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ओंकारेश्वर में स्थापित होने वाली आद्य शंकरचार्य की 108 फुट ऊंची प्रतिमा और उनकी स्मृति में बनने वाला केन्द्र न केवल नई पीढ़ी को सनातन धर्म से जोड़ेंगे बल्कि अथाह ज्ञान सागर में डुबकी लगाने का अवसर भी प्रदान करेंगे
प्रशांत बाजपेई
इतिहास का हमारा अनुभव है कि जब-जब हम देशवासी सब भिन्नताओं से ऊपर उठकर, एकात्मता का सन्देश लेकर साथ चले, तब-तब भारत का उत्थान हुआ है। भारत फिर आगे बढ़ रहा है। हम दुनिया को आश्वस्त करना चाहते हैं कि भारत की शक्ति का जागरण विश्व के मंगल का कारण बनेगा। हमारी कभी ऐसी आकांक्षा नहीं रही कि हम दुनिया को अपनी शक्ति से जीतें, हमने तो हृदयों को जीता है।’’ 22 जनवरी को मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने उक्त विचार व्यक्त किये। अवसर था, एकात्म यात्रा के समापन और आद्य शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा के भूमिपूजन और शिलान्यास का। मंच पर उपस्थित थे स्वामी सत्यमित्रानंद जी, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, स्वामी अवधेशानंद गिरि, चिन्मय मिशन के स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, वैदिक विद्वान वामदेव शास्त्री और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।
एकात्म यात्रा चार स्थानों, ओंकारेश्वर- उज्जैन, पचमठा (रीवा) और अमरकंटक से 19 दिसंबर, 2017 को प्रारंभ होकर मध्यप्रदेश के सभी 51 जिलों से सांकेतिक धातु संग्रहण कर गत 21 जनवरी को ओंकारेश्वर में समाप्त हुई। इसी के निमित्त 22 जनवरी को ओंकारेश्वर में आद्य शंकराचार्य की 108 फुट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा की स्थापना के लिए भूमिपूजन, शिलान्यास और जनसंवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
श्री भैयाजी जोशी ने इस अवसर पर कहा, ‘‘मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग हैं। नर्मदा का उद्गम है। यह भारत का मध्य बिंदु है। सदा से भारत के केंद्र में अध्यात्म है। मध्य प्रदेश से एक बार फिर विश्व को दिशा देने का काम प्रारंभ हुआ है। हम सब मिलकर ज्ञान की इस धारा को पुष्ट करें, यज्ञ में अपना योगदान दें।’’ स्वामी सत्यमित्रानंद जी ने अपने उद्बोधन की शुरुआत ‘सब महात्माओं के चरणों में प्रणाम’ कहकर की। आद्य शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के सन्देश पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘द्वैत है ही नहीं। आंखें दो हैं, पर दोनों आंखों से दृश्य एक ही दिखता है। ऐसी एकात्मता यात्राएं पूरे देश में चलनी चाहिए। शिव की नगरी में किये गए सारे संकल्प पूर्ण होते हैं। इसलिए ओंकारेश्वर में आज जो संकल्प लिए गए हैं वे पूर्ण होंगे, इसमें मुझे तनिक भी संदेह नहीं है। वर्षों से मेरा एक अभ्यास बन गया है कि किसी भी शुभकार्य के लिए मैं अपनी भिक्षा में से समर्पण करता हूं। इसलिए यहां बनने जा रहे सांस्कृतिक एकता न्यास के लिए 5 लाख की राशि अर्पित करता हूं।’’ उद्बोधन के अंत में उन्होंने कहा,‘‘आप सबसे हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं कि जाति का विस्मरण कीजिए, एकात्मता का चिंतन कीजिए। समाज में समरसता स्थापित कीजिए।’’
