चर्च और कन्वर्जन -पोप की एशिया राजनीति
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

चर्च और कन्वर्जन -पोप की एशिया राजनीति

by
Dec 11, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 11 Dec 2017 11:51:49


पोप ने म्यांमार में ‘संवाद’ की आड़ में चर्च के कन्वर्जन के एजेंडे को ही आगे बढ़ाया है। उन्होंने पुन: यह साबित किया कि वेटिकन की नजर एशिया पर है

शंकर शरण

कैथोलिक चर्च प्रमुख पोप का एशिया पर ध्यान बढ़ गया है। इससे पहले उनकी एशिया यात्रा तीन वर्ष पहले हुई थी। वह पिछली यात्रा से पंद्रह वर्ष बाद हुई थी। लेकिन इन सभी यात्राओं में एक समान बात यह है कि किसी में कोई आध्यात्मिक, दार्शनिक संदेश नहीं रहता। केवल और केवल राजनीति रहती है। इसे उनके बयानों और समाचारों की सुर्खियों से साफ देखा जा सकता है।
हैरत और दु:ख की बात है कि पोप और उनके अंतरराष्ट्रीय संगठन की खुली राजनीतिक सक्रियता, बयान और लक्ष्यों के बावजूद भारत का बौद्धिक, अकादमिक, राजनीतिक वर्ग उन्हें केवल और केवल धार्मिक, आध्यात्मिक छवि देने की जिद करता है। जबकि स्वयं पोप इसे बार-बार स्पष्ट करते रहे हैं कि उनकी चिन्ता राजनीतिक है बल्कि यदि ध्यान देकर आशय समझें तो वह राजनीति विस्तारवादी-साम्राज्यवादी तक है।
उदाहरण के लिए, अभी-अभी पोप की म्यांमार यात्रा पर सीएनएन, बीबीसी, अल जजीरा आदि सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टी.वी. चैनलों ने सारी बात रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति पर पोप के हस्तक्षेप पर ही केंद्रित रखी। उनके लिए यह स्पष्ट था कि पोप की यात्रा का मुख्य प्रभाव उसी मुद्दे से जुड़ा है। ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। तीन वर्ष पहले भी पोप की एशिया यात्रा वैसी ही राजनीतिक थी बल्कि सियोल में भाषण देते हुए पोप ने खुद कहा कि उनका यानी वेटिकन का उद्देश्य ‘एशिया पर कब्जा’ करना नहीं, बल्कि ‘संवाद’ करना है। इस गूढ़ बात का संदर्भ भारत से भी जुड़ता है। क्योंकि उससे पहले जब पोप की एशिया यात्रा (1999) हुई थी, तो तब के पोप जॉन पॉल ने राजधानी दिल्ली में खुला आवाहन किया था कि ‘इस सहस्त्राब्दी में’ एशिया पर ‘सलीब गाड़ो’ यानी ‘एशिया पर चर्च का प्रभुत्व सुनिश्चित करो’। एक बड़े भारतीय अंग्रेजी अखबार ने हेडलाइन भी दी थी—पोप ने कहा: ‘कन्वर्ट एशिया’!
पिछले पोप के ऐसी स्पष्टवादी गुमान से ही एशिया के जाग्रत हिंदुओं, बौद्धों में संदेश गया कि कैथोलिक चर्च एशिया पर नजर गढ़ाए हुए है। वैसे, यह बहुत पहले से जाहिर है। इसीलिए चीन, वियतनाम, उत्तरी कोरिया आदि लगभग दर्जनभर एशियाई देशों में वेटिकन को मान्यता तक प्राप्त नहीं है। वस्तुत: रूस जैसे भिन्न मत के ईसाई देश भी पोप को अपने यहां आने नहीं देते, न उनके कैथोलिक चर्च को रूस में अपना चर्च या कार्यालय खोलने की अनुमति देते हैं। भारत के बौद्धिकों, राजनीतिकों को कभी इन सब तथ्यों और इनकी निष्पत्तियों पर विचार करना चाहिए।  
‘संवाद’ के मायने  
बहरहाल, वही अंदेशा दूर करने के लिए पोप ने सियोल में स्पष्टीकरण दिया था कि उनका लक्ष्य एशिया पर अधिकार नहीं, बल्कि ‘संवाद’ करना है। लेकिन पोप की उस यात्रा की पृष्ठभूमि देते हुए स्वयं अंतरराष्ट्रीय संवाद एजेंसियों ने बड़ी सहजता से लिखा था-‘‘चूंकि यूरोप और अमेरिका में कैथोलिक चर्च ह्रास की स्थिति में है, इसलिए अपनी संख्या बढ़ाने के लिए एशिया पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।’’ (ए.एफ.पी.,17 अगस्त, 2014)। ये सूचनाएं निस्संदेह वेटिकन के सूत्रों से ही दी गई थीं।
