जनतंत्र की धरती पर लोकतंत्र का उत्सव
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होम भारत

जनतंत्र की धरती पर लोकतंत्र का उत्सव

by WEB DESK
Feb 24, 2021, 11:40 am IST
in भारत
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इस साल बिहार विधानसभा भवन का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
बिहार विधानसभा के भवन को बने 100 वर्ष पूरे हो गए। 7 फरवरी, 1921 को बिहार एवं उड़ीसा प्रांतीय परिषद् की पहली बैठक सर वाल्टर मोरे की अध्यक्षता में इसी भवन में हुई थी। इस बैठक को बिहार के प्रथम राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने संबोधित किया था। इसके शताब्दी वर्ष की शुरुआत 7 फरवरी, 2021 से प्रारंभ हुई। एक वर्ष तक चलने वाले शताब्दी वर्ष समारोह में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों में राष्टÑपति एवं प्रधानमंत्री के आने की भी संभावना है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को लोकतंत्र, विशेषकर विधायिका की गतिविधियों की जानकारी दी जाएगी।

शताब्दी वर्ष कार्यक्रम की शुरुआत 7 फरवरी, 2021 को सदन के संयुक्त सत्र से प्रारंभ हुआ। इस दिन दो सत्र आयोजित किए गए थे। उद्घाटन सत्र में विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने गत 100 वर्ष की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डाला। उद्घाटन सत्र को बिहार विधान परिषद् के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री रेणु देवी एवं तारकिशोर प्रसाद ने भी संबोधित किया। दूसरे सत्र नवनिर्वाचित विधायकों के लिए एक प्रकार से प्रशिक्षण सत्र था। इसमें लोक महत्व के मामलों को सदन में उठाने की प्रक्रिया, विधायी शक्तियां और दायित्व पर चर्चा की गई। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री व सांसद सुशील कुमार मोदी ने बजट के बारे में विस्तार से बताया। वहीं केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधायिका की कार्य प्रणाली के बारे में विस्तार से चर्चा की।

उल्लेखनीय है कि वैशाली के लिच्छवी गणराज्य ने विश्व को जनतंत्र का उपहार दिया था। उस समय से किस प्रकार जनतंत्र की भावना विकसित हुई; जनतंत्र के माध्यम से भारत की समाज शक्ति कैसे प्रबल होती चली गई, इसे बताना, इस कार्यक्रम का उद्देश्य है। बिहार विधानसभा की पहली बैठक में 43 सदस्य थे। राज्यपाल के शासन वाला प्रांत बनने के बाद सदस्यों की संख्या 103 कर दी गई। बिहार एवं उड़ीसा राज्य के अंतिम राज्यपाल सर जेम्स डेविड सिफ्टॉन हुए। 1935 में बिहार विधान परिषद् भवन का निर्माण हुआ। 1 अप्रैल, 1936 को बिहार एवं उड़ीसा राज्य अलग हुए। 1 अप्रैल, 1937 को प्रांतीय स्वायत्तता का प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में प्रांतों में द्विसदनीय व्यवस्था की शुरुआत हुई। इस बदले द्विसदनीय व्यवस्था में बिहार विधानसभा की क्षमता 152 थी। गवर्नमेंट आॅफ इंडिया एक्ट, 1935 के अनुरूप 1937 में बिहार विधानसभा का पहला चुनाव संपन्न हुआ। 20 जुलाई, 1937 को डॉ़ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में सरकार गठित हुई। 22 जुलाई, 1937 को विधान मंडल का अधिवेशन शुरू हुआ। 1939 में भारत की सहमति लिए बिना द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीयों को झोंकने के विरोध में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने 31 अक्तूबर, 1939 को अपना इस्तीफा दे दिया। नवंबर, 1939 से 1945 तक बिहार विधानसभा विगठित रही। 1946 में कांग्रेस ने पुन: सत्ता की बागडोर संभाली। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुरूप 1952 में पहला चुनाव संपन्न हुआ। इसमें बिहार विधानसभा के 330 सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन हुआ तथा एक सदस्य को अलग से मनोनीत किया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर बिहार की सीमा में परिवर्तन हुआ। फलत: विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटकर 318 हो गई तथा एक सदस्य मनोनीत हुआ। इस प्रकार 319 सदस्यों वाली सभा रह गई। 1962 से लेकर 1972 तक 319 सदस्य ही बिहार विधानसभा के होते थे। 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 318 से बढ़कर 324 हो गई। इस प्रकार बिहार विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 325 हो गई। 15 नवंबर, 2000 को बिहार का विभाजन हुआ। परिणामस्वरूप 324 सदस्यों में से 81 सदस्य और एक मनोनीत सदस्य झारखंड विधानसभा के सदस्य हो गए। अब बिहार विधानसभा में 243 सदस्य हैं।

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