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यशस्वी का यश, कन्हैया का अपयश

यशस्वी आनंद और कन्हैया कुमार, दोनों एक ही गांव बीहट (बेगूसराय) के रहने वाले हैं, लेकिन दोनों की सोच बिल्कुल विपरीत है। यशस्वी देश का यश बढ़ा रहे हैं, तो कन्हैया देश तोड़ने की बात करता है

by अरुण कुमार सिंह
May 17, 2020, 06:10 pm IST
in भारत, विश्लेषण
कोरोना की दवाई के परीक्षण के लिए अपने शरीर को दान देने की घोषणा करने वाले (बाएं से) यशस्वी आनंद और राघवेंद्र सिंह

कोरोना की दवाई के परीक्षण के लिए अपने शरीर को दान देने की घोषणा करने वाले (बाएं से) यशस्वी आनंद और राघवेंद्र सिंह

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भारतीय मूल्यों से जुड़े किसी संगठन का कार्यकर्ता कैसा होता है और विदेशी विचारों को लेकर चलने वाले संगठन का कार्यकर्ता कैसा होता है, इसका एक उदाहरण हाल में ही देखने को मिला है।

भारतीय मूल्यों से जुड़े किसी संगठन का कार्यकर्ता कैसा होता है और विदेशी विचारों को लेकर चलने वाले संगठन का कार्यकर्ता कैसा होता है, इसका एक उदाहरण हाल में ही देखने को मिला है। यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (अभाविप) और आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) की बात हो रही है। ये दोनों छात्र संगठन हैं और दोनों के विचार एक-दूसरे के विपरीत हैं। इसलिए इनके कार्यकर्ताओं के व्यवहार, कर्म, देशभक्ति, सोच आदि में कोई समानता नहीं है। इसके अनेक उदाहरण आपको कई बार मिले होंगे। अब एक और उदाहरण मिला है।

अभाविप के कार्यकर्ता यशस्वी आनंद ने घोषणा की है कि यदि कोरोना वायरस की दवाई के परीक्षण के लिए किसी मानव शरीर की आवश्यकता हो तो वे इसके लिए तैयार हैं। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा है। आनंद ने कहा, ‘‘कोरोना की दवाई के परीक्षण के दौरान यदि उनकी जान भी चली जाए तो वे अपने को भाग्यशाली मानेंगे। देश के लिए मरना गर्व की बात है।’’ वे यह भी कहते हैं, ‘‘मैं जिस संगठन का कार्यकर्ता हूं, वहां यह बात सिखाई जाती है कि देश से बड़ा और कुछ नहीं है। इसलिए जान देकर भी देश सेवा करनी चाहिए।’’ 21 वर्षीय यशस्वी इन दिनों अभाविप, बिहार इकाई की कार्यकारिणी के सदस्य हैं और इतिहास से स्नातक कर रहे हैं।

यशस्वी और कन्हैया, दोनों एक गांव के हैं, पर दोनों के विचार कितने भिन्न हैं, यह स्पष्ट दिखाई देता है। यशस्वी अपनी जान देकर भी देश की सेवा करना चाहते हैं, तो कन्हैया देश के लिए जान देने वालों पर लांछन लगाता है। यशस्वी देश को सर्वोपरि मानते हैं, तो कन्हैया देश को ही तोड़ने की बात करता है।

यशस्वी बेगूसराय के उसी बीहट गांव के रहने वाले हैं, जहां का कन्हैया कुमार है। वही कन्हैया, जो जेएनयू में आइसा का छात्र नेता रहा है और इन दिनों राष्ट्रद्रोह का मुकदमा झेल रहा है। वही कन्हैया, जो जम्मू-कश्मीर में अपनी जान देकर देश की रक्षा करने वाले सुरक्षाकर्मियों की कार्रवाई पर अंगुली उठाता है। वही कन्हैया, जो भारत तोड़ने वालों के साथ अपनी आवाज बुलंद करता है।

यशस्वी और कन्हैया, दोनों एक गांव के हैं, पर दोनों के विचार कितने भिन्न हैं, यह स्पष्ट दिखाई देता है। यशस्वी अपनी जान देकर भी देश की सेवा करना चाहते हैं, तो कन्हैया देश के लिए जान देने वालों पर लांछन लगाता है। यशस्वी देश को सर्वोपरि मानते हैं, तो कन्हैया देश को ही तोड़ने की बात करता है।

अभाविप के एक अन्य कार्यकर्ता राघवेंद्र सिंह ने भी दवाई के परीक्षण के लिए अपना शरीर दान देने का निर्णय लिया है। ये बस्ती (उ.प्र.) के रहने वाले हैं।

अभाविप के कार्यकर्ताओं के आचरण और व्यवहार को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं अभाविप ने उन्हें क्या सिखाया है और आइसा के कार्यकर्ताओं को देखकर आप खुद ही कह सकते हैं कि आइसा ने उन्हें किस तरह के देश-तोड़ो संस्कार दिए हैं। यह है दो संगठनों का फर्क।

Topics: सोचTesting of Corona medicinebehavior of workersactionsthinkingअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदAkhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP)patriotismYashasvi's fameदेशभक्तिKanhaiya's infamy.कोरोना की दवाई के परीक्षणकार्यकर्ताओं के व्यवहारकर्म
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