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पहले रमाकांत आचरेकर, गुरुचरण सिंह, तारक सिन्हा, देशप्रेम आजाद जैसे कोच हुए है, जिन्होंने अनेक विश्वस्तरीय खिलाड़ी देश को दिए। अब वही काम राहुल द्रविड़ कर रहे हैं तो पी. गोपीचंद भी उसी परंपरा को निभा रहे हैं। इन गुरुओं के सिखाए प्रतिभावान खिलाड़ी दुनिया के हर कोने में भारत का नाम रोशन कर रहे
विवेक शुक्ला
गत दिनों भारतीय क्रिकेट टीम अंडर-19 आॅस्ट्रेलिया को पटखनी देकर विश्व विजेता बन गई। कप्तान पृथ्वी शॉ की अगुआई में इस टीम ने शानदार खेल का प्रदर्शन किया। टीम को वाहवाही मिलने के साथ ही पैसों की बौछार हो रही है। वहीं टीम के कोच राहुल द्रविड़ की भी जबरदस्त तारीफ हो रही है। सच में उन्होंने जो काम किया है, वह प्रशंसा के लायक ही है। उन्होंने युवा खिलाड़ियों को खेल की बारीकियों से परिचित तो कराया ही, साथ ही जबरदस्त मेहनत के लिए भी प्रेरित किया। परिणाम सामने है। द्रविड़ चाहते तो ‘कमेंट्री’ करके हर साल करोड़ों रुपए कमा सकते थे। उनकी क्रिकेट की समझ और आवाज बेहतरीन है। लेकिन भारतीय क्रिकेट की दीवार रहे द्रविड़ ने कठिन रास्ते पर चलना बेहतर माना। राहुल के इंडिया-ए और इंडिया अंडर-19 टीम के कोच पद को संभालते ही भारत में उदीयमान क्रिकेट खिलाड़ियों की फौज सामने आने लगी है। 100 से अधिक टेस्ट मैच खेलने वाले द्रविड़ देश के युवा क्रिकेटरों के निर्देशक और गुरु के रूप में उभरे हैं। उनकी देखरेख में भारत ने अंडर-19 विश्व कप पर कब्जा कर लिया है। द्रविड़ हर खिलाड़ी को प्रोत्साहित करने से लेकर उन्हें क्रिकेट की बारीकियों को बताने-समझाने में सदैव तत्पर रहते हैं। उनकी प्रतिभा को शब्दों में बांधना असंभव है।
वहीं बैडमिंटन के शानदार खिलाड़ी से कोच बने पी.गोपीचंद की कहानी भी द्रविड से मिलती-जुलती है। वे बैडमिंटन संघ के पदाधिकारी या कोई खेल अकादमी चला कर मोटी कमाई कर सकते थे। लेकिन उन्होंने भी बैडमिंटन कोर्ट में पसीना बहाते रहने का निर्णय लिया। अब ये दोनों कांटों भरे रास्ते को सफलता से पार कर रहे हैं। गोपीचंद भारतीय बैडमिंटन के कायाकल्प में लगे हैं। साइना नेहवाल, पी.वी.सिंधू, के. श्रीकांत जैसे विश्व स्तरीय खिलाड़ी उनसे कोचिंग लेने के बाद ही बैडमिंटन की दुनिया में शिखर पर पहुंचे हैं। उनका समर्पण भाव अनुकरणीय है। वे भी अपने शिष्यों में जीत का जज्बा पैदा करते हैं।
नेपथ्य में रहते द्रविड़
इंदौर में जन्मे और कर्नाटक की ओर से रणजी ट्रॉफी खेलते रहे राहुल द्रविड़ जब सक्रिय थे, वे तब भी तमाम उपलब्धियों के बावजूद नेपथ्य में ही रहना पसंद करते थे। अब कोच बनने पर भी वे अपनी सफलता का महिमामंडन नहीं करते। उनका काम खुद बोलता है। आपने भी देखा होगा कि इंडिया अंडर-19 की टीम कप जीतने के बाद जब मैदान में सामूहिक फोटो खिंचवा रही थी, तब वहां पर द्रविड़ नहीं थे। यही नहीं, उन्होंने कहा, ‘‘यह जीत इन खिलाड़ियों की मेहनत की जीत है।’’ गोपीचंद भी द्रविड़ की ही तरह अत्यंत सुसंस्कृत और विनम्र हैं। उन्होंने कोच के रूप में देश को विश्व चैंपियन है। साइना और सिंधू ने ओलंपिक में पदक हासिल किए। ये दोनों कोच विवादों से परे हैं। शायद ही कभी उनका नाम किसी वाद-विवाद में घसीटा गया हो।
