‘‘एक व्यक्ति के लालच की कीमत चुका रही दिल्ली’’
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दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा कहते हैं,‘जिन सिद्धांतों और मूल्यों को लेकर आम आदमी पार्टी की स्थापना हुई थी उन सभी सिद्धांतों को अरविंद केजरीवाल ने रसातल में पहुंचा दिया है। लाभ के पद पर असंवैधानिक रूप से 20 विधायकों की नियुक्ति से यह बात सही साबित हो चुकी है।’ हाल ही में पार्टी के 20 विधायकों की रद्द की गई सदस्यता और उससे जुड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र ने उनसे विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता खत्म होने पर क्या आप मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने कानून ताक पर रखकर असंवैधानिक तरीके से पद बांटे?
सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि राष्टÑपति महोदय ने जो निर्णय लिया है, इसके बाद अरविंद केजरीवाल को बाबासाहेब द्वारा बनाए गए संविधान की ताकत का अहसास हो गया होगा। उन्होंने अपने आप को देश के कानून से बड़ा समझ लिया था और अब उनको जरूर लगा होगा कि कानून से बड़ा कोई नहीं है। रही बात कानून ताक पर रखने की तो स्पष्टत: कानून का उल्लंघन हुआ था और यह सब अरविंद केजरीवाल को पता था। इसीलिए निर्णय लेने के बाद विधानसभा में एक कानून पिछली तारीख से लाकर उसे लागू कराने की कोशिश की गई, जिसे तत्कालीन राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी ने नहीं माना। हालांकि 20 विधायकों की सदस्यता देर से रद्द हुई, क्योंकि कानूनी दांव-पेचों में केजरीवाल ने इस मामले को खूब उलझाया। लेकिन वे सफल नहीं हुए। यह हमारे संविधान की जीत है।
आआपा का आरोप है कि चुनाव आयोग ने उसे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया। इसमें कितनी सचाई है?
देखिए, यह एक सफेद झूठ है। सबसे पहले तो चुनाव आयोग में ढाई साल सुनवाई चली है। इस दौरान हर विधायक ने अलग वकील खड़ा किया ताकि सुनवाई में देरी हो, जबकि सबका विषय एक ही था। साथ ही, जब आयोग ने तथ्य इकट्ठे करने शुरू किए तब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने एक रिपोर्ट जमा कराई जिसमें स्पष्ट विवरण दिया गया कि विधायकों को विधानसभा में दफ्तर, जगह-जगह सरकारी भवनों में काम करने की जगह भी दी गई थीं। सरकारी गाड़ियों का इस्तेमाल भी किया गया और फर्नीचर इत्यादि खरीदने में पैसे भी लगे। विधानसभा परिसर के अंदर इन्हें दफ्तर दिए गए जो मेरे हिसाब से किसी अन्य राज्य में नहीं दिए जाते। जब ये तथ्य सामने आ गए तो इन्होंने चुनाव आयोग के नोटिसों का जवाब देना बंद कर दिया। जब आयोग ने अंतिम नोटिस भेजा, तब विधायकों का जवाब आया कि इस विषय पर हमें जो भी कुछ कहना था कह चुके हैं, इससे ज्यादा हमारे पास कहने को कुछ नहीं है। यह सब ‘आॅन रिकार्ड’ है। इसलिए उच्च न्यायालय में जब पार्टी का वकील गया तो उसे फटकार लगी।
आआपा नेता संजय सिंह का कहना है कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के एजेंट के तौर पर काम कर रहा है। स्वतंत्र संस्थाओं पर इस तरह आरोप लगाना क्या दर्शाता है?
ये लोग पहले ईवीएम पर सवाल उठा रहे थे। फिर चुनाव आयोग पर सवाल उठाने लगे और अब चुनाव आयुक्त के ऊपर। अब ये भारत के राष्टÑपति के ऊपर सवाल उठा रहे हैं। वहां से भी निराशा हाथ लगेगी तो न्यायालय पर भी आरोप लगाने से नहीं हिचकेंगे। अंत में जब चुनाव में हारेंगे तो जनता को ही गलत ठहराएंगे। दरअसल, यह केजरीवाल की ‘ब्लेम गेम’ की राजनीति है। केजरीवाल और मनीष सिसोदिया उस बच्चे की तरह व्यवहार कर रहे हैं जिसके हाथ से कोई महंगी चीज टूट जाए तो पिटाई न हो इसलिए वह पहले ही रोना शुरू कर देता है। इन्हें मालूम है कि इनकी गलती पकड़ी गई है। इनका असल चेहरा सामने आ चुका है और अब जनता भी इनको नकारने वाली है।
जिन वादों और जनहित के कार्यों को लेकर अरविंद केजरीवाल सत्ता में आए थे, तीन साल बाद उनकी सरकार को आप कहां पाते हैं?