इस अवसर पर उपस्थित सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा,‘‘शंकर बहुआयामी हैं। वे बौद्धिकता के शिखर पर हैं, तो भाषा विज्ञानी भी हैं। आध्यात्मिक गुरु हैं। गहरी जीवन दृष्टि रखते हैं। वे मानवता का चमकता हुआ प्रकाश हैं। वेदांत के ज्ञान को कई लोगों ने समझाया, लेकिन शंकराचार्य ने उसे जितनी स्पष्टता से कहा, और जिस ऊर्जा के साथ उसे लोगों तक पहुंचाया, वह अद्भुत है। यदि किसी को शंकर की गहराई को साझा करना है तो उनके जितना गहरा उतरना पड़ेगा। आचार्य शंकर के व्यक्तित्व पर दृष्टि डालते हैं तो प्रश्न उठता है कि इतनी ऊर्जा, ऐसी प्रज्ञा कहां से आती है। इसका संकेत मानो उनके जन्मस्थान के नाम में छिपा है। उनका जन्म केरल के जिस गांव में हुआ, उसका नाम कालड़ी है। कालड़ी का अर्थ होता है चरणों के नीचे। भारत की यह शिक्षा है कि चरणों में बैठकर, झुककर, समर्पित होकर, हम विश्व में चमकता हुआ प्रकाश बनें, यही हमारी शक्ति है। एक और बात ध्यान में रखने की है कि यह सारा ज्ञान हमने अनुभूति (स्वयं सत्य का दर्शन करके) से प्राप्त किया है, मात्र मजहबी विश्वास
से नहीं।’’
स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने कहा,‘‘आज हम इतिहास के साक्षी बन रहे हैं। एकात्मता यात्राओं से कुम्भ जैसा वातावरण बना। स्थान-स्थान पर संतों के प्रवचन हुए, जिससे जनसामान्य में आद्य शंकराचार्य का सन्देश गया। मध्य प्रदेश कभी विद्या का केंद्र था। यहां पर भगवान कृष्ण, भ्राता बलराम के साथ सांदीपनी आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने आए थे। ओंकारेश्वर एक बार फिर, तक्षशिला और पाटलिपुत्र की तरह ज्ञान का केंद्र, शोध संस्थान बने। मैं मां नर्मदा से प्रार्थना करता हूं कि प्रदेश में सुख-समृद्धि, खुशहाली रहे।’’
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने वीडियो सन्देश में कहा कि पहले नर्मदा यात्रा, फिर एकात्मता यात्रा संपन्न हुई। इन यात्राओं से आध्यात्मिक चेतना जाग्रत हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि यह मेरे जीवन का अद्भुत दिन है। 9 फरवरी को इसी स्थान पर विचार हुआ कि केरल आद्य शंकराचार्य की जन्मभूमि है, तो मध्य प्रदेश उनकी ज्ञान भूमि। मां से संन्यास की अनुमति लेकर वे केरल से दो हजार किलोमीटर दूर, यहां आए। यहीं उन्होंने नर्मदाष्टक की रचना की। जब देश मत-मतांतर और कर्मकांडों में फंसा हुआ था, तब उन्होंने देशाटन करके सारे देश को एकात्मता का संदेश दिया। जब सारा जगत ‘सिया-राममय’ है, तब भेदभाव कैसा। भारत का विचार है ‘आत्मवत सर्वभूतेषु’ अर्थात् केवल मनुष्यों में नहीं, बल्कि सभी प्राणियों में अपने आत्मस्वरूप का दर्शन। इसीलिये हम कहते हैं, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो।
ओंकारेश्वर के लिए आगामी योजनाओं की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ओंकारेश्वर पर्वत पर आद्य शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा की स्थापना के साथ यहां पर एक विशाल संग्रहालय बनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त लाइट एंड साउंड शो की व्यवस्था भी की जाएगी। प्रतिमा के पास आचार्य शंकर की स्मृति में एक केंद्र बनेगा जहां लघु फिल्मों के माध्यम से उनका जीवन चरित दिखाया जाएगा। आॅडियो-वीडियो केंद्र का नाम ‘माया’ तय हुआ है। विज्ञान के आधार पर अद्वैत-वेदांत का सन्देश नयी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए नई तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। आद्य शंकराचार्य एकता न्यास की योजना सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि राज्य ने मासूम बच्चियों से दुराचार करने वालों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया है, लेकिन सिर्फ कानून से बात नहीं बनेगी। नैतिक बल और सामाजिक जागरण की भी आवश्यकता है।
कार्यक्रम स्थल पर मुख्य मंच के आसपास चारों मठ और चारों वेदों के दर्शन पर आधारित मंचों का निर्माण किया गया था। समारोह में मणिपुर और ओडिशा के कलाकारों द्वारा शंखघोष, पश्चिम बंगाल के कलाकारों द्वारा पुरुलिया छाऊ नृत्य तथा असम के बिहू नृत्य की सुंदर प्रस्तुतियां हुर्इं। ल्ल
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