किंतु दुर्भाग्यवश, भारत में पोप और चर्च के आवाहनों, गतिविधियों पर कभी कोई गंभीर चर्चा नहीं की जाती। जबकि एक अर्थ में भारत वेटिकन की वैश्विक रणनीति का प्रमुख निशाना है। क्योंकि मुस्लिम देशों में तो चर्च को कोई मौका नहीं मिलता, या न के बराबर मिलता है। आखिर इस्लाम स्वयं संगठित, कन्वर्जन करने वाला मजहब है, जो अपने इलाकों में चर्च को फैलने नहीं देता। बौद्ध देशों में भी पूरी सतर्कता रहती है। जापान के बाद श्रीलंका और अभी म्यांमार ने यही दिखाया कि वे अपने देश के बौद्ध चरित्र को इस्लामी विस्तारवाद के हवाले करने के लिए कतई तैयार नहीं है, चाहे इसकी जो कीमत चुकानी पड़े। वे चर्च के मजहबी-राजनीतिक विस्तारवाद को भी समझते हैं। इसीलिए दर्जन भर एशियाई देशों में वेटिकन को मान्यता नहीं है। उनमें चीन भी है, जिसने पोप को कड़ाई से दूर रखा है। 1951 में ही माओ ने मिशनरियों को ‘आध्यात्मिक आक्रमणकारी’ कह कर चीन से निकाल बाहर किया था। तब से आज तक वेटिकन को वहां आधिकारिक रूप से ठौर नहीं मिला है। चीन दुनिया भर के कैथोलिकों, उनके चर्च संगठनों पर वेटिकन के अधिकार की गंभीरता को समझता है। वह इसे किसी देश के ‘अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप’ मानता है। वस्तुत: अंतरराष्ट्रीय चर्च केवल मजहबी मामला नहीं है। टाइम पत्रिका के अनुसार वेटिकन का ‘षड्यंत्र’ से पुराना संबंध है। वह प्रत्येक देश की राजनीति में भी टांग अड़ाता ही है। इसलिए चीनी नीति इस मामले में बिल्कुल सही है।
सर्वविदित है कि पोलैंड पर पूर्ववर्ती सोवियत संघ का नियंत्रण तोड़ने, और अंतत: सोवियत कम्युनिज्म के विघटन में वेटिकन ने गोपनीय, मगर सक्रिय भूमिका निभाई थी। हाल में इंडोनेशिया से पूर्वी तिमोर के अलग हो जाने के पीछे कैथोलिक चर्च का खुला हाथ था। अत: भूमंडलीय अनुभवों को देखते हुए चीन वेटिकन को यथासंभव दूर रखना चाहता है। चीनी सम्राटों ने पहले भी समय-समय पर वेटिकन के मिशनरियों को चीन से निष्कासित किया है।
निशाने पर भारत  
इस पृष्ठभूमि में एशिया में भारत ही सब से सही ठिकाना और आसान निशाना है! यहां न केवल पोप का लाल कालीन पर स्वागत होता है, बल्कि कई राजनीतिक वेटिकन जाकर पोप को पूजते रहते हैं। यह सब तब है, जबकि यहां सुदूर इलाकों में संगठित कन्वर्जन की अवैध गतिविधियों से हिंसा, तनाव आदि होता रहा है। दारा सिंह ने उसी के विरोध में ग्राहम स्टेंस की हत्या की और सजा पाई थी। चर्च के कन्वर्जन कार्यक्रमों का विरोध करने के कारण ही ओडिशा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या हुई थी। किंतु हमारे बौद्धिक वातावरण पर मिशनरी प्रभाव इतना है कि किसी को मालूम भी नहीं कि उस हत्या के सजायाफ्ता अपराधियों में सब के सब ईसाई थे! ऐसे तथ्य जल्द ही गोल हो जाते हैं। उलटे, उन्हें ‘बेचारे अल्पसंख्यक’ बताकर मिशनरियों का काम आसान किया जाता है।
भारत में बड़े-बड़े प्रोफेसरों, पत्रकारों को इसका आभास तक नहीं है कि राजनीति में वेटिकन का कितना गहरा दखल और दिलचस्पी है। उदाहरणार्थ, पिछले पोप ने चीन के साथ संबंध बनाने के लिए यहां तक सोचा था कि ताइवान के साथ वेटिकन अपना कूटनीतिक संबंध तोड़ ले! केवल इसी एक तथ्य से समझा जा सकता है कि वेटिकन किस हद तक और मूलत: राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर कार्य करता है। मगर हमारे कितने बुद्धिजीवी, नेता और नीति-निर्धारक इन बातों का नोटिस भी लेते हैं? दूरगामी अर्थ समझना तो बहुत दूर रहा।
इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि लंबे समय से विदेशी मिशनरी संगठनों का सबसे प्रिय स्थान भारत ही रहा है। हमारे वामपंथी, सेक्युलर बुद्धिजीवी भी कभी मिशनरियों या पोप पर कुछ नहीं बालते। तब भी जब चीन और वेटिकन की लड़ाई चर्चा में आती है। सुदूर वेनेजुएला, सूडान, फिलिस्तीन आदि पर नियमित वक्तव्य देने वाले भारतीय बुद्धिजीवी इस निकट विषय पर गजब की चुप्पी दिखाते हैं! न वे चर्च राजनीति और दूसरे देशों में हस्तक्षेप करने के लिए वेटिकन को ‘सांप्रदायिक’ और ‘विस्तारवादी’ कहते हैं, न ही चीन में ‘ईसाई अल्पसंख्यकों पर अत्याचार’ की चर्चा करते हैं!
