पूरे देश के गांव इस महामारी को रोकने के लिए अपने-अपने स्तर से काम कर रहे हैं। कई गांवों के लोग तो गरीब और दिहाड़ी मजदूरों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें दे रहे हैं। एक ऐसा ही गांव है भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित मिठडाऊ।
यह देखने में आ रहा है कि चायनीज वायरस को फैलने से रोकने के लिए शहर के लोगों की अपेक्षा गांव वाले ज्यादा सक्रिय हैं। पूरे देश के गांव इस महामारी को रोकने के लिए अपने-अपने स्तर से काम कर रहे हैं। कई गांवों के लोग तो गरीब और दिहाड़ी मजदूरों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें दे रहे हैं। एक ऐसा ही गांव है भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित मिठडाऊ। यह गांव राजस्थान के बाड़मेर जिले में पड़ता है।
स्थानीय विद्यालय के प्रधानाचार्य मनसुखराम जोगेश, जो मिठडाऊ के ही रहने वाले हैं, की पहल पर सबसे पहले गांव के रास्तों को बंद किया गया। बंद किए गए रास्तों की देखरेख के लिए गांव के युवाओं को तैनात किया गया है। ये युवा बारी-बारी से वहां जाते हैं और किसी को गांव में न आने देते हैं और न ही बाहर जाने देते हैं। यही नहीं, ग्रामीणों ने गांव में रहने वाले गरीब और दिहाड़ी मजदूरों के लिए 35,000 रु. इकट्ठा किया और उन्हें दिया। पूरे गांव में भामाशाह पूंजानी परिवार की तरफ से दवाई का छिड़काव भी किया गया।
झारखंड के गोड्डा जिले का रामपुर गांव भी इस महामारी को परास्त करने में योगदान दे रहा है। गांव के लोगों ने लॉक डाउन के दूसरे ही दिन गांव के रास्तों को बंद कर दिया। ग्रामीण दीपक कुमार ने बताया, ‘‘प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़कर लोगों से घर में रहने का निवेदन किया तो लोगों को लगा कि स्थिति गंभीर है। इसके बाद ग्रामीणों की एक बैठक हुई और निर्णय लिया गया कि चाहे जो भी गांव को पूरी तरह बंद किया जाए। 26 मार्च से ही गांव में किसी बाहरी व्यक्ति को न आने दिया गया है और न ही गांव का कोई व्यक्ति कहीं बाहर गया है।’’
वहीं रांची के पास रामगढ़ जिले के कई गांवों के लोगों ने प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद अपने गांवों को बंद कर दिया है। गोला के समीप कुम्हारदगा गांव के सहदेव महतो ने बताया कि लॉक डाउन की घोषणा के बाद ही गांव के लोगों ने सभी रास्तों को बंद कर दिया। इसके बाद गांव के जो लोग बाहर (दिल्ली, मुम्बई, पंजाब आदि) रहते हैं, उनकी सूची बनाकर प्रशासन को दी गई। उनमें से जो लोग कभी किसी तरह गांव आते हैं, तो उसकी जानकारी प्रशासन को दी जाती है और उसे किसी अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। सब कुछ ठीक रहने पर ही गांव में उसे आने दिया जाता है। गोला के नजदीक पूरबडीह, हरूबेड़ा, हुल्लू, मुडूडीह, संग्रामपुर, औराडीह और बैटूल के लोगों ने भी अपने-अपने गांवों को बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिया है।
‘‘सबसे पहले गांव में बाहरी लोगों के प्रवेश को रोका गया। इसके बाद गांव के हर व्यक्ति को मास्क दिया गया। यही नहीं, जिन्हें किसी चीज की जरूरत होती है तो गांव के युवा उसकी मदद करते हैं। पूरा गांव एक साथ चायनीज वायरस को परास्त करने के लिए संकल्पबद्ध है।’’
उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के पास झगड़पुरी गांव भी महामारी को परास्त करने में लगा है। गांव में आने वाले रास्तों को बल्लियां लगाकर बंद किया गया है। गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। आवश्यक वस्तुएं बेचने वालों को गांव की ओर से ‘अनुमति पत्र’ दिया गया है। उस पत्र को दिखाए बिना गांव में किसी को आने नहीं दिया जा रहा है।
