|
आज खोजी पत्रकारिता करनी है तो सिर पर कफन बांधकर चलना होगा। अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का संसार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। माल्टा की ब्लॉगर-पत्रकार डेफने कारुआना गलिजिया की हत्या कर दी गई। 53 वर्षीया गलिजिया बीते माह 16 अक्तूबर को घर से निकली ही थीं कि उनकी कार में विस्फोट हो गया। कार के परखचे उड़ गए और टुकड़े पास के खेतों में बिखर गए। गलिजिया उस टीम का हिस्सा थीं जिसने पनामा पेपर्स लीक किए थे। उन्होंने माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कट और उनकी पत्नी के विरुद्ध भी कुछ खुलासे किए थे। हालांकि मस्कट और उनकी पत्नी ने अजरबैजान के शाही परिवार से मिले धन को छिपाने और दूसरे देशों में बैंक खाते के आरोपों का खंडन किया है। गौरतलब है कि पनामा पेपर्स का भंडाफोड़ वाशिंगटन स्थित 'इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स' ने किया था, जिसमें विभिन्न देशों के 80 से अधिक पत्रकार शामिल थे। पनामा पेपर्स लीक में कई भारतीयों के नाम भी हैं, जिनके खिलाफ जांच चल रही है। पनामा पेपर्स लीक में दुनिया की कई बड़ी हस्तियों, जैसे-चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बहनोई, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री, ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. मार्गरेट थैचर के बेटे, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी अन्नान के बेटे आदि के नाम प्रमुख हैं।
गलिजिया मूलत: ब्लॉगर थीं और उन्होंने कभी किसी मीडिया घराने में काम नहीं किया। हत्या से दो सप्ताह पूर्व उन्होंने पुलिस शिकायत में जान से मारने की धमकी मिलने की बात कही थी। गलिजिया के खून के छींटे माल्टा के प्रधानमंत्री पर भी पड़ रहे हैं। वैसे उन्होंने हत्याकांड का सुराग देने वाले को 10 लाख यूरो इनाम देने की घोषणा की है। वहीं, गलिजिया के पति और तीनों बेटों ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग की है। उनका एक बेटा खोजी पत्रकार है। यूरोपियन यूनियन ने भी इस हत्या को गंभीरता से लिया है। इससे पहले बांग्लादेश में भी कई ब्लॉग लेखकों की हत्याए हो चुकी है। इन घटनाओं को स्थानीय इस्लामी आतंकियों ने अंजाम दिया। लेकिन यूरोपीय संघ के सदस्य देशों और अमेरिका में अब तक ऐसा मामला सामने नहीं आया। इस तरह का यह पहला मौका है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक-2017 में माल्टा का स्थान 47वां है, जबकि भारत 136वें स्थान पर है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का एक जाना-माना मानक है। इस सूचकांक में पहले स्थान पर नॉर्वे, दूसरे स्थान पर स्वीडन और अमेरिका 40वें स्थान पर है। दुनिया की राजनीति को हिला देने वाली सबसे बड़ी खबर खोजी पत्रकारिता करीब 40 साल पहले 'वाशिंगटन पोस्ट' के दो पत्रकारों बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नेस्टीन ने की थी। इन दोनों ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के खिलाफ 'वाशिंग्टन पोस्ट' में खबरें छापी थीं कि कि उन्होंने चुनाव जीतने की नीयत से विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के मुख्यालय में सेंध लगवाई। पहले तो निक्सन ने इन खबरों को झूठा बताया, लेकिन बाद में उन्हें सच स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा। भारत में खोजी पत्रकारिता में अरुण शौरी और सुचेता दलाल प्रमुख नाम हैं। शौरी ने एक अंग्रेजी अखबार में खबरें छापी थीं कि महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ए.आर. अंतुले कुछ ट्रस्ट बना कर धन की हेराफेरी कर रहे हैं। इन खबरों के बाद अंतुले को अपने पद से हटना पड़ा था। सुचेता दलाल ने हर्षद मेहता की मुंबई शेयर बाजार में वित्तीय गड़बड़ी की खबर छापी थी। बाद में हर्षद मेहता को सजा हुई और जेल में ही उसकी मृत्यु हो गई।
