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जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की पहली विदेश यात्रा के लिए साढ़े सात लाख की आबादी वाले अफ्रीकी सागर तटीय देश जिबूती को चुना गया तो लोग समझ न पाए होंगे कि उसका महत्व क्या है। पर मनीला में आसियान देशों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति की वार्ता में उभरा हिन्द-प्रशांत शब्द वह महत्व समझा गया। यह भारत के बढ़ते कद और प्रभाव का ही परिणाम है कि विश्व की आधी आबादी वाला सागर-क्षेत्रीय संसार आज हिन्द-प्रशांत क्षेत्र से जाना जाता है—जहां से भारत के सामरिक हित गहराई से जुड़े हैं। यह क्षेत्र जिबूती से लेकर जापान तक है, यह है जिबूती का महत्व।
यदि कहा जाए कि असियान की फिलीपीन्स में हुई 31वीं बैठक में प्रधानमंत्री मोदी का खास जलवा दिखा तो गलत न होगा। फिलीपीन्स में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को हिंदी में संबोधित करने से लेकर वहां जयपुर-फुट के द्वारा हजारों लोगों को नई जिंदगी देने वाले केंद्र में उनकी भेंट यदि मूल बैठक की 'प्रभा' बने तो ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका के साथ भारत का चतुर्भुज शक्ति संकुल अद्भुत सामरिक उपलब्धि कही जा सकती है। आसियान में 10 सदस्य देश हैं और भारत सहित इनकी आबादी 1.85 अरब है। यानी दुनिया की एक चौथाई आबादी। आसियान का कुल सकल घरेलू उत्पाद 8.8. अरब डॉलर है। भारत मेें कुल विदेशी निवेश का 17 प्रतिशत आसियान देशों से आना है और भारत ने इन देशों में 40 अरब डॉलर का निवेश किया है।
आसियान, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण खंड है। हालांकि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के बारे में 1952 में के.एम. पणिक्कर ने भी उल्लेख किया था, लेकिन जनवरी 2007 में सागर क्षेत्रीय समरनीति के विशेषज्ञ व भारतीय नौसेना के कप्तान गुरुदीप खुराना ने 'सागर क्षेत्रीय सामरिक दृष्टि और जापान की भूमिका' पर लिखे निबंध में हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र का व्यापक उल्लेख किया। उस शब्द का अगस्त 2007 में भारत यात्रा पर आए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने संसद में अपने भाषण में उल्लेख किया। यह भाषण शिंजो आबे द्वारा दारा शिकोह की 'दो सागरों का मिलन' अवधारणा के उल्लेख हेतु भी जाना जाता है। उसके बाद यद्यपि विभिन्न विश्लेषणों में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र शब्द का उपयोग हुआ, परंतु अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया चतुर्भुज की बैठक के समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पुन: इस शब्द के उपयोग से चीन में बेचैनी फैल गई और उसने कहा, ''हम आशा करते हैं कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में यह चतुर्भुज चीन के विरुद्ध नहीं होगा।''
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र वास्तव में तीन खंडों में बंटा है। पश्चिमी हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में पूर्वी अफ्रीका, लाल सागर, अदन की खाड़ी, फारस की खाड़ी, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और अंदमान सागर तो है ही, साथ ही मेडागास्कर, सेशेल कोमोरुस, मस्करेन द्वीप, मालदीव और छगोहा द्वीप समूह भी शामिल हैं। केंद्रीय हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में हिन्द महासागर तथा प्रशांत को जोड़ने वाले अनेक सागर, इंडोनेशियाई द्वीप समूह, दक्षिण चीन सागर, फिलीपीन्स सागर ऑस्ट्रेलिया का उत्तरी सागर तट तथा न्यूगिनी, पश्चिमी और केंद्रीय माइक्रोनेशिया, न्यू कैलेडोनिया, सोलोमन द्वीप, वनुआतु, फिजी और टोंगा जैसे देश आते हैं। तीसरे खंड, तीसरे हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के अधिकांश ज्वालामुखी बहुल द्वीप, मार्शल द्वीप से लेकर केंद्रीय व दक्षिण-पूर्वी पोलिनेशिय, ईस्टर द्वीप और हवाई द्वीप आते हैं। भारत विश्व का ऐसा एकमात्र देश है जिसके नाम पर एक महासागर—हिन्द महासागर है। अब दूसरा बड़ा महासागर प्रशांत भी भारत के नाम से जुड़ गया है। यह सागर क्षेत्र में भारत के नवोदय एवं भारतीय कूटनीति व समरनीति के प्रभावी मिलन का प्रतीक है। विश्व में अब सभी राजनयिक, राजनीति के आर्थिक एवं सामरिक घटनाक्रम पश्चिमी रंगशाला से हटकर पूर्व की ओर आ रहे हैं और भविष्य केवल सागर क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर अवलंबित है।
मनीला में आसियान की शिखर बैठक आतंकवाद, क्षेत्रीय विस्तारवाद व भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय जोड़-तोड़ के विरुद्ध भारत के नेतृत्व को प्रतिष्ठित एवं सर्वमान्य करने वाली तो सिद्ध हुई ही, साथ ही सागर के हिन्दू देवता वरुण के नए पराक्रमी उदय को भी एक संकेत दे गई। भारत की सुरक्षा, अखंडता एवं सैन्य तैयारियों के लिए हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र कितना महत्वपूर्ण है, इस बारे में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गत 9 अगस्त को कहा था कि दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती इस समय हिन्द-प्रशांत क्षेत्र से है। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र तथा हिन्द महासागर भारत की सागर क्षेत्रीय समरनीति के 'वरुण' हैं। भारत का नवोदय हिन्दू देवता वरुणोदय से संगमित है। -तरुण विजय
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