देखिए, केजरीवाल ने एक टÞ्वीट किया था कि भगवान ने कुछ सोच कर ही 67 सीटें दी होंगी। इसके जवाब में मैंने लिखा है कि अब भगवान कुछ सोच कर ही सीटें भी कम कर रहा है, क्योंकि मुझे लगता है इनको जो जनमत मिला उसका सम्मान इन्होंने नहीं किया। पहले दिन से इन्होंने आरोप-प्रत्यारोप की जो गंदी राजनीति शुरू की, आज तक कर रहे हैं। कभी प्रवर्तन निदेशालय गलत है, कभी दिल्ली के अधिकारी गलत हंै, कभी दिल्ली के उपराज्यपाल गलत हैं, कभी चुनाव आयोग गलत और कभी उच्च न्यायालय गलत है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि इस देश में एक ही व्यक्ति सही है, बाकी सब गलत हैं और सब उनके ही खिलाफ काम कर रहे हैं। जब आपके सामने सारी गाड़ियां उलटी दिशा से आ रही हों तो इसका मतलब है कि आप ही गलत लेन में गाड़ी चला रहे हैं। मुझे लगता है दिल्ली की जनता सब समझ रही है।
भ्रष्टाचार समाप्त करने का ढोल पीटने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं पर राज्यसभा की सीटें बेचने के आरोप लगे हैं। क्या केजरीवाल आज खुद इस दलदल में धंस गए हैं?
बिल्कुल। वे पूरी तरह से भ्रष्टाचार में फंसे हुए ही नहीं हैं, बल्कि गले तक डूबे हुए हैं। जिस कांग्रेस पार्टी को विधानसभा में जनता ने एक भी सीट नहीं दी, उस पार्टी के सुशील गुप्ता को राज्यसभा भेज दिया! जब हम भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, तब यही सुशील गुप्ता शीला दीक्षित के पक्ष में प्रचार करते थे। दरअसल, सुशील की एक मात्र योग्यता पैसा है। इसके अलावा उनके पास कुछ नहीं है। जब केजरीवाल यह लिखते हैं कि सचाई के रास्ते पर चलते रहो, तब मुझे लगता है कि वे पार्टी के लोगों को यही संदेश देते हैं कि सबको उसी रास्ते पर चलना है जो रास्ता सुशील गुप्ता जैसों के दरवाजे पर जाकर खत्म हो जाता हो। दूसरी बात, वे खुद को पाक साफ और स्वच्छ छवि का नेता बताते हैं, जबकि केजरीवाल, सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और कैबिनेट के अन्य सहयोगियों पर भ्रष्टाचार से जुड़े 15 मामले दर्ज हैं। भ्रष्टाचार के 35 अलग-अलग मामले में जांच चल रही है। यह सब बेशर्मी की हद है।
मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की जनता के नाम दो पन्ने का खत लिखा है। इसमें वे कहते हैं कि हमारी सरकार ने बिजली के दाम कम करने से लेकर मुफ्त पानी और नई सड़कों का जाल बिछा दिया है। इन दावों में कितनी सचाई है?
इसमें दो बातें हैं। पहली, उप मुख्यमंत्री की भूमिका तब आती है, जब मुख्यमंत्री अस्वस्थ हो या कहीं बाहर हो। लेकिन दिल्ली में रहते हुए भी मुख्यमंत्री दिल्ली की जनता को संबोधित नहीं कर रहे हैं, बल्कि उपमुख्यमंत्री यह काम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री को मालूम है कि जनता उनका नाम सुनते ही आग-बबूला हो जाती है। इसलिए वह मनीष सिसोदिया से पत्र लिखवा रहे हैं। दूसरी बात, मनीष सिसोदिया ने जो आंकड़े पेश किए, वे गलत हैं। जब मैं मंत्री था, तब दो साल की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि 300 कॉलोनियों में पानी के पाइप डाल दिए गए हैं। पिछले हफ्ते मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल ने फिर से बयान जारी किया कि 309 कॉलोनियों में पानी की लाइन डाल दी हैं। यानी दो साल में जो काम हुआ, उसके बाद एक साल में कोई काम ही नहीं हुआ। अब रही बिजली की बात तो दिल्लीवासियों के बढ़े हुए बिल मिल रहे हैं। हर विधायक के दफ्तर में लोगों की लंबी कतार है। सड़कें खराब हैं। लोक निर्माण विभाग ने पिछले तीन सालों से सड़क मरम्मत, फुटपाथ की लिपाई-पुताई ही नहीं की है। कुल मिलाकर काम नहीं हुआ है।
मौजूदा हालात में क्या यह कहा जा सकता है कि केजरीवाल और उनकी राजनीति हाशिये पर आ चुकी है?