चूंकि डेफने कारुआना गलिजिया की हत्या एक यूरोपीय देश में हुई, इस कारण यह दुनियाभर में बड़ी खबर बनी। भारत में पिछले कुछ वर्षों में कई खोजी पत्रकारों की हत्या हुई है। परंतु उनमें से अधिकतर को हमारे अखबारों ने ही प्रमुखता से नहीं लिया। हाल के कुछ वर्षों में भारत में मारे गए कुछ खबर खोजी पत्रकारों के नाम और उनकी हत्या की तिथि इस प्रकार है:
' राजीव रंजन (हिंदुस्तान) सीवान, बिहार 13 मई, 2016
' करुणा मिश्र (जनसंदेश टाइम्स) सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश 13 फरवरी, 2016
' जगेंद्र सिंह (स्वतंत्र पत्रकार) शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश 8 जून, 2015
' एम. वी. एन. शंकर (तेलुगु अखबार आंध्र प्रभा) आंध्र प्रदेश 26 नवंबर, 2014
हालांकि इस सूची में उन लोगों के नाम शामिल नहीं हैं, जिन्होंने कभी कोई बड़ी खबर नहीं की या खोजी पत्रकारिता नहीं की। इन्होंने न तो कभी कभी अपनी जान को जोखिम में डाला या प्रभावशाली लोगों के सामने घुटने टेक दिए। यह भी बता देना प्रासंगिक होगा कि 24 अक्तूबर, 2002 को 'पूरा सच' अखबार के संपादक रामचंद्र छत्रपति की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। रामचंद्र छत्रपति पहली बार डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के विरुद्ध बलात्कार का मामला प्रकाश में लेकर लाए थे। 15 साल बाद राम रहीम को बलात्कार के मामले में सजा हुई और आजकल वह जेल में है। मारे गए पत्रकारों की उपरोक्त सूची में कन्नड़ साप्ताहिक लंकेश पत्रिके की संपादक गौरी लंकेश का नाम जान-बूझकर नहीं लिखा गया है। उनकी 5 सितंबर, 2017 को बेंगलुरू में हत्या कर दी गई थी। वे वामपंथी हिंसा और हिंदू विरोध की घोर प्रचारक थीं और कई एनजीओ भी चलाती थीं। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के साथ उनके अत्यंत गहरे संबंध थे। उन्होंने कभी कोई खोजी पत्रकारिता नहीं की। अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि उनकी हत्या संपत्ति विवाद के कारण हुई या किसी अन्य कारण से हुई। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अभी तक इस मामले में किसी को गिरफ्तार नहीं किया है।
गौरी लंकेश को एक आपराधिक मामले में अदालत ने 6 महीने की सजा भी सुनाई थी। हत्या के समय वे जमानत पर थीं। उनके हत्यारों को पकड़ने के लिए कर्नाटक सरकार ने इनाम की भी घोषणा की है, परंतु अभी तक कोई पकड़ा नहीं गया। गौरी लंकेश के परिवार वालों ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी, परंतु राज्य सरकार ने अभी तक इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया है। हालांकि गौरी लंकेश की हत्या अत्यंत निंदनीय और कायरतापूर्ण कृत्य है और राज्य सरकार को इस मामले को तुरंत सीबीआई को सौंप देना चाहिए अगर भारत में मारे गए पत्रकारों की सूची को ध्यान से देखा जाए तो पता चलेगा कि अधिकतर हत्या क्षेत्रीय भाषा के पत्रकारों की हुई हैं। जान जोखिम में डालने में अंग्रेजी के पत्रकार बहुत पीछे हैं। इन क्षेत्रीय भाषाओं में हिंदी भी शामिल है। मतलब यह है कि खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में देश की आशा क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकारों पर ही टिकी है। वैसे भी क्षेत्रीय भाषा के अखबार अंग्रेजी की तुलना में कई गुना ज्यादा बिकते हैं। क्षेत्रीय भाषाओं के चैनल भी अंग्रेजी चैनलों की तुलना में बहुत ज्यादा लोगों द्वारा देखे जाते हैं। – प्रो. (डॉ.) संतोष कुमार तिवारी
टिप्पणियाँ