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भारत के प्रधानमंत्री आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लामबंदी के अगुआ और प्रतीक के तौर पर उभरे हैं किन्तु आतंकवाद पर उनका यह दृष्टिकोण पाञ्चजन्य पाठकों के लिए नया नहीं है। गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 27 जुलाई, 2006 को मुंबई के षण्मुखानंद सभागृह में आतंकवाद विरोधी रैली में दिया भाषण पाञ्चजन्य के 20 अगस्त 2006 के अंक में प्रकाशित हुआ था। प्रस्तुत हैं संपादित अंश
मैं कल्पना नहीं कर सकता हूं कि भारत जैसे देश में यहां के निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट क्यों उतारा जा रहा है? क्या अपराध है उन निर्दोष नौजवानों का? क्या अपराध है उन मां-बहनों का? किसी का भाई छीन लिया जाता है, किसी का लाड़ला छीन लिया जाता है। किसी बहन का सिंदूर पोंछ दिया जाता है। क्यों? कब तक? जिन परिवारों ने मुंबई बम विस्फोट में अपने स्वजन खोए हैं मैं उन्हें आश्वस्त करता हूं कि उनके परिजनों का लहू बेकार नहीं जाएगा। इतिहास साक्षी है कि जो समाज अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं भूल जाता है, उन्हें अनदेखा करता है, वह समाज कभी अपना भविष्य नहीं बना सकता। हर युग में जनजीवन में एक आग होनी चाहिए, मन में एक हुंकार उठनी चाहिए। आतंकवाद मानवता का दुश्मन है और इसके खिलाफ लड़ाई मानवता की लड़ाई है। इस लड़ाई में हम अगर मानवता के साथ खड़े न हो सके तो हमें अपने आपको मानव कहने का कोई हक नहीं है। मैं आदरपूर्वक इन हुतात्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हम 100 करोड़ देशवासियों को वह शक्ति दे कि हम इन हुतात्माओं को भूल न सकें।
युद्ध से भयानक आतंकवाद
आतंकवाद के स्वरूप को हमें समझना पड़ेगा। दुनिया के विकसित देश सीना तान कर कह रहे थे कि हमने ‘यू.एन.ओ.’ नाम की संस्था बनाई है, जो विश्व को युद्ध से बचाएगी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानवजाति को युद्ध से बचाने की भूमिका संयुक्त राष्ट्र संघ ने संभाली। यू.एन.ओ. समर्थक भले ही दावा करें कि उन्होंने युद्धों को रोकने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई अथवा ‘युद्ध’ शब्दावली के आसपास चलने वाली गतिविधियों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पैदा किया, पर आज युद्ध ने अपना दूसरा रास्ता खोज लिया है। युद्ध अब आतंकवाद के रूप में छद्म तरीके से लड़ा जा रहा है।
युद्ध की सीमाएं होती हैं, युद्ध दो देशों की सेनाएं लड़ती हैं। देश की रक्षा में जान देने के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। व्यक्ति अपना घर छोड़कर सेना में जाता है तो सिर्फ रोजी-रोटी के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए मर मिटने को जाता है। युद्ध के कुछ नियम होते हैं और युद्ध रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विधि की व्यवस्था होती है। लेकिन आतंकवाद युद्ध से भी भयानक होता है। आतंकवाद का कोई नियम, कोई मर्यादा नहीं होती। किसको मारना है, कहां मारना है, कब मारना है, कैसे मारना है, यह सब आतंकवादी तय करता है। और इस आतंकवाद में कितने लोग मारे गये …..! हिंदुस्थान की सीमा पर जो युद्ध हुए हैं, उन युद्धों में हमने जितने जवान नहीं खोए, उससे ज्यादा जवान हमने इस आतंकवाद रूपी छद्म युद्ध के कारण खोए हैं। हर दिन हिंदुस्थान के किसी न किसी कोने में 20-30 साल के हमारे जवान, जो सुरक्षा बलों में काम कर रहे हैं, किसी बुजदिल आतंकवादी के शिकार हो जाते हैं। क्या अपराध है उन शहीदों के मां-बाप का, जिन्होंने अपने लाड़ले को सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए भेजा था?
