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जेएनयू, बीएचयू और हैदराबाद विश्वविद्यालयों सहित देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों को निशाना बना चुकी वामपंथी टोली की साजिश का शिकार होते-होते बचा भारतीय जनसंचार संस्थान
राघवेन्द्र कुमार सैनी
देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान, भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) में पिछले दिनों दो छात्र गुटों ने धरना दिया जो तीन दिन तक चला। इसमें आश्चर्यजनक बात यह थी कि एक छात्र गुट ने धरने के विरोध में धरना दिया। ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल उठना जायज है कि आखिर धरने के विरोध में धरना क्यों? सबसे पहले इस घटना के पीछे की कहानी को समझना पड़ेगा। 2017 में सत्र आरंभ होने के एक-दो महीने बाद छात्रों द्वारा लड़कों के लिए छात्रावास और 24 घंटे पुस्तकालय खोलने की मांग की गई। छात्रों की मांग के आधार पर संस्थान द्वारा परिसर के बाहर छात्रावास की एक वैकल्पिक सुविधा का प्रस्ताव दिया गया और कैंटीन सुविधा संस्थान में ही देने की बात की गई। पहले सेमेस्टर की परीक्षा के बाद छात्रों ने एक बार फिर छात्रावास और 24 घण्टे पुस्तकालय खोलने की मांग की। जबकि संस्थान पहले ही आस-पास के इलाकों में छात्रों के रहने की व्यवस्था कराने की बात कह चुका था। छात्रों द्वारा मांग किए जाने पर प्रशासन ने इसे गंभीरता से लेते हुए 6 फरवरी, 2018 को एक आदेश जारी किया, जिसमें पुस्तकालय की समयावधि रात्रि 7 बजकर 30 मिनट से बढ़ाकर रात्रि 10 बजे तक कर दी गई। तो दूसरी ओर प्रशासन ने छात्रावास के लिए कहा कि अगर लड़कियां बातचीत के आधार पर एक छात्रावास में स्थानांतरित हो जाती हैं तो खाली छात्रावास में छात्रों को रहने दिया जाएगा। साथ ही आने वाले सत्र में इस बारे में गंभीरता से विचार कर सुविधानुसार छात्रों के रहने का प्रबंध किया जाएगा।
संस्थान महानिदेशक के.जी.सुरेश ने कहा कि विवरण पुस्तिका में स्पष्ट उल्लेख है कि दिल्ली परिसर में छात्रों के लिए हॉस्टल सुविधा नहीं है। लेकिन हमने 2-3 साल के लिए छात्रों को छात्रावास सुविधा प्रदान की थी, क्योंकि उस वक्त छात्रावास खाली थे। इसलिए उनका सदुपयोग कर लिया गया। इस बार दिल्ली व स्थानीय क्षेत्र की लड़कियों ने सुरक्षा का हवाला देकर छात्रावास की मांग की थी, जिसे देखते हुए भीमराव आंबेडकर छात्रावास दे दिया गया। लेकिन संस्थान छात्रों के लिए छात्रावास पर मंत्रालय से बात कर रहा है। क्योंकि संस्थान एन.जी.टी.और डी.डी.ए. के दायरे में आता है और जब उनकी ओर से स्वीकृति मिलेगी तब ही नया छात्रावास मिल पाएगा क्योंकि यह संस्थान मुख्यत: भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के रहने के लिए है।
लेकिन इसके बावजूद वामपंथी छात्रों के समूह ने योजनाबद्ध तरीके से संस्थान के महानिदेशक को धमकी भरा पत्र लिखा है, जिसमें उसने पुस्तकालय के समय को रात्रि 12 बजे तक बढ़ाने और छात्रावास की मांग की, इसमें लिखा गया कि अगर ये मांगे पूरी न की गर्इं तो आमरण अनशन किया जाएगा। जबकि संस्थान पहले ही पुस्तकालय के समय को रात्रि 10 बजे और अगले सत्र से छात्रावास की व्यवस्था करने की बात कह चुका था। इस मामले पर विवाद बढ़ा और संस्थान के पहले समूह ने वामपंथी धड़े के समर्थन प्राप्त छात्रों का विरोध किया और चेताया कि संस्थान के छात्रों की जो मांगें थीं, वे पहले ही मानी जा चुकी हैं इसलिए फिर अनैतिक तरीके से संस्थान पर क्यों दबाव बनाया जाए? इन सभी छात्रों का कहना था कि ऐसे विरोध और धरने से संस्थान की छवि को ठेस लगती है और पढ़ाई बाधित होती है। लेकिन इन सब बातों को दरकिनार कर यह लड़ाई आपसी गुटों की लड़ाई में बदलती गई।
