चीन/सत्ता पर एकाधिकार - ताजपोशी पर बात पोशीदा
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चीन/सत्ता पर एकाधिकार – ताजपोशी पर बात पोशीदा

by
Nov 6, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Nov 2017 10:11:56

गतांक से जारी
एक बार फिर, यह खासों में खास और उन पर एक महाशक्तिशाली बादशाह की चीनी कहानी बन चुकी है। दुनिया में इस समय शी जिनपिंग की एक बार फिर चीनी राष्ट्रपति के रूप में ताजपोशी की चर्चा  है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की हाल ही में संपन्न हुई पंचवर्षीय बैठक में यह फैसला लिया गया। शी आज चीन के इतिहास पुरुष बन चुके हैं, उनके विचारों को संविधान में जोड़ा गया है। (यह सम्मान अब से पहले सिर्फ माओ को मिला है) वे आज उस कतार में खड़े दिखाई दे रहे हैं, जिसमंे आज तक चीन के इतिहास में दो ही लोग खड़े हो पाए हैं। एक हैं, चीन की कम्युनिस्ट सत्ता के संस्थापक और भारत के अनेक वामपंथी धड़ों और नक्सलवादियों के महानायक माओ, और दूसरे हैं, माओ की आर्थिक नीतियों और प्रशासनिक अक्षमताओं से (लेकिन क्रूर दमन की विरासत से नहीं) चीन का पिंड छुड़ाकर आज के आर्थिक दैत्य चीन के निर्माता देंग जियाओपिंग।
  वैसे पार्टी जिनपिंग को 2016 में ही मूल नायक (कोर लीडर) की उपाधि दे चुकी है, जो इसके पहले सिर्फ माओ और देंग को दी गई थी।  फॉक्स बिजनेस चैनल से बात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि वैसे उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग कहा जाता है लेकिन अब उन्हें 'सम्राट शी जिनपिंग' भी कहा जा सकता है। वे चीन के राष्ट्रपति हैं, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के महासचिव हैं और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन हैं। यानी पार्टी, नीतियां, प्रशासन और सेना, सब पर पूर्ण स्वामित्व। दशकों से चीन इसी तरह की निर्बाध सत्ता में समाधान और सपनों को ढूंढता रहा है। इतना ही कम नहीं था, कि परंपरा की उपेक्षा करते हुए जिनपिंग के उत्तराधिकारी का नाम भी घोषित नहीं किया गया, जो 2022 में उनकी जगह लेता, यानी जिनपिंग जब तक चाहेंगे, कुर्सी पर बैठे रहेंगे। इस मामले में उन्होंने देंग को भी पीछे छोड़ दिया है जिन्होंने 10 वर्ष बाद कुर्सी छोड़ दी थी।
सत्ता के अभिजात्य गलियारे
चीन के बारे में एक बात जो चर्चाओं से बाहर रहती है, वह है डेढ़ अरब लोगों पर राज करने वाले कुछ सौ परिवारों का रसूख। जब चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले, और आर्थिक साम्राज्य का निर्माण शुरू हुआ तो इनकी कमान आई उन परिवारों के हाथों में, जिनका कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के निर्माण में योगदान रहा था, और जो माओ के 'सुधारों' का दौर देखने के बाद भी बचे और जमे हुए थे। जिन्होंने खुद को कभी भी शीर्ष की आंखों की किरकिरी नहीं बनने दिया और अपनी उपयोगिता सिद्ध किए रहे। इनमें एक और श्रेणी है बाद में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे कम्युनिस्ट नेताओं की। ये दो-तीन सौ 'अभिजात्य' परिवार व्यापार और सरकार में अपनी जड़ें और जकड़ बनाए हुए हैं। चीन के प्रधानमंत्री रहे वेन जियाबाओ इस अभिजातय तबके का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। वेन जियाबाओ की मां एक शिक्षिका थीं, और जैसे-तैसे उनका गुजारा होता था। बेटे के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बड़ी चीनी कंपनी में उनके नाम 120 मिलियन डॉलर का निवेश था। जियाबाओ की पत्नी, बेटा, छोटा भाई और उनका साढूभाई सब अरबपतियों की जमात में आ खड़े हुए। इन परिवारों के सदस्यों के फर्जी नामों पर संपत्ति, गुप्त साझेदारियां, रिश्तेदारों