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मुंबई आकर घोषणा करते हैं, ‘आतंकवादी हरकतों के पीछे पड़ोसी देश है और ऐसी स्थिति में उससे वार्ता नहीं हो सकती।’ दिल्ली पहुंचते ही वे कहते हैं, ‘ऐसी छोटी- मोटी घटनाएं वार्ता के बीच नहीं आएंगी। हम शांति के रास्ते ढूंढ रहे हैं। मुझे विश्वास था कि प्रधानमंत्री जी भारत की 100 करोड़ से भी ज्यादा जनता की आवाज को बुलंद करेंगे, लेकिन रूस की धरती पर कदम रखते ही उन्होंने पहला बयान दिया, ‘हम पोटा फिर से नहीं लाएंगे।’ सवाल उठता है कि क्या आप इन समस्याओं के प्रति गंभीर हैं? उन्होंने तर्क दिया कि पोटा होते हुए भी अक्षरधाम पर हमला हुआ। प्रधानमंत्री जी को पता होना चाहिए कि पोटा होने के बावजूद अक्षरधाम पर हमला हुआ, लेकिन पोटा होने के कारण ही हमलावरों को फांसी का फंदा मिला। गुजरात की धरती पर पोटा के कारण ही ऐसा संभव हो सका। पोटा आतंकवादियों पर क्या प्रभाव पैदा कर सकता है, यह तो विवाद का विषय है, लेकिन पोटा हिंदुस्थान के सुरक्षाबलों का मनोबल जरूर बढ़ा सकता है।
देश का दुर्भाग्य देखिए! यू.पी.ए. सरकार सत्ता में आई तो पहले ही दिन उसने पहले फैसले में पोटा को हटा दिया। दूसरी तरफ इस मुद्दे पर दुनिया के बाकी देशों का रुख देखिए। अमेरिका में आतंकवाद की घटना (11 सितंबर) के बाद उसने 20 दिसंबर, 2001 को एक कानून पारित किया और आतंकवाद के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ने की घोषणा की। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी एक प्रस्ताव पारित कर पूरी दुनिया से आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ने की अपील की। 9/11 के बाद अमेरिका ने, जिसके पास सब प्रकार के कानून पहले से ही मौजूद थे, नयी परिस्थिति में नया कानून बनाया-पैट्रिअॅट एक्ट, 2001। एक दूसरा कानून भी बनाया जिसका नाम है- फाइनेन्शियल एंटी टेररिज्म एक्ट, 2001। इतना ही नहीं, अमेरिका ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए ‘आंतरिक सुरक्षा’ हेतु एक नयी फौज गठित कर दी। अमेरिका जैसा देश, जो मानवाधिकार की वकालत पूरी दुनिया में ढोल पीटकर करता है, उसने भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए कानून व्यवस्था खड़ी की। यहां हिंदुस्थान में मानवाधिकार के नाम पर दो-चार पांच सितारा कार्यकर्ता चिल्लाने लगे तो देश के कानून को गड्ढे में डाल दिया गया। सिर्फ अमेरिका ने ही नहीं फ्रांस, जापान आदि ने भी आतंकवाद के खिलाफ कानून बनाए हैं। उसके कुछ उदाहरण मैं आपको देना चाहूंगा—
1. कनाडा ने 15 अक्तूबर, 2001 को आतंकवाद विरोधी कानून लागू किया।
2. फ्रांस ने 31 अक्तूबर, 2001 को अपने सुरक्षा विधेयक में आतंकवाद विरोधी संशोधन पारित किया।
3. जापान ने 29 अक्तूबर, 2001 को आतंकवाद विरोधी ‘मोएजर विधेयक ’ पारित किया। यहां तक कि बंगलादेश और बहरीन जैसे देशों ने भी आतंकवाद के खिलाफ अपनी-अपनी संवैधानिक संस्थाओं में विधेयक पारित किए।
ये सभी देश अपने देशवासियों को संदेश देते हैं कि हम आतंकवाद के प्रति गंभीर हैं। लेकिन भारत सरकार ने यहां पोटा को हटा दिया। आप किस प्रकार अपने देश को आतंकवाद से बचाएंगे? इनकी बातों पर विश्वास करना कठिन हो गया है।
देश तोड़ने की साजिश
आज हमारे देश को तोड़ने की साजिश की जा रही है। पूरे हिंदुस्थान का नक्शा आप देख लीजिए! एक तरफ उत्तर-पूर्व है, जहां घुसपैठ की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। असम तक यह खेल चल रहा है। दूसरी तरफ पशुपतिनाथ से लेकर तिरुपति तक ‘रेड कॉरिडोर’ बनाने के लिए नक्सलवादियों ने हिंदुस्थान को लहू से रंग दिया है। पूरे हिंदुस्थान के नक्शे पर नक्सलियों का कब्जा है। हिंदुस्थान की विकास यात्रा में पश्चिमी क्षेत्र अहम भूमिका निभाता रहा है। पर अब, चाहे वह कर्नाटक हो या गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब या दिल्ली, हिंदुस्थान के पश्चिमी छोर पर पूरी कोशिश हो रही है कि आतंकवाद के द्वारा हिंदुस्थान को बर्बाद किया जाए। एक तरफ उत्तर-पूर्व में घुसपैठ और अलगाववाद, मध्य में नक्सलवादियों का आतंक और अब पश्चिमी छोर को आतंकवाद की गिरफ्त में लाने की तैयारी! एक-एक घटना साफ बताती है कि इस देश को तहस-नहस करने का पाप बड़ी बेरहमी से किया जा रहा है। मियां जिया उल हक के जमाने से यह सब चल रहा है। आतंकवाद का सिद्धांत है— दुश्मन को अपाहिज कर दो। आतंकवाद की हर घटना हमें अपाहिज कर रही है। सौ करोड़ का देश क्या अपाहिज होकर चलेगा और क्या हम यह सहते रहेंगे?
