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कोरेगांव-भीमा घटना की आड़ में दिल्ली के संसद मार्ग पर जमा हुई वामपंथी टोली के कार्यक्रम का निष्कर्ष भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के खिलाफ दुष्प्रचार और विषवमन करना भर था
अश्वनी मिश्र
कोरेगांव-भीमा घटना के बहाने पिछले दिनों दिल्ली के संसद मार्ग पर वामपंथी संगठनों एवं गुजरात के वड़गाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी समूह ने ‘युवा हुंकार रैली एवं जनसभा’ का आयोजन किया। इसका लब्बोलुबाब दलित उत्पीड़न की आड़ में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ वामपंथी जहर उगलना भर था। जनसभा के मंच पर हर बार की तरह वही चेहरे दिखाई दे रहे थे, जो अखलाक की मौत से लेकर रोहित वेमुला की आत्महत्या तक और ऊना की घटना से लेकर कर्नाटक की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या में होने वाले प्रदर्शनों में नजर आते हैं। चंद शैक्षिक संस्थानों से वामपंथी राजनीति की टेर उठाने वाली, शिक्षक-छात्र मंडलियां इक्का-दुक्का अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही थीं। यानी नया कुछ नहीं था, न ही सुर बदले थे। अगर बदला था तो सिर्फ स्थान। हालांकि दिल्ली पुलिस ने एनजीटी के एक आदेश का हवाला देते हुए रैली और जनसभा की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन व्यवस्था को तोड़ते हुए वामपंथी नेताओं ने जनसभा की।
मीडिया पर बोला हमला
कार्यक्रम का संचालन कर रहे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष मोहित पांडेय ने प्रमुख धारा के मीडिया पर मंच से सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा,‘‘मीडिया भाजपा और आरएसएस से मिला हुआ है। इसलिए वह कार्यक्रम के बारे में गलत जानकारी दे रहा है।’’ तो वहीं कुछ देर बाद जेएनयू की छात्र नेता शहला रशीद ने मीडिया को निशाने पर लिया और कहा, ‘‘हम प्रमुख धारा के मीडिया में विश्वास नहीं रखते। कल से कुछ मीडिया वाले जेड और आर (जी न्यूज और रिपब्लिक) गलत सूचनाएं दे रहे हैं।’’ इस तरह की बयानबाजियों पर मीडिया के लोगों ने नाराजगी जताई और इसका प्रतिकार करते हुए कहा कि वे सबूत दें और तब ऐसी बात कहें। इसके अलावा जनसभा में कुछ चैनलों की महिला संवाददाताओं को निशाना बनाकर न केवल आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया बल्कि छेड़खानी करने की भी कोशिश की गई। हालांकि मौके पर मौजूद दिल्ली पुलिस ने हस्तक्षेप करके महिला संवाददाताओं को सुरक्षा प्रदान की।
हकीकत कुछ और
जनसभा के मंच से जेएनयू के छात्र नेताओं द्वारा बार-बार यही कहा जा रहा था कि कार्यक्रम में देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में दलित और शोषित वर्ग के लोग आए हुए हैं। लेकिन जब इसकी पड़ताल की तो हकीकत कुछ और ही दिखाई दी। यहां दिल्ली के जाने-पहचाने और खारिज किए जा चुके चेहरे ही भीड़ का हिस्सा बने हुए थे। इसके अलावा मीडिया का इतना हुजूम उमड़ा था कि कार्यक्रम में आए लोगों से ज्यादा कैमरामैन और संवाददाता ही नजर आ रहे थे। यानी कुल भीड़ से ज्यादा पत्रकार थे। हां, कुछ लोग जरूर ऐसे थे जो अपने को दूर-दूराज से आया हुआ बता रहे थे। कमल तान्डे, रवि महाराज, गोविंद ओडिशा के कालाहांडी से रैली में भाग लेने आए थे। तो वहीं बिहार से पवन और राकेश भी नजर आए। लेकिन मंच से वामपंथी नेताओं द्वारा बार-बार मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए बड़ी संख्या में सुदूर क्षेत्रों से लोगों की सहभागिता की जो बात की जा रही थी वह एकदम कोरी साबित हो रही थी।
इनका काम भड़काना है!
