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स्वतंत्रता के 65 साल बाद भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के सामने किस प्रकार की चुनौतियां हैं, और उन चुनौतियों का सामना कैसे किया जा सकता है, इन बिन्दुओं पर विश्व हिन्दू परिषद् के तत्कालीन संरक्षक श्री अशोक सिंहल से अरुण कुमार सिंह ने विस्तृत बातचीत की थी। यह साक्षात्कार पाञचजन्य के 19 अगस्त, 2012 के अंक में छपा था। सेकुलर राजनीति के संदर्भ में आज भी यह साक्षात्कार प्रासंगिक है
आजादी के 65 साल बीत जाने के बाद देश के सामने किस तरह की चुनौतियां हैं और इसके क्या कारण हैं ?
वास्तव में प्रजातंत्र हिन्दू का स्वभाव है। यह अंग्रेजों की देन है, ऐसा मैं नहीं मानता। प्रजा क्या चाहती है, उसका हमारे यहां पंचायतों के माध्यम से गांव-गांव में निराकरण किया जाता था और न्याय भी उस आधार पर होता था। पंचायतों के माध्यम से कानून का पालन भी होता था। यानी प्रजातंत्र हमारे स्वभाव में है। मगर अंग्रेजों ने जिस प्रकार का प्रजातंत्र हमें दिया है वह पूरे देश के लिए सोचने और विचारने का विषय है। प्रजातंत्र आज बड़े-बड़े हिंसक समाजों और जातिवादी घृणा पैदा करने वालों के हाथों में जा रहा है। वे धीरे-धीरे समाज का नेतृत्व कर रहे हैं।
ऐसा नेतृत्व जब हमारे सामने खड़ा हो गया है तो उसके दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। भ्रष्टाचार के ऐसे मामले उजागर होने लगे हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। कालेधन की चर्चा चारों ओर होने लगी है। यह सब भारतीय स्वभाव के बिल्कुल प्रतिकूल हो रहा है। इस प्रकार का प्रजातंत्र हमारे यहां कभी रहा ही नहीं। इसे अंग्रेजों ने हम पर थोप दिया है। इस प्रजातंत्र से समाज बड़ा त्रस्त हो गया है। समाज बड़े संकट और कष्ट में है। इसलिए हमें विचार करना ही होगा कि आखिर भारत में किस प्रकार का प्रजातंत्र चाहिए।
हमारा समाज बड़ा सत्यवादी रहा है। पूरे समाज में सचाई का एक वातावरण था। अंग्रेजों ने जब से यहां शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन किया और हमारी शिक्षा में से धर्म को हटा लिया तब से भारत में शिक्षा के दुष्परिणाम भी दिखने लगे हैं। यही कारण है कि आज समाज में कानून-व्यवस्था चरमरा गई है। हमें प्रजातंत्र चाहिए मगर भारतीय परम्पराओं की रक्षा, धर्म की अनिवार्य शिक्षा के साथ चाहिए। वह पंथनिरपेक्ष भारत से संभव नहीं, आध्यात्मिक भारत के स्वरूप को चरितार्थ करके चाहिए।
आज चारों ओर आतंकवादियों का साम्राज्य हो गया है। एक तरफ पाकिस्तान है, दूसरी ओर बंगलादेश है, उनके द्वारा प्रेरित जिहादी आतंकवादी भारतीय जीवन को रात-दिन अशान्त बनाए हुए हैं, हिन्दुओं में अलगाव पैदा कर रहे हैं। आज सर्वाधिक अशान्ति जिहादी इस्लाम से है जो उनके लाखों मदरसों के कारण है। राजनीति में कार्य करने वाले हर व्यक्ति के लिए हिन्दू समाज, उसकी संस्कृति और धर्म की रक्षा प्रधान कार्य होना चाहिए। विकास के कार्य उसके बाद आते हैं। गोरक्षा, मन्दिरों की रक्षा, सन्तों की रक्षा, पर्वों में विघ्न पैदा करने वालों से रक्षा, अपने पवित्र तीर्थों की रक्षा, मतान्तरण से रक्षा, कट्टरवादियों द्वारा छोटी जातियों पर अन्याय से रक्षा, जो भी करेगा हिन्दू समाज एक वोट बैंक के नाते उसके पीछे खड़ा होगा।
ब्रिटिश राज्य के समय से ही हिंसक चर्च भारत के उत्तर पूर्व में ‘लिबरेशन मूवमेन्ट’ के संगठन बनाकर हिन्दू समाज को आक्रान्त किए हुए है तथा सम्पूर्ण भारत में मतान्तरण की आंधी चलाए हुए है। चीन से प्रेरित माओवादी विचारधारा कम्युनिस्ट नाम से भारत के 400 से अधिक जिलों में हिंसा के सहारे जीवन दूभर किए हुए है। ये हिंसक अशान्ति पैदा करने वाले तत्व 100 करोड़ हिन्दुओं पर हावी हो रहे हैं। आज आवश्यकता है कि जो भी बन्धु हिन्दू समाज की रक्षा के लिए राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, वे समवेत् कार्य करें, एक-दूसरे के पूरक बनकर कार्य करें।
सरकारों की सेकुलरवादी नीतियों से देश में किस तरह की समस्याएं खड़ी हो रही हैं ?
