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ऋषिभूमि हरियाणा, धर्मभूमि हरियाणा। सरस्वती जैसी पुण्य सलिला की उद्गम स्थली हरियाणा। जहां कुरुक्षेत्र है, ब्रह्म सरोवर है, ज्योतिसर है। जहां लोक-संस्कृति की अनुपम छटा साहित्य, संगीत, कला के माध्यम से आज भी पुष्पित-पल्लवित है। राखीगढ़ी में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमाण हैं, तो गुरुग्राम गुरु द्रोणाचार्य के शौर्य से गुंजायमान है। रणबांकुरों की घर-घर कथाएं हैं तो वीर सपूतों की यह धरती है। एक से एक रमणीय स्थान हैं तो हरे-भरे लहलहाते खेत हैं। जहां अन्नदाता उर्वरा माटी को पूजकर अन्न के भंडार भरता है तो शिल्पकार पत्थरों को जीवंत शिल्प से निखारता है। हरियाणा वह धरती है जहां सर्वाधिक ग्रंथों की रचना हुई, तो यही वह धरती भी है जहां पग-पग पर तीर्थ हैं, जिनमें से चार तो सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा से संबंधित हैं। यह वह धरती है जहां सूर्यग्रहण की छटा कुछ अलग ही दिखती है। यहां की हवा खेल और खिलाड़ियों में ऊर्जा का संचार करती है।
तो ऐसे हरियाणा के स्थापना दिवस (1 नवम्बर) पर इस बार प्रस्तुत है प्रदेश के गौरव की झलक प्रस्तुत करता पाञ्चजन्य का विशेष आयोजन
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