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हिंदू धर्म के मामले में अभिव्यक्ति की आजादी का झंडा बुलंद करने वाले इस्लाम पर क्यों नहीं बोलते
सामयिक मुद्दों पर मीडिया के रुख और रुखाई की परतें ख्ांगालता यह स्तंभ समर्पित है विश्व के पहले पत्रकार कहे जाने वाले देवर्षि नारद के नाम। मीडिया में वरिष्ठ पदों पर बैठे, भीतर तक की खबर रखने वाले पत्रकार इस स्तंभ के लिए अज्ञात रहकर योगदान करते हैं और इसके बदले उन्हें किसी प्रकार का भुगतान नहीं किया जाता।
सोशल मीडिया के दौर में ‘फेक न्यूज’ बड़ी समस्या बन चुकी हैं, पर पहली बार दिख रहा है कि मुख्यधारा मीडिया झूठी खबरें फैलाने में सबसे आगे है। बीते 3-4 साल में केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों के कामकाज को लेकर भ्रम फैलाने की नीयत से उड़ाई गई अधिकतर खबरें जाने-माने अखबारों व चैनलों की उपज रही हैं। बीते सप्ताह अमूमन सभी अखबारों, चैनलों व वेबसाइट ने बताया कि सरकार ने राजनीतिक दलों के विदेशी चंदे से जुड़े विदेशी सहायता नियमन कानून में संशोधन को लोकसभा में बिना चर्चा के पारित करवा दिया। इससे राजनीतिक दलों को विदेशी कंपनियों से चंदा लेने की छूट मिल गई है, जिसकी जांच भी नहीं हो सकेगी। ऐसा कोई भी कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता को संदिग्ध बनाता है।’ यह खबर झूठ निकली। जो बिल पास कराया गया, वह चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए था। एक अच्छे कदम को भी मुख्यधारा मीडिया ने बुरी खबर बना दिया तथा सरकार द्वारा जारी स्पष्टीकरण को भी एक तरह से दबा दिया गया।
फर्जी खबरों की आंधी क्यों आई हुई है, यह इसी सप्ताह सामने आ गया। अमेरिकी मीडिया में खबर आई कि कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी दुनियाभर के लोगों के फेसबुक व दूसरे निजी आंकड़े चोरी कर चुकी है ताकि वह वहां के चुनावों को प्रभावित कर सके। कंपनी की सेवा लेने वालों में कांग्रेस व उसके नेता राहुल गांधी का भी नाम है। यह फर्म लोगों की निजी जानकारी के आधार पर रणनीति तैयार करती है ताकि चुनावों में लोगों के मत को प्रभावित किया जा सके। पिछले साल जुलाई में कांग्रेस ने कंपनी से समझौता किया था। अब पता चला है कि यह अमेरिकी कंपनी कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए यह हथकंडा अपना रही है। यह मुख्यधारा मीडिया व सोशल मीडिया के जरिए झूठी खबरें फैलाती है ताकि लोगों में भ्रम पैदा किया जा सके। ऐसे में जरूरी है कि अखबारों, चैनलों और बीते 2-3 साल में खुली एक दर्जन से भी ज्यादा कांग्रेस प्रायोजित वेबसाइट्स की खबरों पर आंख मूंदकर भरोसा न करें।
नीरव मोदी जैसे जालसाज का मामला सामने आता है तो मीडिया ऐसे जताता है मानो सारी गड़बड़ी हाल ही की है। वह भी तब जब प्रधानमंत्री संसद में मनमोहन सरकार के दौरान बैंकों में हुई लूट का ब्योरा दे चुके हैं। सरकार यह भी बता चुकी है कि अभी कई और बैंक घोटाले उजागर होंगे। कनिष्क ज्वैलर्स घोटाले में ज्यादातर अखबारों व चैनलों ने यह बात छिपाई कि सभी लोन 2007 के बाद दिए गए थे। मीडिया अनजाने में ऐसा कर रहा है, यह हजम करना करना मुश्किल है। उधर, कर्नाटक में चुनावी माहौल बन चुका है, पर बंगलूरू की सड़कों के गड्ढे व चौपट कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे गायब हैं। हिंदू धर्म को बांटने व कन्वर्जन संस्थाओं को खुलेआम सरकारी संरक्षण को मीडिया जिस सहजता से लेता है, वह हैरान करने वाला है। कर्नाटक उन राज्यों में से है जहां सर्वाधिक किसानों ने आत्महत्या की है, लेकिन इस मुद्दे पर भी मीडिया का ध्यान नहीं है। कावेरी नदी जल बंटवारे पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मीडिया ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की जीत के तौर पर दिखाने की कोशिश की। राज्य में एक कांग्रेसी विधायक के बेटे ने एक व्यक्ति को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया तो इंडिया टुडे चैनल काफी देर तक उसे भाजपा का विधायक बताता रहा।
रामायण-महाभारत को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस पार्टी के महाधिवेशन में राहुल गांधी ने खुद को पांडव व भाजपा को कौरव घोषित कर दिया। भाजपा के किसी छोटे नेता ने भी ऐसी बात कही होती तो मीडिया उसे ‘विवादित’, ‘आपत्तिजनक’ बताता। जी टीवी के धारावाहिक ‘इश्क सुभान अल्लाह’ के खिलाफ मुसलमानों की मजहबी भावना आहत होने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई है। पर हिंदू धर्म के मामलों में अभिव्यक्ति की आजादी का झंडा बुलंद करने वाले फिल्मकार व मीडिया हमेशा की तरह मौन हैं। सवाल है कि फिल्म ‘पद्मावत’ के बहाने हिंदू धर्म को असहिष्णु साबित करने में जुटे लोग इस्लाम की बात आते ही कान में तेल क्यों डाल लेते हैं?
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