इस देश का शत्रु है सेकुलरवाद। हिन्दू समाज को मिटाने का एक षड््यंत्र है सेकुलरवाद। मैं तो इतना ही जानता हूं कि यदि इस देश में सेकुलरवाद चलता रहा तो हिन्दू समाज समाप्त हो जाएगा। इसलिए इस देश में हमेशा के लिए सेकुलरवाद समाप्त हो, इसका प्रबन्ध होना चाहिए। धर्म की रक्षा होनी चाहिए। हमारे देश में किसी पंथ का राज्य नहीं रहा है, मगर धर्म का राज्य रहा है। विदेशों में पंथ के राज्य रहे हैं, पर अपने यहां धर्म का राज्य चाहिए। सेकुलरवाद एक पंथ है और हमें किसी पंथ का राज्य मंजूर नहीं है। पिछले दिनों दिल्ली के सुभाष पार्क में रातों-रात एक मस्जिद का ढांचा खड़ा हो गया और उसमें दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बड़ी भूमिका मानी जाती है। प्रश्न है कि क्या शीला जी सिर्फ मुसलमानों की मुख्यमंत्री हैं या दिल्ली के सभी नागरिकों की मुख्यमंत्री हैं?
वह सेकुलर मुख्यमंत्री हैं। यदि राष्टÑीय मुख्यमंत्री होतीं तो वहां मस्जिद का ढांचा खड़ा नहीं होता। उसी समय वह ढांचा गिरा दिया जाता। अब भी वह ढांचा नहीं गिराया जा रहा है। इस देश के भीतर जो हिन्दुओं के शत्रु हैं, सेकुलरवादी उनके लिए ही काम कर रहे हैं। यदि ये लोग इसी तरह काम करते रहेंगे तो देश की कानून-व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाएगी। जब ये आतंकवाद के खिलाफ कुछ कर ही नहीं रहे हैं तो आतंकवाद सेकुलरवादियों की छत्रछाया में बढ़ता ही जाएगा।
क्या अपनी राजनीतिक उपेक्षा के लिए हिन्दू समाज स्वयं दोषी नहीं है?
हिन्दू समाज दोषी नहीं है, राजनीतिक दल दोषी हैं। सेकुलरों ने हिन्दू समाज को जाति, पंथ, सम्प्रदाय के नाम पर बांट रखा है। इसलिए सेकुलरों के दोष को हिन्दू समाज का दोष न कहें। हिन्दू समाज अपनी रक्षा कर रहा है। बड़े-बड़े काम कर रहा है।
वर्तमान केन्द्र सरकार की नीतियों से हिन्दू समाज को किस प्रकार का नुकसान हो रहा है?
जब तक सेकुलरवादी राज्यसत्ता पर बने रहेंगे तब तक हिन्दू समाज को क्षति पहुंचती रहेगी। हिन्दू समाज के पांच शत्रु हैं, उनमें सबसे मुख्य सेकुलरवाद है। इस देश के भीतर जितनी भी विदेशी शक्तियां हैं, वे सभी हमारी शत्रु बनकर खड़ी हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
चर्च हमारा विरोध करता है और हिंसक तरीकों को अपनाकर अपना प्रचार करता है, तो यह उसकी रीति-नीति है, जो वर्षों से चली आ रही है। इस्लाम अपनी आक्रामकता के बल पर अपनी सत्ता का प्रभाव बढ़ा रहा है। यानी चर्च और हिंसक इस्लाम तो हमारे शत्रु हैं ही, चौथा शत्रु है चीन। उसका माओवाद हमारे यहां क्या कर रहा है, उसको सब जानते हैं।
पांचवां शत्रु है वह सेकुलर मीडिया, जो इन सबका समर्थन करता है। सेकुलर मीडिया इन्हीं सबके पैसे पर पल रहा है। इन पांच शत्रुओं से घिरा है हिन्दू समाज। देखिए, इन सबसे कौन पार पाता है।
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