के नाम पर वाहन और निवेश हैं। इनकी कंपनियों को सरकारी सहायता भी दिल खोलकर मिलती है। यह तबका सत्ता पर निहाल रहता है और अब चाहे-अनचाहे जिनपिंग पर निहाल हो रहा है। पार्टी की तानाशाह सत्ता में ये सारी बातें अवश्यम्भावी हैं। एक उदाहरण के लिए, चीन की कंपनियां कुछ निश्चित सरकारी एजेंसियों की सहमति के बिना अपने शेयर्स को स्टॉक एक्सचेंज में नहीं जुडवा सकतीं। इन सरकारी एजेंसियों पर शीर्ष नेतृत्व का सीधा नियंत्रण रहता है। ऐसे में उद्योग जगत भी उन्हें उपकृत करने को हमेशा एक टांग पर खड़ा रहता है। शी जिनपिंग स्वयं ताकतवर राजनैतिक पृष्ठभूमि  रखते हैं। उनके पिता पार्टी के प्रोपेगैंडा चीफ, वाइसचेयरमैन और उप प्रधानमंत्री रह चुके हैं, जिन्हें बदनाम 'सांस्कृतिक क्रांति' के दौरान जेल में डाल दिया गया था।
विरोधियों में सन्नाटा  
भय इस सत्ता का एक अनिवार्य अस्त्र रहा है। माओ ने लाखों पार्टी कार्यकताअरं और करोड़ों चीनियों को क्रांति के नाम पर मौत के घाट  उतार दिया था। सत्ता में आने के पहले माओ अपने भाषणों में चीनी किसानों से कहा करते थे 'सोचने की हिम्मत करो, बोलने की हिम्मत करो, करने की हिम्मत करो।'' पर सत्ता में आने के बाद माओ ने ऐसी दहशत फैलाई कि आम चीनी सोचने से भी डरने लगा, शब्दश: ऐसा ही हुआ है। माओवाद का कहर झेलकर अपनी पूरी जवानी जेल में यातनाएं सहते गंवाने वाले एक चीनी का बयान दस्तावेजीकृत है। यह अभागा व्यक्ति उस जगह खड़ा था जहां एक अन्य व्यक्ति माओ की आर्थिक नीतियों की आलोचना कर रहा था। मुखबिरी पर इन सबकी गिरफ्तारी हुई। आलोचना करने वाले को मौत की सजा मिली। जब इसकी बारी आई तो सरकारी गवाह ने बतलाया कि यह व्यक्ति बोला तो कुछ नहीं, पर माओ की आलोचना के दौरान यह खड़ा-खड़ा अपनी गर्दन सहला रहा था। जन अदालत ने उसे भी ये कहते हुए श्रम शिविर में ठूंस दिया कि ''तुम अपनी गर्दन पर हाथ इसलिए फिरा रहे होगे कि तुम्हें लगा होगा कि यदि तुम भी चेयरमैन माओ के खिलाफ ऐसा बोले तो तुम्हंे तो फांसी ही हो जाएगी। यानी तुम भी चेयरमैन माओ के खिलाफ बोलना चाहते थे।'' माओ के उत्तराधिकारी देंग ने अपने इरादों का प्रदर्शन लोकतंत्र समर्थक थियेनआनमान चौक प्रदर्शनकारियों पर सेना के टैंक चढ़वाकर किया था, और पूरे चीन में सैकड़ों शहरों में हजारों चीनियों को सरेआम सेना के हाथों कत्ल करवा दिया था। जिनपिंग के पास भी अपनी उपलब्धियां हैं, उनके निजाम में, तीन लाख पार्टी कार्यकर्ता जेल में हैं। एक तिहाई सैन्य अधिकारियों पर गाज गिर चुकी है, इनमे से हजारों 'आत्महत्या' कर चुके हैं। भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों में जिन पार्टी के लोगों को धरा गया है, वे सब शी जिनपिंग के विरोधी खेमों में से आते हैं। दरअसल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर सत्ता घमासान की राजनीति चलती है, और शी ने अपने विरोधियों को निर्णायक शह-मात दे दी है। देंग की तरह ही जिनपिंग आर्थिक क्रान्तिकर्ता बनकर उभरे हैं। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की निरंकुश सत्ता के अंदर उनकी निरंकुश सत्ता स्थापित हो चुकी है, विरोधी खेमा हथियार डाल पूर्ण समर्पण कर चुका है। माओ और देंग को उन्होंने पार्टी की केन्द्रीय बैठकों में इस प्रकार से उद्धृत किया है जिसका अर्थ यह है कि वे ही संविधान हैं और वे ही चीन हैं। वैसे चीन की सत्ता स्वयं को लोकतंत्र के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने में खासी रुचि रखती आई है। वह दुनिया को बतलाना चाहते हैं कि लोकतंत्र की खूबियां उनके तंत्र में भी हैं और लोकतंत्र की खामियों से वे मुक्त हैं। इसके लिए उनका अपना विशाल प्रचार तंत्र काम करता रहता है। आप किसी चीनी राजनयिक से इस मुद्दे पर लंबा भाषण सुन सकते हैं।