हमारे नेताओं, बुद्धिजीवियों का यह मौन ध्यान देने लायक है। यहां के मार्क्सवादी तब भी अपना मौन नहीं तोड़ते जब चीन में वेटिकन के प्रति वफादारी रखने वाले पादरियों को कैद कर लिया जाता है और अवैध चर्च ढहा दिए जाते हैं। वहां नए चर्च का निर्माण सरकार की अनुमति के साथ और देशभक्त कैथोलिक संघ के नियंत्रण में ही वैध है।
यदि इन बातों को भारत से संबंधित मामला न समझने का नाटक हो, तो ठीक भारत से संबंधित समाचारों पर भी वही अनदेखी रहती है। कुछ पहले भारत के 28 कैथोलिक बिशपों का दल वेटिकन दौरे पर गया था। यहां के कैथोलिक चर्च के बिशपों की नियुक्ति वहीं से होती है जिनके वेतन, सुविधाएं और पदोन्नति, सब कुछ पोप और उनके तंत्र पर निर्भर है। अत: बिशपों के वेटिकन दौरे वही आधिकारिक महत्व रखते हैं जैसे बहुराष्टÑीय कंपनियों के अफसरों के लिए अपने मुख्यालय। (एक भारतीय बिशप ने क्षोभ भी व्यक्त किया था कि ‘हमें हर बात के लिए रोम दौड़ना पड़ता है’।)
ध्यान रहे कि वेटिकन एक संप्रभुता-संपन्न देश भी है, जिसके प्रमुख पोप हैं। यह भी सांकेतिक नहीं। पोप का विश्व राजनीति में खासा दखल रहा है। उनका अंतरराष्ट्रीय अमला उनके हितों के लिए सक्रिय रहता है। फर्क बस इतना है कि इनकी दिलचस्पी केवल इसमें है कि साम-दाम-दंड-लोभ द्वारा पूरे विश्व को कैथोलिक चर्च में कन्वर्ट करा लिया जाए। इसके लिए जैसे छल-प्रपंच आम राजनीतिक दल करते हैं, उससे वेटिकन को भी परहेज नहीं।
अतएव, भारतीय बिशपों के उस दल से पोप ने भारत में ‘कन्वर्जन कराने पर अपना ध्यान केंद्रित रखने’ का ही आह्वान किया था। तब पोप ने उन भारतीय कानूनों की निंदा भी की जिसमें कन्वर्जन कराने से पहले स्थानीय प्रशासन को सूचना देना जरूरी बताया गया है। उनके अनुसार भारत के कुछ ‘फंडामेंटलिस्ट तत्वों’ द्वारा कन्वर्जन रोकने के प्रयासों से अविचल रहकर बिशपों को इसमें संलग्न रहना चाहिए। पोप के शब्दों में, ‘‘स्थानीय पादरियों, ईसाइयों और अन्य लोगों को अपने बिशप के साथ निरंतर सहयोग करते हुए एकता बनाए रखनी चाहिए … ताकि कन्वर्जन कराने के रास्ते में आने वाली बाधाओं’’ को दूर रखा जा सके। पोप ने भारतीय बिशपों को सेंट जेवियर के पद-चिन्हों पर चलने की सलाह दी जिन्होंने ‘भारत में ईसाइयत के प्रसार के लिए बहुत काम किया’।
वे सभी वक्तव्य बाकायदा वेटिकन के प्रेस कार्यालय ने जारी किए थे। मगर भारतीय मीडिया और राजनीतिक वर्ग ने इनकी अनदेखी की। उलटे, लगभग उसी समय एक बड़े अखबार (टाइम्स आॅफ इंडिया) ने ओडिशा में मारे गए मिशनरी ग्राहम स्टेंस का गुणगान करते हुए पूरे पन्ने का रंगीन परिशिष्ट छापा। जबकि उसका कोई अवसर न था। न स्टेंस का जन्मदिन, न पुण्यतिथि। न परिशिष्ट में स्टेंस के अवैध कामों का जिक्र था जो न्यायमूर्ति वधवा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में नोट किया था। जबकि उसी परिशिष्ट में रा.स्व. संघ की निंदा बड़ी प्रमुखता से की गई थी। प्रसिद्ध इतिहासकार सीताराम गोयल ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री आॅफ हिंदू-क्रिश्चियन एनकाउंटर्स’ (1996) तथा चिंतक रामस्वरूप ने ‘पोप जॉन पॉल आॅन ईस्टर्न रिलीजन एंड योग’(1997) में विस्तार से वेटिकन की राजनीति और योजनाओं का प्रामाणिक विश्लेषण किया है। किंतु इन सब पर हमारे नीतिकारों ने संभवत: कुछ ध्यान नहीं दिया।
जनसांख्यिक बदलाव
यदि हमारे मार्गदर्शकों, बुद्धिजीवियों की ऐसी विचित्र नीति हो, तब उस ‘अनावश्यक अशांति और हिंसा’(गांधीजी के शब्द) का दोष किसे दें जो मिशनरियों की कन्वर्जन गतिविधियों से जहां-तहां पैदा होती रहती है? जिसने पिछले सौ साल में भारत के उत्तर पूर्वी अंग की जनसांख्यिकी को बदलने, भोले-भाले लोगों को अपनी संस्कृति से दूर करने, देश-विमुख बनाने और देश के कई क्षेत्रों में सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने में मुख्य भूमिका निभाई है? अन्य क्षेत्रों में भी वे कटिबद्ध होकर वही कर रहे हैं। ये कड़वे, किंतु प्रामाणिक तथ्य हैं। इसे समय-समय पर अनगिनत रिपोर्टों और न्यायिक आयोगों की जांच में भी दर्ज किया गया है। उन पर चर्चा न होने से किसे लाभ होता है?
