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हिसार जिले के राखीगढ़ी गांव में खुदाई के दौरान मिले अवशेष इस ओर संकेत करते हैं कि यह गांव सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा और प्राचीन केंद्र है, पाकिस्तान स्थित मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नहीं
मनोज सिंह
ऊभी तक यही माना जाता है कि पाकिस्तान स्थित मोहनजोदड़ो और हड़प्पा ही सिंधुकालीन सभ्यता के मुख्य नगर थे। लेकिन हिसार स्थित राखीगढ़ी गांव इस मान्यता को चुनौती दे रहा है। हरियाणा के राखीगढ़ी गांव में खुदाई से जो सामने आया है, उसके मुताबिक इसे सिंधु-सरस्वती सभ्यता का सबसे बड़ा नगर माना गया है। पुरातत्वविद् और वैज्ञानिक तथ्य इस ओर इशारा कर रहे हैं कि राखीगढ़ी सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा और प्राचीन केंद्र है। राखीगढ़ी में इस बात के संकेत मिले हैं कि यह दुनिया की सबसे पुरानी जगह है जहां लोग लगातार रहे हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े और पुराने सिंधु घाटी सभ्यता वाले स्थलों में से एक है। नई खोज की अहमियत को बताते हुए हरियाणा पुरातत्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘‘ऐसे संकेत मिले हैं जिससे पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता कभी पूरी तरह विलुप्त ही नहीं हुई। 7500 साल पहले जो लोग यहां रह रहे थे, उनके वंशज अभी तक यहां रह रहे हैं।’’
पुरातत्वविदों का कहना है कि हड़प्पा सभ्यता का प्रारंभ इसी राखीगढ़ी से माना जा सकता है। वे लगभग इस निष्कर्ष पर पहुंच गए हैं कि सिंधु-घाटी सभ्यता की राजधानी हरियाणा के हिसार स्थित गांव राखीगढ़ी में थी। डक्कन कॉलेज (पुणे) के प्रिंसिपल प्रोफेसर वसंत शिंदे और हरियाणा पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए अब तक के शोध और खुदाई के मुताबिक, लगभग 5,500 हेक्टेयर में फैली यह राजधानी ईसा से लगभग 3,300 वर्ष पूर्व मौजूद थी। इन प्रमाणों के आधार पर यह तो तय हो गया है कि राखीगढ़ी की स्थापना उससे भी सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चुकी थी। प्रोफेसर शिंदे के अनुसार खुदाई में मिले नरकंकालों के डीएनए नमूनों का अध्ययन किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राखीगढ़ी में मिले अवशेषों का विश्लेषण चल रहा है। मई 2012 में ‘ग्लोबल हैरिटेज फंड’ ने इसे एशिया के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों’ की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है। अगर यह प्रमाणित हो गया तो सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा केंद्र मोहनजोदड़ो नहीं, बल्कि राखीगढ़ी गांव होगा। खनन प्रभारी शिंदे ने बताया कि इसका समय करीब 5,000-5,500 ई.पू. है, जबकि मोहनजोदड़ो में पाई गई सभ्यता का समय लगभग 4000 ई.पू. माना जाता है। इसके अलावा मोहनजोदड़ो साइट का क्षेत्र करीब 300 हेक्टेयर है, जबकि राखीगढ़ी में यह 550 हेक्टेयर से ज्यादा है।
राखीगढ़ी में कुल नौ टीले हैं। उनका नामकरण, शोध की सूक्ष्मता के मद्देनजर आरजीआर से आरजीआर-9 तक किया गया है। आरजीआर-5 बताता है कि इस क्षेत्र में घनी आबादी थी। सुनियोजित ढंग से बसे इस शहर की सभी सड़कें 1.92 मीटर चौड़ी थीं। यह चौड़ाई कालीबंगा की सड़कों से भी ज्यादा है। कुछ चारदीवारियों के मध्य कुछ गड्ढे भी मिले हैं, जो संभवत: किन्हीं धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी प्रथा के लिए प्रयुक्त होते थे। एक ऐसा बर्तन भी मिला है, जिस पर सोने-चांदी की परत है। इसी स्थल पर ‘फाउंड्री’ के भी चिह्न मिले हैं, जहां संभवत: सोना ढाला जाता होगा। इसके अलावा टेराकोटा से बनी प्रतिमाएं, तांबे के बर्तन और प्रतिमाएं, भट्ठी व श्मशान-गृह के अवशेष भी मिले हैं, जहां 8 कंकाल भी पाए गए हैं। इन कंकालों का सिर उत्तर दिशा की ओर था। आरजीआर-7 की खुदाई में मिले चार नर कंकालों में तीन पुरुष व एक स्त्री है। इनके पास से भी कुछ बर्तन और कुछ खाद्य-अवशेष मिले। ‘हाकड़ा वेयर’ नाम से चिह्नित अवशेष भी मिले हैं, जिनका निर्माण काल सिंधु घाटी सभ्यता और सरस्वती नदी घाटी के काल से मेल खाता है। आठ समाधियां व कब्रें भी मिली हैं, जिनका निर्माण काल लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व तक तो ले ही जाता है। ल्ल
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