देखिए, पार्टी का गठन व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर हुआ था। कहा गया था कि जनता का राज होगा। जनता से पूछकर काम करेंगे। मोहल्ला सभाएं होंगी। विधायक विधानसभा में जनता की समस्याओं को उठाएंगे। यानी स्वराज की बात की गई थी। लेकिन आज इसका वीभत्स चेहरा दिखाई दे रहा है। आज केजरीवाल की छवि यह है कि वे अपनी परछाई के साथ भी अपनी शक्ति बांटने को तैयार नहीं हैं। किसी एक पर भी उन्हें भरोसा नहीं है। सिद्धांत कहां बचे? केवल एक व्यक्ति के लालच की कहानी चल रही है, जिसकी कीमत पूरी दिल्ली चुका रही है। कुल मिलाकर इस राजनीतिक पार्टी का अंत हो चुका है।
आआपा के विधायकों के खिलाफ लाभ का पद मामले में याचिका दाखिल करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता प्रशांत पटेल से विधायकों की सदस्यता रद्द करने के मुद्दे पर पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र ने बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
आम आदमी पार्टी के नेता बार-बार कह रहे हैं कि विधायकों ने लाभ का पद या कोई लाभ नहीं लिया है। लेकिन आपने चुनाव आयोग को जो शिकायत भेजी थी, उसमें संसदीय सचिव को लाभ का पद बताया और उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की। आखिर आआपा के नेता कौन सा झूठ जनता से छिपा रहे हैं?
20 सितंबर, 2016 को दिल्ली सरकार ने मुख्य सचिव द्वारा चुनाव आयोग में एक हलफनामा दर्ज कराया था। इसके बाद आयोग ने मुख्य सचिव को एक नोटिस भेज कर यह बताने को कहा कि इन विधायकों को कैसे तमाम सुविधाएं मिलीं? तब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने शपथपत्र देकर बताया कि 11 लाख रुपये विधानसभा परिसर में खर्च किए गए, गाड़ियां दी गर्इं, चार लाख रुपये दिल्ली सचिवालय में चैंबर बनाने में खर्च किए गए, 15 हजार रुपये मेहनताना भी दिया गया, उनके लिए कमरे बनवाये गए। और भी कई तरह की सुविधाएं दी गर्इं। दूसरी मुख्य बात यह है कि ये विधायक एक मंत्री के रूप में काम कर रहे थे। कैबिनेट की बैठक में उपस्थिति दर्ज कराते थे, कंपनी को टेंडर और ‘कान्टैÑक्ट’ दे रहे थे, जबकि यह काम विधायक का न होकर मंत्री का है। जो काम मंत्री का है, अगर वह काम विधायक कर रहा है तो कहीं न कहीं लाभ बनता ही है। दूसरा, जब वे कह रहे हैं कि विधायक लाभ नहीं ले रहे थे, तो उन्हें पता होना चाहिए कि लाभ सिर्फ नकद या चेक से संबंधित नहीं होता। इसके अलावा, अगर महत्वपूर्ण जगह पर किसी को पद मिल जाता है तो यह भी लाभ के दायरे में ही आता है। संसदीय सचिव का पद मिलते ही विधायक मंत्री के साथ बैठ सकते हैं। उनके अधिकार बढ़ जाते हैं। सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल होने लगता है। उन्हें कार्यालय के लिए सेवक मिलेंगे, फर्नीचर लगेगा, बिजली खर्च होगी इत्यादि-इत्यादि। ये खर्चे तो सरकारी खजाने से ही होंगे और तब यह लाभ में ही गिना जाएगा। इसलिए आआपा नेता और केजरीवाल मामले को दबाकर जनता को सफेद झूठ बता रहे हैं। एक बार वे सचाई भी बताएं तो अच्छा लगेगा।
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की जनता के नाम एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें उनका कहना है कि विधायकों को गैर-संवैधानिक और गैर-कानूनी तरीके से बर्खास्त किया गया है। क्या वे दिल्ली की जनता से कानूनी बारीकियां छिपाकर भ्रमित कर रहे हैं?
हां, निश्चित तौर पर वे दिल्ली की जनता को तो भ्रमित कर रहे हैं, अपने विधायकों को भी भ्रमित कर रहे हैं। संसदीय सचिवों को गलत तरीके से नियुक्त किया गया, यह सचाई है। अब जबकि उनकी चोरी पकड़ी गई तो दिल्ली की जनता को दिखाना चाह रहे हैं कि ‘मैंने कुछ गलत नहीं किया है। हमें तो साजिश के तहत बदनाम किया जा रहा है।’
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