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आज अनेक भारतीय भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं और कइयों का अस्तित्व संकट में है। इसको देखते हुए प्रतिनिधि सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा है कि भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन हो ।
प्रतिनिधि सभा में भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन पर एक प्रस्ताव भी पारित हुआ। प्रस्ताव में कहा गया है कि भाषा किसी भी व्यक्ति एवं समाज की पहचान का एक महत्वपूर्ण घटक तथा उसकी संस्कृति की सजीव संवाहिका होती है। देश में प्रचलित विविध भाषाएं एवं बोलियां हमारी संस्कृति, उदात्त परंपराओं, उत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक हैं। विविध भाषाओं में उपलब्ध लिखित साहित्य की अपेक्षा कई गुना अधिक ज्ञान गीतों, लोकोक्तियों तथा लोक कथाओं आदि की मौखिक परंपरा के रूप में होता है।
आज विविध भारतीय भाषाओं और बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन और विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक गंभीर चुनौती बन कर उभर रहा है। आज अनेक भाषाएं एवं बोलियां विलुप्त हो चुकी हैं और कई अन्य का अस्तित्व संकट में है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह मानना है कि देश की विविध भाषाओं तथा बोलियों के संरक्षण और सबधर््न के लिए सरकारों, अन्य नीति निर्धारकों और स्वैच्छिक संगठनों सहित समस्त समाज को सभी संभव प्रयास करने चाहिए। इस हेतु निम्नांकित प्रयास विशेष रूप से करणीय हैं-
देशभर में प्राथमिक शिक्षण मातृभाषा या अन्य किसी भारतीय भाषा में ही होना चाहिए। इस हेतु अभिभावक अपना मानस बनाएं तथा सरकारें इस दिशा में उचित नीतियों का निर्माण कर आवश्यक प्रावधान करें।
तकनीकी और आयुर्विज्ञान सहित उच्च शिक्षा के स्तर पर सभी संकायों में शिक्षण, पाठ्य सामग्री तथा परीक्षा का विकल्प भारतीय भाषाओं में भी सुलभ कराया जाना आवश्यक है।
राष्टÑीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (नीट) एवं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में भी लेनी प्रारंभ की गई हैं, यह पहल स्वागत योग्य है। इसके साथ ही अन्य प्रवेश एवं प्रतियोगी परीक्षाएं, जो अभी भारतीय भाषाओं में आयोजित नहीं की जा रही हैं, उनमें भी यह विकल्प सुलभ कराया जाना चाहिए। सभी शासकीय तथा न्यायिक कार्यों में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके साथ ही शासकीय और निजी क्षेत्रों में नियुक्तियों, पदोन्नतियों तथा सभी प्रकार के कामकाज में अंग्रेजी भाषा की प्राथमिकता न रखते हुए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
स्वयंसेवकों सहित समस्त समाज को अपने पारिवारिक जीवन में वार्तालाप तथा दैनन्दिन व्यवहार में मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाहिए। इन भाषाओं तथा बोलियों के साहित्य-संग्रह और पठन-पाठन की परंपरा का विकास होना चाहिए। साथ ही इनके नाटकों, संगीत, लोककलाओं आदि को भी प्रोत्साहन देना चाहिए।
पारंपरिक रूप से भारत में भाषाएं समाज को जोड़ने का साधन रही हैं। अत: सभी को अपनी मातृभाषा का स्वाभिमान रखते हुए अन्य सभी भाषाओं के प्रति सम्मान का भाव रखना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों तथा लिपियों के संरक्षण और संवधर््ान हेतु प्रभावी प्रयास करने चाहिए।
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