कुछ पुराने गुरु
अगर बात क्रिकेट की हो तो देश ने देशप्रेम आजाद से लेकर रमाकांत आचरेकर सरीखे कई दिग्गज कोच देखे हैं। देशप्रेम आजाद से क्रिकेट की बारीकियों को जाना कपिलदेव, योगराज सिंह, युवराज सिंह, हरभजन सिंह समेत पंजाब और हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के बीसियों खिलाड़ियों ने। एक बार कपिलदेव ने कहा था, ‘‘अगर उनके जीवन में देशप्रेम आजाद सर न आए होते तो वे क्रिकेट में उपलब्धियां दर्ज नहीं करा पाते।’’ चंडीगढ़ के सेक्टर-16 के मैदान में देशप्रेम दशकों तक नि:स्वार्थ भाव से छोटे-छोटे बच्चों को क्रिकेट खेलने के गुण बताते-समझाते रहे। सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली के कोच रमाकांत आचरेकर ने भी कोचिंग को साधना की तरह लिया। अमूमन कोच के काम की अनदेखी हो जाती है। अगर टीम या खिलाड़ी जीतता है, तो कोच को थोड़ा-बहुत श्रेय मिल जाता है। अगर उसकी टीम या खिलाड़ी हारता है, तो उसकी आफत ही आ जाती है। हर कोई उसकी खिंचाई करने लगता है। कोच पर हमेशा कड़ी नजर रहती है। उसके कामकाज की समीक्षा के वक्त सब विशेषज्ञ हो जाते हैं।
क्रिकेट के जानकार द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता गुरुचरण सिंह या तारक सिन्हा के नाम से परिचित होंगे। इन दोनों ने कीर्ति आजाद, अजय जडेजा, मनिंदर सिंह, आशीष नेहरा, मनोज प्रभाकर, भास्कर पिल्लै, शिखर धवन समेत दर्जनों अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट खिलाड़ियों को तराशा। पर इन्हें कभी टीम इंडिया का कोच बनाने के संबंध में नहीं सोचा जाता। अर्जेंटीना के महान फुटबॉल खिलाड़ी डिएगो माराडोना कोचिंग को भी बड़ी ईमानदारी और लगन से अंजाम देते थे। वे 2010 के दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप में अपने देश की टीम को क्वॉर्टर फाइनल में मिली शर्मनाक हार से सन्न रह गए थे। उसके बाद उन्होंने यहां तक कहा था कि वे उस हार का का बदला चुकाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। आपको याद होगा कि दक्षिण अफ्रीका में वर्ल्ड कप में हार कर बाहर हो जाने के बाद उनके देश की फुटबॉल एसोसिएशन ने माराडोना को कोच पद से हटा दिया था। माराडोना इस बात को लेकर बहुत भावुक हो गए थे। तब उन्होंने भावुक अंदाज में कहा था, ‘‘मैं अपने देश की टीम के साथ वापस आने के लिए अपनी एक बांह देने को तैयार हूं। कोच बनने के लिए मैं अपनी जिंदगी तक दे सकता हूं।’’
इंडिया अंडर-19 टीम की शानदार सफलता के चलते सारा देश प्रसन्न है। इस विजय में राहुल द्रविड़ का योगदान निर्विवाद है। आशा की जानी चाहिए कि वे उभरते हुए खिलाड़ियों को उसी तरह से प्रोत्साहित करते रहेंगे जैसे जामवंत ने सीता की खोज के समय हनुमान को किया था। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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