'संविधान' संशोधन के मायने
शी के जिन विचारों को संविधान में जोड़ा गया है, उनमे 14 प्रमुख सिद्धांत हैं। इसके अंतर्गत, कानूनी सुधार, समाजवाद के चीनी संस्करण को लागू करना, पर्यावरण सुधार और सेना  पर कम्युनिस्ट पार्टी का सम्पूर्ण नियंत्रण (टेक्नोक्रेट्स को एक बार फिर दरकिनार कर दिया गया है) शामिल है। शी के विचारों को अब पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा, और वे चीन की 'संस्कृति' का भी हिस्सा बनेंगे।
यह पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का देवपूजन का अपना तरीका है। वैसे कम्युनिस्ट स्वयं को कितना ही नास्तिक घोषित करें, (रूस में) लेनिन-स्टालिन से लेकर, कंबोडिया के पोलपोट और रोमानिया के चाउशेस्कू तक और चीन में माओ एवं देंग के बाद अब शी जिनपिंग, भगवान की तरह पुजते आए हैं। शी के वन बेल्ट वन रोड  को भी संविधान में जोड़ा गया है। यानी अब आधारभूत ढांचे के विकास में अति अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य का विशेष ध्यान रखा जाएगा। जिनपिंग महत्वाकांक्षी हैं। उनके भाषणों में आता है कि चीन महान था, उसे विदेशियों ने नष्टभ्रष्ट किया, अब फिर से अपना स्थान हासिल करने का समय है। चीन के सरकारी    प्रचार तंत्र के शब्दों का सार निकाला जाए तो उसे इस प्रकार  बयान किया जा सकता कि माओ ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना बनाएंगे की। देंग ने उसे    समृद्ध बनाया। अब जिनपिंग उसे    महाशक्ति बनांगे।
माओ के उत्तराधिकारी की चुनौतियां
शी सामने सबसे कठिन चुनौतियां आर्थिक क्षेत्र से हैं। चीन पर सार्वजनिक और निजी ऋण का बोझ पहाड़ जितना हो चुका है। क्षेत्रीय असमानता और आर्थिक विषमता गंभीर बीमारी बनी हुई है, जबकि लाभान्वित चीनी और अधिक की आशा लगा रहे हैं, विशेष रूप से कल्याणकारी योजनाओं के रूप में उत्पादन और निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के अपने खतरे हैं, और उसे सेवाओं और उपभोग की तरफ ले जाकर संतुलित करने की जरूरत महसूस की जा रही है। यह कठिन काम साबित होने वाला है। विश्व निर्यात में 23 प्रतिशत की हिस्सेदारी के बावजूद मात्र 2 प्रतिशत चीनी कामगार आयकर देने की स्थिति में हैं। औसत उपभोक्ता का पचास प्रतिशत व्यय भोजन और वस्त्रों पर होता है। 49 प्रतिशत ग्रामीण आबादी इस पूंजीवादी चीन के सपने से कोसों दूर है। दूसरी ओर दुनिया को चौंकाने वाली आर्थिक वृद्धि के पीछे कर्ज का पर्वत खड़ा है जो दिन पर दिन बड़ा होता जा रहा है। आज जिनपिंग के चीन का राष्ट्रीय कर्ज और जीडीपी का अनुपात 257 प्रतिशत हो चुका हैं। आईएमएफ ने इसे लेकर चेतावनी जारी की हैं आंकड़े बता रहे हैं कि चीन की वृद्धि दर में 2012 से लगातार कमी आ रही रही है, जो 8 से घटकर 6.5 के आसपास आ गई है और 2022 तक 6 के नीचे आ जाएगी।
 भव्य राजमार्ग पर रपटने के खतरे
चीन के सारे सूत्र हाथ में आ जाने के बाद शी जिनपिंग अब हरेक चीज के लिए जिम्मेदार भी होंगे। माओ जैसी ताकत का मतलब माओ जैसी जनमानस पर पकड़ नहीं है। साठ और सत्तर के दशक में लोगों को बरगलाना आसान था। उस दौर के चीनियों के पास खोने के लिए कुछ नहीं था, आज का चीनी पहले से कहीं अधिक बाहरी दुनिया के संपर्क में है। दुनिया में चीनी पर्यटकों की संख्या में नाटकीय उछाल आयी है। एक आम चीनी के लिए शी की महत्वाकांक्षाएं दूर आसमान में उड़ते बुलबुले से अधिक नहीं हैं। आखिरकार यह उपभोक्तावाद का दौर है जिसके शी स्वयं प्रवर्तक है। बहुत कुछ है जो गलत दिशा में जा सकता है और  संतुलन कठिन काम है।     क्रमश:  -प्रशांत बाजपेई  

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