ध्यान दें, पोप के तमाम संबोधनों में कहीं गरीबों, वंचितों की ‘सेवा’ का कोई आह्वान नहीं मिलता, जिसका हवाला देकर हमारी सेक्युलर जमात हिन्दुओं को सदैव सुलाए रखने का प्रबंध करती है। पोप के सभी उद्बोधनों में केवल कन्वर्जन और कन्वर्जन पर जोर रहता है। इसीलिए पोप और उनके नुमाइंदों की सभी गतिविधियों, वक्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए। आखिर, जब पोप स्वयं ‘एशिया पर कब्जा न करने’ या ‘रोहिंग्या की इच्छा’ जैसी सफाई देते हों, क्या तब भी देखना नहीं चाहिए कि आखिर मामला क्या है?  
अब ये ‘संवाद’ वाला विकल्प ही लें, जो पोप ने प्रस्तावित किया था। दरअसल, यह कूट शब्द और ऐसे मुहावरे पोप की सभी एशिया यात्राओं में रहते हैं, अभी म्यांमार वाली यात्रा में भी थे। सामान्य लोग इसे नहीं समझ पाते और धोखा खाते रहते हैं। पर यहीं, ठीक नई दिल्ली में, पोप जॉन पाल ने उस ‘संवाद’ का अर्थ भी बताया था।
सावधानी जरूरी
एशिया के बिशपों को दिए गए विशेष उद्बोधन (नवंबर 1999) में उन्होंने कहा था कि दूसरों के साथ संवाद का एकमात्र लक्ष्य उन्हें कैथोलिक मत में कन्वर्ट करना है। वह लंबा उद्बोधन ‘एक्लेसिया इन एशिया’ शीर्षक से प्रकाशित भी हुआ है। उसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई कि चर्च का उद्देश्य छल-बल-कौशल से तमाम एशियाइयों, हिंदुओं, बौद्धों का कन्वर्जन कराना मात्र है। पोप का स्पष्ट निर्देश था: ‘कन्वर्जन के लिए संवाद’। यह वास्तविक संवाद है ही नहीं, जिसमें गैर-ईसाइयों से विचारों का आदान-प्रदान हो। अत: पोप की इस म्यांमार यात्रा से उन्हें एशिया में और फैलने तथा चीन, वियतनाम आदि में पैर फैलाने का मार्ग और स्थान कितना मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह सब अनुमान का विषय है। लेकिन पोप के म्यांमार वक्तव्य (27 नवंबर 2017) में भी केवल और केवल राजनीतिक बातें थीं। मुश्किल से 900 शब्दों के उनके संक्षिप्त भाषण में म्यांमार और वेटिकन के बीच ‘कूटनीतिक संबंध स्थापना’, ‘संवाद के प्रति निष्ठा’, ‘राजनीतिक वरीयता’, ‘राष्ट्रीय सुलह’, ‘मानवाधिकार का आदर’, ‘बल का प्रयोग न करना’,  ‘सभी समुदायों का आदर’, ‘कानून का सम्मान’,  ‘धार्मिक समुदाय’, ‘विभिन्न धार्मिक परंपराएं’ जैसे मुहावरे थे। ‘राष्ट्रीय सुलह’ का उल्लेख दो बार किया गया था। यह सब म्यांमार के सर्वोच्च नेताओं की मौजूदगी में कहा गया। कृपया देखें, ये सबके सब राजनीतिक चिन्ताओं और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के संकेत हैं।   
क्या पोप के खुले आवाहनों और उनके अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक तंत्र की गतिविधियों, घोषणाओं से हम भारत के लोग कभी कुछ सीखे, समझेंगे? निस्संदेह, जिस तरह पोप और वेटिकन अपना ‘संवाद’ चलाते हैं, वह उसी तरह है जैसा राजनीतिक पार्टियां और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक एजेंसियां करती हैं।
अत: उनके प्रति आदतन श्रद्धा-भाव से झुककर चुपचाप सुनना, उन्हें भारत में अपनी खुली-छिपी हानिकारक गतिविधियां चलाने की छूट देना और उन की मांगें पूरी करते रहना हमें बंद करना चाहिए। कम से कम हिंदू समाज को इस पर जाग्रत होकर खुला विचार-विमर्श और जांच-परख करनी चाहिए। किसी खास काम या आरोप से राजनीतिक नेताओं के इनकार की सचाई की तरह हमें सावधान रहना चाहिए कि जिस चीज से इनकार किया जा रहा है, वही उनका लक्ष्य है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

