‘‘90 देशों में कार्य कर रहा है गायत्री परिवार’’

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अरुण कुमार सिंह

‘‘90 देशों में कार्य कर रहा है गायत्री परिवार’’

पिछले कई दशक से शांतिकुंज की गतिविधियों को आगे बढ़ाने का गुरुत्तर दायित्व निभा रहे हैं अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या। प्रस्ततु हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

शांतिकुंज का मूल उद्देश्य क्या है और उसे प्राप्त करने में सफलता मिली?
हमारा उद्देश्य है राष्ट्र निर्माण और नवसृजन के लिए समर्पित युग शिल्पियों (पुरुष-महिला) को तैयार करना। प्रसन्नता है कि हम इस उद्देश्य को प्राप्त करने में प्राय: सफल रहे हैं। शांतिकुंज को लोकमंगल के लिए समर्पित युग सेनानियों के प्रशिक्षण केंद्र (अकादमी एवं छावनी) के रूप में विकसित किया गया है।

शांतिकुंज की कार्यप्रणाली क्या है?
शांतिकुंज की स्थापना आस्तिकता की धुरी पर की गई है। गायत्री परिवार साधना को मूल पृष्ठभूमि में रखकर अपनी गुरुसत्ता के मार्गदर्शन में चलने में विश्वास रखता है। शुरुआत में साधकों की छोटी-सी संख्या थी, जो बाद में बढ़ती चली गई।

गायत्री परिवार के साथ देशी-विदेशी कितने साधक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं?
इस समय गायत्री परिवार के सदस्यों-साधकों की संख्या भारत में लगभग 15 करोड़ और अन्य देशों में करीब 50,00,000 है।

शांतिकुंज में प्रतिदिन हजारों साधक आते हैं। इन सबके रहने या खाने की सुविधा नि:शुल्क है। इतने बड़े संस्थान को चलाने के लिए हर महीने करोड़ों रु. की आवश्यकता पड़ती होगी। आखिर इतनी बड़ी राशि का प्रबंध कैसे होता है?
लाखों साधक अपनी मेहनत की कमाई में से प्रतिदिन 20 पैसे से लेकर एक रुपया तक जमा करते हैं और उसे ही शांतिकुंज को देते हैं। श्रद्धा हो तो भोजन एवं अन्य व्यवस्थाओं के लिए कुछ ज्यादा दे देते हैं। इसी से निर्माण एवं अन्य योजनाओं की व्यवस्था होती है। हरिद्वार के आसपास के क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के साधक नियमित रूप से अन्न भेजते हैं। गेहूं, चावल, शक्कर की पूर्ति यही लोग करते हैं। इसके अलावा र्इंटें, सीमेंट, सरिया यही लोग दान करते हैं।

भारत के सुदूर क्षेत्रों में गायत्री परिवार किस तरह का काम करता है?
गायत्री परिवार का कार्य असम, नागालैंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ तमिलनाडु, तेलंगाना एवं गुजरात के सुदूर क्षेत्रों में भी है। छत्तीसगढ़ के बस्तर और अबूझमाड़ तथा गुजरात के डांग जिले में गायत्री परिवार बहुत ही सक्रिय भूमिका निभा रहा है। सेवा, साधना, स्वावलंबन, संस्कार, स्वच्छता, शिक्षा के कई प्रकल्प चल रहे हैं। बस्तर में तो दण्डकारण्य परियोजना विशेष रूप से चलाई जा रही है। नक्सलियों के विचार-परिवर्तन में भी गायत्री परिवार की विशेष भूमिका है।

आपके कार्यों की बदौलत समाज में किस तरह के परिवर्तन हो रहे हैं?
गायत्री परिवार से जुड़े लोगों के जीवन और विचारों में परिवर्तन हुए हैं। शिक्षा-पद्धति में परिवर्तन आए हैं।

गायत्री परिवार का विश्व में कहां-कहां कार्य है और किस तरह के कार्य हैं?
भारत से बाहर गायत्री परिवार का कार्य 1972 में परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की अफ्रीका यात्रा से ही शुरू हो गया था। इसके बाद तो परिवार का विश्वव्यापी स्वरूप उभरकर आया है। अमेरिका, रूस, कनाडा, इंग्लैंड, डेनमार्क, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, केन्या और तंजानिया में केंद्र बन चुके हैं। इन केंद्रों से वहां के मूल निवासियों को लाभ मिल रहा है। वे गायत्री मंत्र, यज्ञ, शिक्षा, संस्कार और भारतीय संस्कृति से जुड़ रहे हैं।

शांतिकुंज के अनेक विद्वान-साधक दुनिया के अनेक देशों में कार्य कर रहे हैं। उनके कार्य का प्रभाव कैसा
रहा है?
आज दुनिया के 90 देशों में गायत्री परिवार के साधक कार्य कर रहे हैं। उनके कार्यों का प्रभाव अविस्मरणीय और अतुलनीय है। ये साधक पश्चिमी सोच को प्रभावित कर लोगों में भारतीय सोच को फैला रहे हैं।

गायत्री परिवार शिक्षा के लिए ‘देव संस्कृति विश्वविद्यालय’ चलाता है। क्या परिवार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के लिए भी कुछ किया जा रहा है?
देव संस्कृति विश्वविद्यालय में रोजगार के लिए ग्राम प्रबंधन और धर्म विज्ञान के शिक्षण की व्यवस्था है। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को भारत के गांव-गांव में भेजा जाता है। इसके अलावा संस्कारों का बीजारोपण, भारतीय संस्कृति का शिक्षण, बाल संस्कारशाला, युवा प्रकोष्ठ आदि के माध्यम से गांव-गांव में जागरण का क्रम चल रहा है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय एवं शांतिकुंज में छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश आदि राज्यों के ग्रामीण परिजन बड़ी संख्या में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और प्रयोग किए जाते हैं।

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