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पाठकों के पत्र-सबक सिखाने का समय

by
Apr 2, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Apr 2018 11:10:20

आवरण कथा ‘तिरंगे में लिपटे सवाल’ कासगंज सहित समूचे देश के सामने सवाल खड़ा करती है कि क्या अपने ही देश में राष्ट्र वंदन करना गैर-कानूनी है? क्या भारत माता की जय बोलने के लिए किसी से पूछना पड़ेगा? या फिर वंदे मातरम जैसे नारे लगाना अपराध है? कासगंज में जो हुआ उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। यकीनन ऐसी घटनाएं सभी भारत भक्तों को चिंतित करती हैं। इसलिए ऐसे मामलों को प्रश्रय देने वालों से लेकर उत्पात मचाने वाले तत्वों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में कहीं भी इस तरह की घटना को अंजाम देने से पहले वे एक बार जरूर सोचें।
—अरुणोदय रावत, देहरादून (उत्तराखंड)

 कुछ वर्षों से देखने में आ रहा है कि देश के अंदर एक ऐसी विध्वंसक नस्ल तैयार हो रही है, जिसका एक ही उद्देश्य है—देश में अशांति फैलाना। इसका एजेंडा है, हिन्दू तीज-त्योहारों को निशाने पर लेकर उपद्रव करना और ऐसा माहौल बनाना जिससे लगे कि एक खास वर्ग के लोगों का इस क्षेत्र में दवाब है। दरअसल यह सब एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। ऐसी दुष्प्रवृत्तियों पर समयरहते लगाम लगानी होगी, नहीं तो आने वाले दिनों में इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे।
—हरीश चंद्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)

 कासगंज जैसी घटनाएं देश में बनाई जा रही विषम परिस्थितियों को साफ करती हैं। देश के कई हिस्सों में छोटी-छोटी बात पर दंगा-फसाद किया जाता है। बिहार, कर्नाटक, बंगाल, महाराष्ट्र, केरल इसके उदाहरण हैं। यहां आएदिन हिन्दुओं को मारा-काटा जाता है।
—बी.एस.शांताबाई, बेंगलुरू (कर्नाटक)

 यह हिंदुत्व की उदारता ही है कि
इस देश के किसी भी मंत-पंथ से जुड़े व्यक्ति ने अगर देश का मान बढ़ाया, तो समाज उसे सिर-आंखों पर बिठाता है। कभी यह नहीं देखा, वह किस मत-पंथ का है। भारत के
सिवाय शायद ही ऐसी सदाश्यता
कहीं और दिखाई जाती हो। लेकिन इसके बावजूद हिन्दुत्व को
पूर्वाग्रह और दुराग्रह भरी नजरों
से देखा जाता है। इस सबके लिए
पीछे एक ही बात दिखती है
कि सेकुलरों की नजर में  खोट है।
—अनूप राठौर, बांदा (उ.प्र.)

बढ़ते कदम
‘सत्य संधान 70 सोपान (28 जनवरी, 2018)’ विशेषांक न केवल संग्रहणीय है बल्कि सात दशक की यात्रा का अनूठा आयोजन है। जब से पाञ्चजन्य की शुरुआत हुई तब से अब तक उसका स्वर और उद्देश्य रहा निर्भीक रहा। कितनी सरकारें आई और गर्इं, लेकिन पाञ्चजन्य का स्वर कभी नहीं बदला। पत्रिका ने कठिन से कठिन परिस्थितियों में बड़ी दृढ़ता से खड़े होकर भारत की ही बात की और यह क्रम आज भी जारी है।
—हरिहर सिंह, इंदौर (म.प्र.)

गिरफ्त में लालू
लेख ‘और अब चारा ही क्या’ लालू यादव के काले कारनामों को उजागर करता है। हाल ही में अदालत द्वारा एक के बाद एक मामले में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप सही पाए गए। इससे साबित हो गया कि ऐसे नेताओं का सिर्फ एक ही उद्देश्य है— देश को लूटना। लालू यादव ने यही किया। वे एक सामान्य व्यक्ति से करोड़ों रुपये के मालिक कैसे बन बैठे? साफ है कि उन्होंने यह सब संपत्ति घोटाले और भ्रष्टाचार से कमाई है। अब कानून अपना काम कर रहा है    
    —हीरालाल, उज्जैन (म.प्र.)

बांटने की साजिश
लिंगायत को कर रहे, हिन्दू धर्म से दूर
वीरशैव की वीरता, होगी चकनाचूर।
होगी चकनाचूर, खूब सबको लड़वाओ
टुकड़ों में बंटवाकर फिर तुम सत्ता पाओ।
कह ‘प्रशांत’ था ऐसे ही भारत बंटवाया
और पचासों साल राज कर लाभ उठाया॥
    — ‘प्रशांत’

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