कुमारी ए.आर. अनघा और कुमारी राजेश्वरी

अनघा और राजेश्वरी ने बढ़ाया कल्याण आश्रम का मान

ऑपरेशन कालनेमि का असर : उत्तराखंड में बंग्लादेशी सहित 25 ढोंगी गिरफ्तार

Ajit Doval

अजीत डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के झूठे दावों की बताई सच्चाई

Pushkar Singh Dhami in BMS

कॉर्बेट पार्क में सीएम धामी की सफारी: जिप्सी फिटनेस मामले में ड्राइवर मोहम्मद उमर निलंबित

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

कुमारी ए.आर. अनघा और कुमारी राजेश्वरी

अनघा और राजेश्वरी ने बढ़ाया कल्याण आश्रम का मान

ऑपरेशन कालनेमि का असर : उत्तराखंड में बंग्लादेशी सहित 25 ढोंगी गिरफ्तार

Ajit Doval

अजीत डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के झूठे दावों की बताई सच्चाई

Pushkar Singh Dhami in BMS

कॉर्बेट पार्क में सीएम धामी की सफारी: जिप्सी फिटनेस मामले में ड्राइवर मोहम्मद उमर निलंबित

Uttarakhand Illegal Majars

हरिद्वार: टिहरी डैम प्रभावितों की सरकारी भूमि पर अवैध मजार, जांच शुरू

Pushkar Singh Dhami ped seva

सीएम धामी की ‘पेड़ सेवा’ मुहिम: वन्यजीवों के लिए फलदार पौधारोपण, सोशल मीडिया पर वायरल

Britain Schools ban Skirts

UK Skirt Ban: ब्रिटेन के स्कूलों में स्कर्ट पर प्रतिबंध, समावेशिता या इस्लामीकरण?

Aadhar card

आधार कार्ड खो जाने पर घबराएं नहीं, मुफ्त में ऐसे करें डाउनलोड

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies