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श्याम नारायण पाण्डेय
यह तुंग हिमालय किसका है?
उत्तुंग हिमालय किसका है?
भारत का यौवन गरज उठा
जिसमें पौरुष है, उसका है?
फण काढ़े सापों के सर पर
जो राह बनाये उसका है-
जो बैरी मस्तक काट-काट
अंबार लगाये उसका है।
बर्बर वैरी के घर-घर में
जो आग लगाये उसका है
जो वज्रनाद के भी ऊपर है
आवाज लगाये उसका है।
पत्थर से ईटों का जवाब
जो दे के गरजे शान रखे
लोहे की दृढ़ता से लोहा
जो ले के, मां का मान रखे
जो सीने पर गोली खाये
पर कदम-कदम बढ़ता जाये
जो महामृत्यु को भी ढकेल
अरि मस्तक पर चढ़ता जाये
इनसे उनसे दबने वाले
यह नहीं दबैलों का गिरीन्द्र
यह सिंहों की स्वच्छन्द भूमि
दुर्द्धर्ष अड़ैलों का गिरीन्द्र
जिसकी भुजंग सी बाहों में
फुफकार भरी है, शक्ति भरी
जिसकी गज भर की छाती में
जनता की है अनुरक्ति भरी
जो मर कर भी जीने वाला
जनता हित विष पीने वाला
संगर में प्रलयंकर बनकर
नर मुण्डमाल सीने वाला
जो नहीं शत्रु को जान सका
जो नहीं मित्र पहचान सका
उससे गिरिराज घृणा करता
जो बैरी को दहला न सका
जो पंच-मांगियों के मस्तक
निर्भीक पड़ाये उसका है
जो पांवों की गंभीर धमक से
धरा हिलाये उसका है?
जिस धरती का रस पिये
और उस धरती को बदनाम करे
बाहर स्वदेश का भक्त बने
भीतर कैंची का काम करे
गद्दारों के सीने में जो
संगीन घुसाये उसका है
जो अपनी मां के स्वाभिमान पर
प्राण गंवाये उसका है?
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