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पाञ्चजन्य में विशेष रूप से सबको इस बात का गर्व है कि हमारे प्रथम संपादक श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में इस देश का नेतृत्व भी किया। विश्व के बहुत कम समाचार पत्रों को यह सौभाग्य मिलता है कि वे एक राष्टÑीय परिवर्तन का न केवल उद्घोष बनें, बल्कि उसमें कार्यरत सहयोगी उस परिवर्तन को लाने वाले योद्धा और राष्टÑीय महानायक के रूप में भी प्रतिष्ठित हों। अटल जी ने पाञ्चजन्य का इतना मान रखा कि प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति के बाद सबसे पहला साक्षात्कार उन्होंने अपने प्रिय पाञ्चजन्य को दिया। प्रधानमंत्री बनने के तीन प्रसंगों के समय उन्होंने पाञ्चजन्य से प्रथम वार्ताएं कीं। प्रस्तुत हैं चुनिंदा प्रश्न और उनके उत्तर
जिन लोगों के पास अनाज नहीं है, उनके पास तो संस्कृति दिखाई देती है। किंतु जिनके पास आवश्यकता से अधिक अनाज और भौतिक सुख-साधन हैं, उनके पास ही संस्कृति नहीं दिखती।
यह आपने ठीक कहा। इसीलिए पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि पूंजी का अभाव भी बुरा है और पूंजी का प्रभाव भी बुरा है। इसका अर्थ यह है कि भौतिक आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिएं, किंतु वे अनियंत्रित नहीं होनी चाहिए। आज जो अनियंत्रित उपभोक्तावाद चल रहा है, यह न आर्थिक दृष्टि से ठीक है और न जीवन को सुंदर और समुन्नत ही बनाता है। लेकिन फिर मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि जिस देश में आधी से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे का जीवन बिता रही हो, उसमें अगर पूंजी के बुरे प्रभाव पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया तो यह बात सच होते हुए भी समाज के गले से नीचे नहीं उतरेगी।
वर्तमान संदर्भ में आप हिंदू संस्कृति को किस रूप में देखते हैं?
हिंदू संस्कृति नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो रही है। शंकराचार्य का सम्मान करते हुए भी उनसे मतभेद प्रकट किया जा रहा है। अन्य शंकराचार्यों ने उनसे अपनी भिन्न राय प्रकट की है। धार्मिक संस्थाएं हरिजनों के मंदिर-प्रवेश का समर्थन कर रही हैं। दिवराला सतीकांड के खिलाफ बवंडर मच गया। कर्मकांड पर अब जोर नहीं है। लेकिन इस प्रवृत्ति को यह कहना कि कर्मकांड के साथ धर्म भी निष्कासित हो रहा है, गलत है। धर्म कैसे निष्कासित हो सकता है? धर्म तो हमारी धारणा है। धर्म हमारे अस्तित्व की आश्वस्ति है। भारत की यही विशेषता है कि यहां अनेक मत-मतांतर रहे, लेकिन उन मत-मतांतरों के बीच हमने मूल तत्व को ओझल नहीं होने दिया। हर प्राणी में दैवी चिंगारी देखी और यह विश्वास जगाया कि मानव नर से नारायण बन सकता है।
क्या आपको लगता है कि जब गर्व से स्वयं को हिंदू कहा जाता है तो उसमें ‘हम भारतीय हैं’ की आवाज मद्धिम हो जाती है?
मद्धिम तो नहीं हो जाती किंतु संतुलन के लिए दोनों बातें साथ कहनी चाहिए। समाज को इस दुविधा का हल निकालना होगा। हम मुसलमानों से भी यह आशा करते हैं कि वे अपने को मुस्लिम भारतीय नहीं, भारतीय मुसलमान कहें। यद्यपि हिंदुत्व उस अर्थ में एक प्रार्थना-पद्धति नहीं है जिस अर्थ में इस्लाम या ईसाइयत है, लेकिन जब हम हिंदू धर्म शब्द का उपयोग कर रहे हैं तो हम कुछ सीमा खींचते हैं, कुछ दीवारें खड़ी करते हैं- यहां भी संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
ल्ल अपनी सरकार के कार्यकाल का कोई ऐसा क्षण बताइए जो आपको सर्वाधिक आनंद देता है।
लंबी-चौड़ी सूची है। क्या-क्या बताएं, लेकिन भारत को परमाणु शस्त्रों से सज्ज करना (पोकरण) सबसे तृप्तिदायक मानता हूं।
ल्ल देश भुलाकर आपस में ही लड़ना, यह कैसा चरित्र है अपने समाज का?
अरे भाई,800 साल की गुलामी का इतिहास है उसका असर रक्त में है।
(पाञ्चजन्य में प्रकाशित साक्षात्कारों के यह चुनिंदा प्रश्नोंत्तर हैं। सभी साक्षात्कार विस्तार से पाञ्चजन्य के पूर्व संपादक श्री तरुण विजय ने एक पुस्तक ‘मेरे सपनों का भारत-भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी’ में प्रस्तुत किए हैं। ल्ल
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