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केसरिया हुए निकाय

by
Dec 11, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Dec 2017 11:11:11


उत्तर प्रदेश के 16 नगर निगमों में से 14 में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की है। इसके साथ ही सभासद चुनाव में भी उसे बड़ी सफलता मिली है। भाजपा को ‘ शहरी पार्टी ’ कहने वालों को अपनी धारणा बदलने की जरूरत

सुनील राय, लखनऊ से

ॠत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के करीब आठ महीने बाद  नगर निगम के चुनाव संपन्न हुए। और 1 दिसंबर को जब चुनाव परिणाम आए तो, भाजपा के विजय रथ के सामने इस बार भी कोई नहीं टिक पाया। सपा और कांग्रेस की तो लुटिया ही डूब गई।  पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से जनाधार के संकट से जूझ रही बसपा को दो नगर निगमों-मेरठ और अलीगढ़ में विजय प्राप्त हुई। भाजपा ने 14 नगर निगमों पर शानदार जीत दर्ज की। इसके अलावा नगरपालिका सदस्य और अध्यक्ष के पदों पर भी भाजपा को भारी सफलता मिली। भाजपा की संयुक्ता भाटिया राजधानी लखनऊ में पहली बार महिला महापौर चुनी गर्इं, तो इलाहाबाद में अभिलाषा गुप्ता ‘नंदी’ लगातार दूसरी बार महापौर निर्वाचित हुर्इं। इस चुनाव में सबसे बुरी गत कांग्रेस की हुई। राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में भी कांग्रेस बुरी तरह हारी।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र में भी सपा हार गई। चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों ने भाजपा को घेरने के लिए हर हथकंडा अपनाया मगर ये लोग मतदाताओं को अपनी ओर खींच नहीं पाए, जबकि निर्दलीय प्रत्याशियों ने कई जगह अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई।
दरअसल, विपक्ष में बैठे कांग्रेस, सपा और बसपा— ये तीनों दल इस बात पर टकटकी लगाए हुए थे कि जनता अगर किसी भी प्रकार से भाजपा से नाराज हुई तो विवश होकर इन्हीं तीनों में से किसी एक दल को वोट देगी। मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनके कार्यकाल में अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं। उसके बाद से प्रदेश के मुसलमानों ने उन पर भरोसा किया था। मुलायम सिंह उस समय कहा भी करते थे, ‘‘जब तक मेरा ‘एमवाई’ (‘एम’ से मुसलमान और ‘वाई’ से यादव) मेरे पास है, तब तक मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’ कमोबेश   ऐसा  हुआ भी। मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश  के मतदाताओं को अगडेÞ और पिछड़े वर्ग में बांटने में सफल रहे थे। इस तरह से उन्होंने मुसलमान और यादव समेत पिछड़ी जातियों का वोट हासिल किया था।  लेकिन अब ये मतदाता सपा से दूर हो चुके हैं। इसलिए यह पार्टी लगातार हार रही है। उधर हार से बौखलाई मायावती ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का पुराना राग छेड़ा और कहा कि मशीन में गड़बड़ी कर भाजपा ने जीत हासिल की।     इसके तुरंत बाद अखिलेश यादव ने भी ट्वीट कर उनकी इस बात का समर्थन कर दिया।
दरअसल, सपा की दुर्दशा के लिए स्वयं अखिलेश यादव जिम्मेदार हैं। उल्लेखनीय है कि गत विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के विरोध के बावजूद कांग्रेस से समझौता किया था। मुलायम ने उस समय कहा था, ‘‘मैंने कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ समाजवादी पार्टी बनाई थी। बाबरी ढांचे की सुरक्षा के लिए मैंने अपनी सरकार की परवाह नहीं की। ढांचा गिराते समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उत्तर प्रदेश का मुसलमान कांग्रेस के साथ नहीं है।’’ लेकिन अखिलेश नहीं माने और कांग्रेस से समझौता कर लिया। इसका खामियाजा उन्हें अब तक भुगतना पड़ रहा है।
मुस्लिम मतदाताओं ने सपा से किनारा  कर अपने को बसपा के साथ कर लिया है। बसपा ने उन क्षेत्रों में भाजपा के लिए चुनौती प्रस्तुत की, जहां मुसलमानों ने उसे वोट दिया। वहीं मुसलमानों का एक वर्ग इस बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आॅल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के साथ गया। नतीजतन एआईएमआईएम के 29 सभासद चुने गए। एआईएमआईएम ने चुनाव मैदान में 78 उम्मीदवार  उतारे थे।  इस सफलता से गद्गद असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में एक बड़ी रैली की। जिसको संबोधित करते हुए उन्होंने राहुल गांधी और अन्य कांग्रेसियों पर जम कर निशाना साधा। ओवैसी इस बात से नाराज थे कि कांग्रेस ने कहा था कि ओवैसी द्वारा उत्तर प्रदेश में प्रत्याशी उतार देने से मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव हुआ जिसकी वजह से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।
सपा के विधान पार्षद रामवृक्ष यादव कहते हैं कि सपा को बेईमानी से हराया गया। लेकिन भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ल का कहना है कि सपा, बसपा और कांग्रेस को जनता ने पूरी तरह नकार दिया है। इन लोगों के पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए ये लोग मनगढंÞत आरोप लगा रहे हैं। इस स्थिति पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग में प्रो. डॉ. योगेश्वर तिवारी का कहना है कि लोग जाति और मजहब की राजनीति से परेशान हो चुके हैं। वर्तमान समय में जनता राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत है और उसे जिस दल में यह भावना दिखती है, वह उसे अपना   मत देती है।      ल्ल

दल                       नगर निगम                         नगरपालिका                    नगर पंचायत
      महापौर    पार्षद    अध्यक्ष    पार्षद    अध्यक्ष    सदस्य
भाजपा    14    596    70    922    100    664
बसपा    2    147    29    262    45    218
सपा    0    202    45    477    83    453
कांग्रेस    0    110    9    158    17    126
निर्दलीय    0    224    43    3380    182    3875
अन्य    0    20    2    61    11    97
कुल    16    1299    198    5260    438    5433

इलाहाबाद में टूटा मिथक  

अब तक इलाहाबाद में किसी ने भी दुबारा महापौर का चुनाव नहीं जीता था, लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई। इस बार अभिलाषा गुप्ता ‘नंदी’ ने दुबारा जीत दर्ज की है। उन्होंने सपा के प्रत्याशी को 60,000 से ज्यादा मतों से हराया। अभिलाषा के पति नंदगोपाल गुप्ता ‘नंदी’ उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। नंदी कहते हैं कि योगी जी के नेतृत्व में राज्य सरकार तेज गति से विकास कार्य कर रही है। उसके कारण यह जीत मिली है। प्रदेश की 22 करोड़ जनता ही योगी जी का परिवार है। मुख्यमंत्री की ईमानदारी और कर्मठता पर लोगों का विश्वास और बढ़ रहा है।

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