यह विवाद उस समय और बढ़ा जब संस्थान के छात्रों को यह जानकारी मिली कि जो छात्र आमरण अनशन पर बैठे हैं, वे षड्यंत्रपूर्ण तरीके से संस्थान के माहौल को खराब करने के लिए जेएनयू विवाद के आरोपी उमर खालिद और वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हैं। इस विवाद को हवा देने में संस्थान के ही कुछ पूर्व छात्र भी शामिल थे। इसके बाद छात्रों ने इस धड़े का विरोध किया।
सुरेश आर. गौरव संस्थान के छात्र हैं। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर स्पष्ट लिखा है कि आईआईएमसी को जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है,जिससे निपटने की जरूरत है। उन्होंने सवाल के लहजे में पूछा, ‘‘आईआईएमसी में भूख हड़ताल क्या वाकई में राजनीति के चलते हो रही है या मामला कुछ और है? जब दो समूह अनशन पर एक-दूसरे के समानांतर बैठ जाएं तो क्या कहा जाएगा? शायद ‘राजनीति’ या ‘हक की लड़ाई’ या ‘लोकप्रियता की चेष्टा’ या कुछ और?’’
संस्थान के ही सूरज ठाकुर लिखते हैं, छात्रावास की मांग करना और पुस्तकालय को 24 घंटे खोलने की मांग गलत नहीं है। आवेदन पर कई छात्रों ने हस्ताक्षर किए, मैंने भी किए। लेकिन हद तो तब हो गई जब देशद्रोह के आरोपी उमर खालिद और एक वामपंथी नेत्री गीता कुमारी को फेसबुक में इन छात्रों द्वारा टैग किया गया।
सवाल उठता है कि आईआईएमसी के आंतरिक मामलों में इन बाहरी अराजक तत्वों का क्या काम?’’ संस्थान के एक छात्र नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘‘दरअसल कुछ वर्षों में जिस तरह से वामपंथियों द्वारा देश के प्रतिष्ठित संस्थानों को एक षड्यंत्रपूर्ण तरीके से निशाना बनाया जा रहा है, आईआईएमसी में हुआ उपद्रव उसी का एक रूप है। ऐसे तत्व यह देखते हैं कि कौन से संस्थान हैं जहां कोई न कोई कारण निकालकर अपने एजेंडे को हवा दी जाए। वे आईआईएमसी में भी जेएनयू जैसा माहौल पैदा करना चाहते हैं जबकि यहां सख्त प्रशासन के आगे उनकी एक नहीं चलती। इसलिए वे छात्रों का सहारा लेकर संस्थान के आंतरिक मामले को तूल देकर वैचारिक लड़ाई में तब्दील करने का प्रयास करते हैं। वे बताते हैं,‘‘ जेएनयू के कुछ अराजक तत्वों की शह पर संस्थान के एक छात्र समूह ने सोशल मीडिया से लेकर मुख्य धारा की मीडिया में संघ, केन्द्र सरकार और संस्थान के महानिदेशक को भला-बुरा कहा।’’ हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के बाद भी संस्थान ने छात्रों के दोनों समूहों से बात की और तीन दिन तक चली भूख हड़ताल को खत्म कराया। प्रशासन ने छात्र हितों को ध्यान में रखकर 11 बजे रात तक पुस्तकालय एवं आने वाले सत्र से छात्रों के लिये छात्रावास देने के प्रयास किए जाने की बात कही।
बहरहाल यह सच है कि एक खास वर्ग द्वारा देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों को बदनाम करने की साजिश लंबे समय से रची जा रही है। आईआईएमसी में यह सब होना उसी साजिश का एक हिस्सा था। लेकिन प्रशासन और छात्रों की सूझबूझ से यह साजिश नाकामयाब हो गई।
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