स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी महिला को फांसी दी जाएगी. फांसी जघन्यतम अपराध के लिए दी जाती है. सो, इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक महिला को फांसी की सजा कितने क्रूरतम अपराध के लिए दी जा रही होगी. बेमेल इश्क में पड़कर शबनम ने दस माह के मासूम बालक समेत अपने पूरे परिवार की कुल्हाड़ी से काटकर निर्मम हत्या कर दी थी.
उत्तर प्रदेश जनपद के अमरोहा जनपद में शिक्षक शौकत अली ने अपनी बेटी शबनम को अच्छी शिक्षा दिलवाई थी. शबनम ने पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा प्राप्त की. उसके बाद वह शिक्षा मित्र बन गई. शिक्षा मित्र बन जाने के बाद उसकी जान पहचान सलीम नाम के युवक से हो गई. शबनम के पिता को जब यह पता लगा तो उन्होंने इसका विरोध किया. सलीम दूसरी बिरादरी का था और वह आठवीं फेल था. उसकी आम शोहरत भी अच्छी नहीं थी. शबनम, सलीम का साथ छोड़ने को तैयार नहीं थी. जब शबनम को लगा कि उसके घर वाले सलीम से उसकी शादी नहीं करेंगे तब उसने पूरे परिवार की हत्या करने का इरादा बना लिया. अप्रैल वर्ष 2008 में शबनम ने शौकत अली, हाशमी, अनीस, राशिद, अंजुम एवं दस माह के नवजात शिशु समेत सात लोगों की निर्मम हत्या कर दी. सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद फांसी की सजा को राष्ट्रपति ने भी बरकरार रखा है. ऐसे में अब उसका फांसी पर लटकना तय हो गया है. मथुरा जेल में महिला फांसी घर में शबनम की फांसी की तैयारी भी शुरू हो गई है. मथुरा जेल में 150 साल पहले महिला फांसी घर बनाया गया था. वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार मैत्रेय ने बताया कि अभी फांसी की तारीख तय नहीं है, लेकिन तैयारी शुरू कर दी गई है. डेथ वारंट यानी मौत का फरमान जारी होते ही शबनम को फांसी दे दी जाएगी.
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