क्या है आपका भविष्य?
मैं इस देश के नौजवानों से पूछता हूं कि आप का भविष्य क्या है? किसके हाथों में है आपका भविष्य? क्या यही मौत के सौदागर हिंदुस्थान पर कब्जा करेंगे और क्या वही आपका भविष्य होगा? सूचना प्रौद्योगिकी में आपका दिमाग कितना भी तेज चलता हो, वित्त व्यवस्था में आप कितना भी तेज चलें, पर जब देश आतंकवादियों के कब्जे में होगा तो आपका कोई भविष्य नहीं होगा! देश में एक सोची समझी चाल चली जा रही है। विदेशी धन से पले कुछ ‘पांच सितारा’ कार्यकर्ता, जो खुद को बुद्धिमान मानते हैं, उनका काम क्या है? जब भी इस देश में आतंकवाद की कोई घटना होती है और कोई उसके खिलाफ आवाज उठाता है, उसे साम्प्रदायिक रंग दे दिया जाता है। अरे! आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाले मानवता के सिपाही हैं। आतंकवादियों का जवाब र्इंट के बदले पत्थर से देना चाहिए। लेकिन उसके साथ-साथ महात्मा गांधी की तरह आप के भीतर भी सत्य की लड़ाई के लिए आग जलनी चाहिए। हिंसा से कुछ होने वाला नहीं है। शांति इसकी पहली शर्त रहेगी। लेकिन सरकार को भी अपना दायित्व निभाना पड़ेगा।
आतंकवाद के सेकुलर पोषक
इस देश में शांति कोई नयी चीज नहीं है। हो सकता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वालों को अभी-अभी पता चला हो कि इस देश में शांति भी रहती है। अमरनाथ यात्रा पर इतने हमले हुए, इस देश में कहीं कोई पत्थर भी नहीं गिरा। रघुनाथ मंदिर पर हमला हुआ, पर कहीं कंकर तक नहीं गिरा। गुजरात में आतंकवादी आए थे, अक्षरधाम मंदिर पर हमला किया। गुजरात ने बंद रखा, लेकिन गुजरात में एक कंकर तक नहीं गिरा। लेकिन कुछ लोग इन चीजों को भूल जाना चाहते हैं। उनका काम ही है,कोई भी घटना घटे तो आतंकवादियों को बौद्धिक संरक्षण देने के लिए वे तुरंत मैदान में उतर आते हैं। आतंकवादियों के खिलाफ जैसे ही कोई आवाज उठाता है, उसके लिए साम्प्रदायिक, हिटलर, और न जाने कैसे-कैसे शब्द शब्दकोश से खोज लाते हैं। आतंकवादियों के हौसले बुलन्द हैं क्योंकि इसका रास्ता भी हमने ही तैयार किया है। इशरत जहां नामक आतंकवादी लड़की गुजरात पुलिस से मुठभेड़ में मारी गई। वह दिन याद कीजिए! सारी दुनिया के कथित मानवाधिकारवादी मोदी पर टूट पड़े थे कि एक नौजवान लड़की को मार गिराया। इस प्रदेश के ‘फाइव स्टार’ मीडिया के कुछ मित्रों ने पूरे ताम-झाम से उसका जनाजा निकाला। सब कुछ किया गया, लेकिन मैं चुप था। तीन दिन के बाद ‘गजवा टाइम्स’, जो लश्करे तोयबा का मुख पत्र है, ने एक लेख में कहा, ‘हमें गर्व है कि इशरत जहां ने हमारे मकसद को पूरा करने में अपनी जान की बलि चढ़ा दी।’ तब जाकर ये लोग चुप हुए।
कांग्रेस के कारनामे
कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है, यह देखकर मैं हैरान हूं। कोयम्बतूर में 1998 के चुनाव में आडवाणी जी एक चुनाव सभा को संबोधित करने वाले थे। वहां बम धमाका किया गया। 58 निर्दोष लोगों की मौत हो गई। इस कांड के सारे आरोपियों को कैद कर लिया गया। केरल विधान सभा में, वहां की सभी पार्टियों ने मिलकर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया कि 1998 के कोयम्बतूर विस्फोट के मुख्य गुनहगार अब्दुल नजर मदनी को जेल से रिहा कर दिया जाए। उसे छोड़ने का प्रस्ताव पारित कराने के लिए होली के दिन विशेष सत्र बुलाया गया। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? देश को ये क्या संदेश देना चाहते हैं? तमिलनाडु में चुनाव हुए। उस चुनाव में कांग्रेस ने जिस पार्टी के साथ समझौता किया उसका नाम है— तमिल मुस्लिम मुनेत्रकडगम। सिमी पर जो आरोप लगाए गए हैं, उसमें इस पार्टी का नाम भी शामिल है। क्या आतंकवाद से ऐसे लड़ा जाएगा? क्यों देश को गुमराह किया जा रहा है? मैं देश के बुद्धिजीवियों से कहना चाहता हूं कि क्या यह देश के साथ अपराध नहीं है?
