकर गांधी जी से आयु में 16 वर्ष छोटे थे लेकिन स्वाधीनता संग्राम में उनसे कई साल पहले कूद पड़े थे । लोकमान्य तिलक जिन्हें वीर सावरकर अपना गुरु मानते थे, उन्होंने उनसे पहले ही प्रकट रूप से स्वतंत्रता की मांग की थी। वीर सावरकर से प्रेरणा पाकर हजारों युवक क्रांति की मशाल लेकर अंग्रेजों के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। उनमें थे लाला हरदयाल, मदनलाल ढिंगरा, अनंत कान्हेरे, पांडुरंग खानखोजे, निरंजन पाल, वीरेंद्रनाथ चटोपाध्याय, रासबिहारी बोस, सेनापति बापट, कामरेड डांगे, भगतसिंह और राजगुरू इनमें एक नाम और था वह था नेताजी सुभाषचंद्र बोस का।
प्रेरणा पुरुष
द्वितीय महायुद्ध के दौरान वीर सावरकर ने अंग्रेजों की तरफ से लड़ने के लिए लाखों युवकों को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा दी। जिनमें शत प्रतिशत हिंदू ही थे। उनका ध्येय था कि वह सेना में भर्ती होकर युद्ध लड़ना सीखें और जब सशस्त्र क्रांति की बात आए तो वह भारत की तरफ से युद्ध करें न कि अंग्रेजों की तरफ से। ऐसा हुआ भी जब आजाद हिंद फौज से इन फौजियों का सामना हुआ तो अंग्रेजी सेना की तरफ से लड़ रहे भारतीय जवानों ने आजाद हिंद फौज के खिलाफ शस्त्र उठाने से ही मना कर दिया। यही नहीं वह सभी आजाद हिंद सेना से जा मिले। एक भी गोली चलाए बिना 40 हजार जवानों की सेना आजाद हिंद फौज को मिल गई।
इस घटनाक्रम की आंखों देखी कहानी लिखने वाले जापानी लेखक जे. जी. ओहसावा इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखते हैं, ‘बस ऐसा ही हुआ, 40 हजार की सेना बंदूक की एक गोली चलाए बिना आजाद हिंद फौज को मिल गई। चमत्कार हो गया। (The chief of the Indian National Army (INA) proceeded alone to the front line and talked to Indian officers and soldiers in the British Army not to be false to their love of India and the independence of India in strong stirring words. Miracle accomplished Indian forces was stopped shooting. Savarkar’s Militarization policy in World War II began to shape. (Two Grate Indians in Japan)
Independence Act of India की चर्चा के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि ‘Britain transferring power to India due to fact that (१) The Indian mercenary army is no longer loyal to Britain and (२) Britain cannot afford to have a large British army to hold down India.’
अर्थात् भारत की स्वतंत्रता का कारण भारतीय सैनिकों का विद्रोह और उसे काबू में रखने के लिए ब्रिटिशों के पास बड़ी सेना न होना था । यह दोनों उदाहरण वीर सावरकर द्वारा किए गए कार्य की महानता के बारे में बताते हैं। इस सबकी प्रेरणा वह ही थे।
जन्म से ही देशभक्त
भारत को स्वतंत्र कराने की शपथ उन्होंने चापेकर बंधुओं की फांसी के पश्चात स्वयं प्रेरणा से ली। उस समय उनकी आयु मात्र 14 साल की थी। उन्होंने तभी से स्वतंत्रता का प्रचार आरंभ कर दिया था।
देश के लिए सब कुछ न्योछावर
अंडमान में दो आजीवन कारावास (पचास वर्ष) की सजा काटने पहुंचे 29 वर्षीय सावरकर के मन में अंडमान द्वीप को देख पहला विचार आता है, यहां पर भारत की नौ सेना होगी तो भारत की सीमा को कोई छू नहीं सकेगा। 50 साल काले पानी की सजा का विचार उनके मन में नहीं आया बल्कि स्वतंत्र भारत की रक्षा का विचार सर्वप्रथम उनके मन में आया । इतना ही नहीं सजा काटकर लौटने वाले सावरकर अपनी कारावास कथा में स्वयं के कारावास को कारावास नहीं कहते बल्कि भारत की परतंत्रता को कारावास कहते हैं ।
देश ही ईश्वर
सावरकर मानते थे कि देश ही उनके लिए भगवान है। एक बार उन्होंने एक लेख में लिखा जिसमें उन्होंने लिखा‘मेरी मान्यता है कि मेरे देश का अपमान भगवान का अपमान हैं’ । उनका यह लेख पूरे विश्व में सराहा गया। अंग्रेजी, जर्मनी, अमेरिका, आयरलैंड आदि के सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने इस लेख की खूब प्रशंसा की। सावरकर सीने पर वार लेने वाले महापुरुष थे । उन्होंने लिखा है ‘देश जब पराधीन होता हैं तब शस्त्राचार धर्म होता है लेकिन स्वतंत्र राष्ट्र के लिए घातक होता है । स्वतंत्र राष्ट्र में अन्याय दूर करने का मार्ग कानूनी व अहिंसक ही होना चाहिए’ । सावरकर प्रखर राष्ट्रभक्त थे, वह कहते थे कोई भी राष्ट्र तब बड़ा होता है जब उसकी सैन्य शक्ति बड़ी होती है।
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