ऐसे ही मध्य प्रदेश में भिंड जिले के लहार गांव के लोगों ने भी महामारी को रोकने के लिए कदम उठाया है। गांव के रास्तों को बंद करने के साथ-साथ गरीबों को राशन देने का भी काम हो रहा है। बगल के एक अन्य गांव जमुंहा में भी ऐसा हो रहा है। जमुंहा के निवासी रामशंकरसिंह पांडेय ने बताया, ‘‘आपसी सहमति के बाद गांव के लोगों ने मुख्य रास्ते को बंद कर दिया। गांव के लोगों ने तय किया है कि वे न तो स्वयं गांव से बाहर जाएंगे और न ही किसी को आनेदेंगे। गांव में केवल चिकित्सा और प्रशासन से जुड़े लोगों को ही आने-जाने की अनुमति है।’’ छिंदवाड़ा जिले की उमरेठ तहसील के गांव मानका देही में भी लॉक डाउन का पालन किया जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता कुबेर सिंह रघुवंशी ने बताया, ‘‘सबसे पहले गांव में बाहरी लोगों के प्रवेश को रोका गया। इसके बाद गांव के हर व्यक्ति को मास्क दिया गया। यही नहीं, जिन्हें किसी चीज की जरूरत होती है तो गांव के युवा उसकी मदद करते हैं। पूरा गांव एक साथ चायनीज वायरस को परास्त करने के लिए संकल्पबद्ध है।’’
उत्तर प्रदेश के आंबेडकर नगर जिले के बिहाई गांव में भी किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। ग्राम प्रधान आलोक वर्मा की पहल पर गांव के रास्तों को बांस-बल्ली से बंद कर दिया गया है।
दिल्ली में कृष्णा नगर के पास स्थित घोंडली गांव एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। गांव में कोई व्यक्ति न तो जा सकता है और न ही वहां से निकल सकता है। लगभग 12,000 की आबादी वाले इस गांव में बड़ी संख्या में बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के लोग किराए पर रहते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। इनके खाने-पीने का प्रबंध गांव के लोगों ने ही किया है। गांव में एक रसोई बनाई गई है, जहां प्रतिदिन लगभग 2,500 लोगों के लिए खाना बनता है।
दिल्ली के ही खेड़ा गांव के लोगों ने भी अपने गांव को बाहरी दुनिया के लिए बंद कर दिया है। यही नहीं, गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा करके पूरे गांव में दवाई का छिड़काव भी किया। लोगों का कहना है कि सब कुछ सरकार के भरोसे ही नहीं छोड़ा जा सकता है। यह महामारी है, इसके खिलाफ हर व्यक्ति को लड़ना होगा।
बिहार के अररिया जिले के निजगेहुआ गांव को भी बंद किया गया है। गांव के मुखिया की पहल पर ऐसा किया गया है। ग्रामीणों ने संकल्प लिया है कि जब तक सरकार घर में रहने के लिए कहेगी तब तक गांव का कोई व्यक्ति कहीं बाहर नहीं जाएगा और किसी को आने भी नहीं दिया जाएगा। वहीं पूर्णिया जिले की जलालगढ़ पंचायत में भी लोगों ने इस महामारी को परास्त करने का संकल्प लिया है। मुखिया ललित कुमार लाली ने बताया कि जलालगढ़ में दवाई का छिड़काव दो बार किया गया है।
जम्मू के किश्तवाड़ के पास स्थित ग्राम अकरा के लोगों ने इस महामारी से लड़ने का अलग रास्ता अपनाया है। एकल अभियान की कार्यकर्ता कमला देवी और टेकचंद ने ग्राम समिति के सहयोग से मास्क तैयार कर ग्रामीणों के बीच बांटे।
इन गांवों के निवासियों से बात करने पर एक ही निष्कर्ष निकलता है कि गांव के लोग महामारी को हराने के लिए तन, मन और धन से लगे हैं। संदेह नहीं है कि इनका एकजुट संकल्प और सहयोग देश को महामारी से मुक्त कराएगा।
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