असम चुनाव के समय उल्फा ने असम को लहूलुहान कर दिया। कांग्रेस को जिताने के लिए वह खुलेआम चुनाव के मैदान में था। उल्फा आतंक फैलाता है, निर्दोष लोगों को मारता है, अपहरण करता है। मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं कि राजनीतिक फायदे के लिए आप चुनाव के समय उल्फा का समर्थन लेते हैं, फिर किस मुंह से आतंकवाद के खिलाफ लड़ेंगे? बिहार में चुनाव हुआ। यू.पी.ए. के एक घटक दल उस चुनाव में एक मेहरबान को चुनाव सभा में साथ लेकर घूमते थे। क्यों घूमते थे? क्योंकि उस मेहरबान का चेहरा-पहनावा ओसामा बिन लादेन जैसा था। उसे दिखाकर बिहार में वोट मांगे गए। टी.वी. वाले भी बड़ी शान से उसे दिखाते थे कि देखिए, बिल्कुल बिन लादेन जैसा दिखता है। क्या यह देश सेवा हो रही है? भारत में क्रिकेट मैच हुआ। भारत सरकार ने कहा- जिसको आना है, आओ। 11 पाकिस्तानी भारत आकर गुम हो गए।
आतंक विरोधी योजना
यह दुर्भाग्य है कि बहुत से राज्यों में गुप्तचर विभाग अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रहे हैं। मेरा मानना है कि आई.ए.एस. एवं आई.पी.एस. की तरह जानकारी इकट्ठा करने के लिए भारत सरकार को एक अलग भारतीय गुप्तचर सेवा (इंडियन इंटेलिजेंस सर्विस) कैडर बनाना चाहिए जिससे जानकारियां इकट्ठी करने में सरलता होगी। दूसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता इस बात की है कि सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रदान किए जाएं। प्रधानमंत्री जी कश्मीर में थे और देश को एकता और शांति का संदेश दे रहे थे। ठीक उसी समय आतंकवादियों ने गुजरात के पर्यटकों पर कश्मीर में बम फेंका जिसमें तीन लोग मारे गए।
मैंने उसी दिन प्रधानमंत्री जी को एक चिट्ठी लिखी कि आप तत्काल सभी मुख्यममंत्रियों की एक बैठक बुलाइए क्योंकि आतंकवाद कश्मीर से बाहर हिंदुस्थान के भिन्न-भिन्न कोनों में जा रहा है। अब तक उन्होंने मुझे कोई जबाव नहीं दिया। बंगलौर में आतंकवादियों ने वैज्ञानिकों को मार दिया। शोक प्रस्ताव पारित करके बात खत्म हो गई। क्या ऐसे ही देश चलेगा? गुजरात सरकार ने संगठित आतंकवाद के खिलाफ एक कानून पारित किया है— गुजकोका। गुजरात एक सरहदी राज्य है। जमीन और समुद्र से उसकी सीमा दुश्मन देश से जुड़ी हुई है। गुजरात विधानसभा ने वह कानून पारित कर केंद्र सरकार के पास भेज दिया। महाराष्ट्र न्यायालय के निर्णय के अनुसार सुधार करके पुन: विधानसभा में पारित किया और केंद्र सरकार को भेजा। वर्ष 2004 से गुजरात का गुजकोका कानून केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल दबा कर बैठे हैं। क्या इसी तरह उनकी सरकार आतंकवाद और अपराधियों से लड़ने वाली है? इसके खिलाफ एक जन जागृति की आवश्यकता है और जागृति को पूरा करने के लिए मैं फिर कहता हूं-भारत सरकार पर दबाव बढ़ाना चाहिए। अभी मैं इस्रायल गया था। वहां हर व्यक्ति की आंखों में एक स्वप्न है, अपने देश के स्वाभिमान का, अपने देश के लिए जूझने का स्वप्न। क्यों न हम हिंदुस्थान में भी ऐसा माहौल बनाएं! मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि विदेशी ताकतों एवं आतंकवादियों द्वारा मौत की नींद सुला दी गईं आत्माएं आतंकवाद के खिलाफ मानवता की हमारी लड़ाई में हमें शक्ति प्रदान करें।
किशोर मकवाणा
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