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आसमान में उड़ने के सपने हुए चूर

हमारे इस्लाम के जैसा मजहब नहीं है पूरी दुनिया में। गैर-मुस्लिम जब इस्लाम में आते हैं, तब उनका बहुत अच्छा होता है

by अरुण कुमार सिंह
Dec 6, 2020, 11:39 am IST
in भारत, पुस्तकें
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इस उपन्यास में लेखिका ने आपबीती बताई है। कुछ शब्दों के अटपटे प्रयोग और अशुद्धियों को छोड़ दें तो यह उपन्यास बहुत ही मार्मिक है।

आजकल लव जिहाद को लेकर बड़ी चर्चा है। एक बहुत बड़ा वर्ग कहता है लव जिहाद साजिश है। वहीं अपने को सेकुलर कहने वाले कहते हैं, ‘‘लव जिहाद जैसी कोई बात ही नहीं है, यह तो भाजपा और संघ विचार परिवार के मन की उपज है।’’ ऐसे लोगों को ‘लव जिहाद’ नामक उपन्यास एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। इसकी लेखिका हैं स्वाति काले। लेखिका खुद भी लव जिहाद का शिकार रही हैं। हालांकि अब वे लव जिहादी से मुक्त होकर अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं। कुल 10 अध्याय में बंटे इस उपन्यास में लेखिका ने आपबीती बताई है। कुछ शब्दों के अटपटे प्रयोग और अशुद्धियों को छोड़ दें तो यह उपन्यास बहुत ही मार्मिक है।

लेखिका ने लिखा है कि वे किस तरह एक मुसलमान युवा जुबेर (उपन्यास में झुबेर शब्द) के संपर्क में आईं। एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में उसकी जान-पहचान जुबेर से हुई थी। इसके कुछ दिन बाद ही जुबेर ने अर्पिता (उपन्यास में लेखिका ने अपना यही नाम लिखा है) पर ऐसा जादू किया कि वह उसकी बातों को ही मानने लगी। जो भी जुबेर के विरोध में बोलता था, उसे वह अपना दुश्मन मान लेती थी। यहां तक कि अपने घर वालों से भी वह जुबेर के लिए लड़ने लगी।

अंत में एक दिन वह घर से भागकर जुबेर के पास चली गई। लेकिन जुबेर इतना शातिर निकला कि उसे अपने घर नहीं ले गया। जुबेर के शब्दों को वे इन शब्दों में बयां करती हैं, ‘‘जानू! अभी फिलहाल तो हम अपने घर नहीं जा सकते। अब्बा जान को यह सब मालूम नहीं है। मैं तुम्हें अब्दुल भैया के यहां लेकर चलता हूं।’’ अब्दुल के घर ही अर्पिता को मुसलमान बनाने की योजना बनी। आखिर में उसे एक दिन इस्लाम कबूल करवा दिया जाता है। वहां उपस्थित लोगों ने कहा, ‘‘बहुत सही फैसला किया जी तुमने, अब तुम्हें जन्नत नसीब होगी। हमारे इस्लाम के जैसा मजहब नहीं है पूरी दुनिया में। गैर-मुस्लिम जब इस्लाम में आते हैं, तब उनका बहुत अच्छा होता है। वैसे हमारे में पांच वक्त की नमाज पढ़नी ही पड़ती है, नहीं तो अल्लाह नाराज हो जाता है। लेकिन तुम्हें यह सहूलियत मिलेगी। बिना नमाज पढ़े ही तुम्हें जन्नत मिल गई समझो।’’ (पृष्ठ 30)।

अर्पिता के मुसलमान बनने के बाद जुबेर ने उसके साथ निकाह किया। साफ है कि प्यार के नाम पर उसने पहले अर्पिता को फंसाया और फिर मुसलमान बना दिया। यही तो लव जिहाद है।

निकाह के कुछ दिन बाद ही जुबेर ने अर्पिता को अपना असली रूप दिखाना शुरू किया। वह बारहवीं पास भी नहीं था और अर्पिता अच्छी-खासी पढ़ी-लिखी थी। वह एयर होस्टेस बनकर ऊंची उड़ान उड़ना चाहती थी, लेकिन जुबेर की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर उसने अपनी जिंदगी को नरक बना लिया। जुबेर के असली रूप को देखकर अर्पिता को अपनी गलती का अहसास होने लगा। लेकिन अब वह जिस मोड़ पर खड़ी थी, वहां फिलहाल जुबेर के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। दिन-रात मार खाकर भी वह जुबेर के साथ रहने लगी। समय बीतने के साथ ही तीन बच्चे भी आ गए। घर में न खाने को अन्न और न पहनने के लिए कपड़े।

हालात से परेशान होकर अर्पिता ने जुबेर से मुक्ति पाने का उपाय खोज लिया। एक दिन जुबेर और उसके अब्बा पेंशन के काम से कहीं गए तो अर्पिता अपने बच्चों के साथ घर से निकल गई। एक दंपती के सहयोग से उन लोगों को पहले एक सामाजिक संगठन की देखरेख में रखा गया। बेटी की इस हालत से माता-पिता भी पिघल गए। उन्होंने अर्पिता और उसके बच्चों को अपना लिया। लेखिका ने स्वीकार किया है कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई थी। वह लिखती हैं, ‘‘जुबेर से शादी करने की मेरी जिद निहायत बेवकूफी भरी थी।’’

इस उपन्यास का शीर्षक कुछ और होता तो अच्छा होता। आवरण पृष्ठ पर ही लव जिहाद शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। यह ठीक नहीं लग रहा है। यदि इसके दूसरे संस्करण की योजना है तो इस दुहराव को ठीक किया जाना चाहिए। अब कोई और लड़की किसी लव जिहादी के चक्कर में न पड़े, इसलिए इस उपन्यास का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।                                         (6 Dec. 2020)

Topics: love jihadलव जिहादगैर मुस्लिमNon Muslimजुबेर से शादीmarriage with Zubair
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