कार्यक्रम में बहुत से ऐसे लोग भी नजर आ रहे थे जो इसे महज ‘ड्रामा’ कह रहे थे। इनमें से एक हैं राकेश कुमार बघेल। दिल्ली के रहने वाले राकेश कहते हैं, ‘‘मैं तो यहां इनका ड्रामा देखने आया हूं, क्योंकि मुझे पता है ये लोग गलत हैं। इनका मकसद किसी का हित नहीं, बल्कि समाज को आपस में बांटकर भड़काना है। मेरा मानना है कि दलितों के हित में आवाज जरूर बुलंद करनी चाहिए। पर हर बार इनका तरीका गलत होता है। ये जहां-जहां जाते हैं वहां हिंसा ही भड़कती है। ये लोग जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाकर देश को बरगला रहे हैं, उससे समाज में दरार चौड़ी हो रही है, जो निहायत गलत है। इनका मकसद ही है समाज को बांटना क्योंकि जितना ज्यादा समाज बंटेगा, उतनी ही इनकी राजनीति चमकेगी।’’ तो वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राकेश कहते हैं, ‘‘इन वामपंथी नेताओं की एक-एक हरकत युवा समझते हैं। यहां जितने भी लोग मंच पर दिखाई दे रहे हैं इन्हीं लोगों ने पूरे देश में माहौल खराब कर रखा है। जब इनको सांप्रदायिक हिंसा और कुछ अन्य देशविरोधी कामों से सफलता नहीं मिली तो इन्होंने अब हिन्दू समाज को ही निशाने पर ले लिया है। ऊना और कोरेगांव-भीमा की घटनाओं से इन्होंने यह शुरुआत कर दी है।’’
बहरहाल, मंच से तेज आवाज में बज रहा गीत ‘बहुत हुआ सम्मान तुम्हारी ऐसी-तैसी’ और हर वक्ता के भाषण में दर्जनों बार हिन्दू संगठनों के खिलाफ किया गया विषवमन बता रहा था कि दलितों के हित के नाम पर किये गए इस कार्यक्रम का एकमात्र लक्ष्य केन्द्र सरकार पर अनर्गल आरोप लगाना था।
सोशल मीडिया में दिखा गुस्सा
हुंकार रैली के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा दिखाई दिया। फेसबुक पर नरेन्द्र कुमार लिखते हैं,‘‘आरएसएस और भाजपा मुक्त बनाने का ठेका अब जिग्नेश के पास है। पहले यह ठेका कांग्रेसी, वामपंथी, मुलायम, लालू और ममता बनर्जी के पास था, जो अब थक चुके हैं। इनके प्रखर क्रान्तिकारी अरविंद केजरीवाल तो निद्रा में हैं।’’ तो वहीं अनूप राठौर लिखते हैं,‘‘चाइनीज दलालों का मकसद देश में गृह युद्ध कराना है। ऐसे लोग दलित समाज को झांसे में लेकर उन्हें बरगला रहे हैं और हिन्दू धर्म से अलग होने के लिए कह रहे हैं। पता नहीं चर्च ने कितना फंड दिया है ऐसा करने के लिए!’’ प्रदीप सिंह लिखते हैं, ‘‘कोरेगांव की घटना में पेशवा तो बहाना है, हिन्दू-हिन्दुस्थान निशाना है और उसे आग में झुलसाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना है।’’ वहीं त्रिभुवन सिंह लिखते हैं, ‘‘झूठे इतिहास को लिखकर कांग्रेस कोरेगांव की आग को हवा दे और दोष हम जैसे फेसबुकियों को दे रही है।’’
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