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भारत से बाहर संघ कार्य की शुरुआत करने वाले जगदीश चंद्र शारदा शास्त्री का गत 25 दिसंबर को टोरंटो में निधन हो गया। वे 96 वर्ष के थे। उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि जगदीश शारदा जी 1947 से पहले पंजाब में स्वयंसेवक बने और लुधियाना में संघ की कई जिम्मेदारियां निभायीं।
केन्या जाते समय उन्होंने पहली बार भारत से बाहर 1947 में मकर संक्रांति के दिन पहली संघ शाखा शुरू की। उन्होंने जहाज पर ही शाखा लगायी और संघ प्रार्थना की। उसी समय वहां उनका अन्य स्वयंसेवकों से भी सम्पर्क हुआ। यह घटना सभी स्वयंसेवकों को प्रेरित करने वाली थी। सदैव प्रसन्नचित्त रहने वाले और विनम्र स्वभाव के ‘शास्त्री जी’ बाद में कनाडा चले गए। लेकिन कनाडा जाने से पहले उन्होंने केन्या, ब्रिटेन और मॉरीशस में संघ कार्य आरम्भ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में भारत में आयोजित कई विश्व संघ शिविरों और विश्व विभाग के अधिकांश कार्यक्रमों में उन्होंने हिस्सा लिया। अपने पत्रों, व्यक्तिगत वार्तालापों और फोन पर बातचीत के जरिये उन्होंने विश्वभर में अनेक स्वयंसेवकों को प्रेरित किया। वे भारत और दुनिया के दूसरे हिस्सों में संघ कार्य विस्तार हेतु हमेशा तत्पर रहे।
शास्त्री जी की कर्मठता से प्रभावित होकर संघ के पूर्व सहसरकार्यवाह श्री यादवराव जोशी ने कहा था, ‘‘युवावस्था जीवन का चरमोत्कर्ष नहीं है, बल्कि मन की एक अवस्था है। आप में विश्वास है तो आप जवान हैं और संदेह है तो बूढ़े। आप में आत्मविश्वास है तो जवान हैं और डर है तो बूढ़े हैं। जीवन के प्रति उनके उत्साह और उनकी उच्च
स्तरीय गतिविधियों को देखकर निश्चित रूप से कह सकते हैं कि शास्त्री जी 85 वर्ष की उम्र में भी युवा हैं।’’ शास्त्री जी को विश्व विभाग का पितामह भी कहा जा सकता है।
(प्रतिनिधि)
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