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हरियाणा का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। यह प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र रहा है। महाभारत का धर्मयुद्ध यहीं हुआ और भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश भी इसी पावन भूमि पर दिया। इसी प्रदेश में ऋषि-मुनियों ने पावन ग्रंथों की रचना की। सरस्वती नदी का उद्गम स्थल और ब्रह्मा से जुड़े तीर्थ स्थल इस भूमि को अर्जित करते हैं
डॉ. गणेश दत्त वत्स
विश्व में भारत ही ऐसा देश है, जहां भगवान अवतरित हुए और दुष्टों का संहार किया। उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या भगवान राम तो मथुरा भगवान कृष्ण की जन्म भूमि रही। इसी तरह हरियाणा की धरा को भी भगवान ने कर्म भूमि बनाकर इसे पवित्र किया है। यहां पवित्र नदियों के प्रवाहित होने के प्रमाण मिले हैं। इतिहास भी साक्षी है कि अनेक विकसित सभ्यताएं इसकी गोद में फली-फूलीं। प्रदेश सरकार हरियाणा के इसी गौरवपूर्ण इतिहास को आगे बढ़ा रही है।
हरियाणा प्राचीन काल से ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केंद्र रहा है। यहां भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धुरी होने के प्रमाण हैं। मनु के अनुसार, इस प्रदेश का आविर्भाव देवताओं से हुआ, इसलिए इसे ब्रह्मवर्त कहा गया। इसे ब्रह्मवर्त तथा ब्रह्मऋषि प्रदेश के अतिरिक्त ब्रह्म की ‘उत्तरवेदी’ नाम से भी जाना जाता रहा है। मान्यता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पूर्व कुरुक्षेत्र के पावन ब्रह्मसरोवर तीर्थ पर यज्ञ किया और सृष्टि की रचना की। यह भी मान्यता है कि मानवजाति की उत्पत्ति वैवस्त मनु से हुई, जो प्रदेश के राजा थे। ‘अवन्ति सुन्दरी कथा’ में इन्हें स्थाण्वीश्वर कहा गया है।
‘हरियाणा’ शब्द संस्कृत के हरि और अयन शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अभिप्राय भगवान का निवास होता है। एक अन्य शब्द उत्पत्ति के अनुसार हरियाणा शब्द की उत्पत्ति हरि अर्थात् हरित यानी हरा और अरण्य यानी जंगल से भी मानी गई है। इसके अलावा दिल्ली के नजदीक सारवान से मिले विक्रमी संवत् 1385 के शिलालेख पर उद्धृत है, ‘देशोऽस्ति हरयणाख्य:, पृथिव्यां स्वर्गसन्निभ: अर्थात हरियाणा नाम का एक देश या भू-भाग है, जो इस धरती पर स्वर्ग के समान है।’ वैदिक काल की दृष्टि से भी इस प्रदेश का गौरवपूर्ण इतिहास है। यह राज्य भरतवंश के शासकों का स्थान रहा है, जिनके नाम पर देश का नाम भारत रखा गया। इसी प्रदेश की भूमि कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का धर्मयुद्ध हुआ। पुरातन समय का अवलोकन करें तो हूणों के शासन के पश्चात हर्षवर्धन द्वारा 7वीं शताब्दी में स्थापित राज्य की राजधानी कुरुक्षेत्र के पास थानेसर रही।
अनादिकाल से ही कुरुक्षेत्र एक सार्थक तीर्थ स्थल रहा है। महाभारत युद्ध से पहले ही इस क्षेत्र की आध्यात्मिक प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस पवित्र भूमि में पुण्यवती सरस्वती नदी के पावन तट पर ऋषियों ने वेद मंत्रों का उच्चारण किया। ब्रह्मा, विष्णु, और शिव तथा इंद्र आदि देवताओं ने यहां यज्ञ किए और ऋषि-मुनियों ने तपस्या के साथ अलौकिक और विश्व का मार्गदर्शन करने वाले कई ग्रंथों की रचना की। भगवान कृष्ण के मुखारविंद से गीता का शाश्वत संदेश भी इसी पावन भूमि से विश्व को मिला। महाभारतकालीन कई तीर्थ स्थल आध्यात्मिक आस्था के केंद्र होने के साथ-साथ अब मुख्य विकसित शहर के रूप में भी प्रसिद्घ है। इनमें पृथुदक (पिहोवा), तिलप्रस्थ (तिल्पुट), पानप्रस्थ (पानीपत) और सोनप्रस्थ (सोनीपत) और गुरुग्राम गुरु द्रोणाचार्य के गांव के रूप में प्रसिद्ध हैं। इसके साथ ही, अग्रोहा धाम को महाराजा अग्रसेन ने बसाया और व्यापार का मुख्य केंद्र बनाया। उन्होंने सामाजिक समरसता और समाज के विकास के लिए एक पहल भी की जिसके अनुसार एक र्इंट और एक रुपया शहर के सभी एक लाख नागरिकों द्वारा दिया जाता था, इससे उस व्यक्ति को घर बनाने के लिये पर्याप्त र्इंटें और व्यापार शुरू करने के लिए पर्याप्त धन मिल जाता था। 48 कोस के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों की शृंखला है। कुरुक्षेत्र के इन तीर्थों को मुख्यत: चार दृष्टि से देखा जा सकता है- ब्रह्मयोनि तीर्थ (ब्रह्मसरोवर), ब्रह्मोदुम्बर तीर्थ (ब्रह्म स्थान), ब्रह्म तीर्थ और ब्रह्मवर्त तीर्थ। ये सभी ब्रह्मा से संबंधित हैं। इसी प्रकार वैदिक काल से संबंधित ब्रह्म सरोवर, सन्निहित सरोवर, स्थाणीश्वर महादेव, नाभि कमल, भद्रकाली मंदिर, अरुणाय तीर्थ, पृथुदकतीर्थ, रामहृदय तीर्थ, सन्निहित तीर्थ, लोकाद्वार तीर्थ, जमदाग्नि तीर्थ, पाराशर तीर्थ, गौतम ऋषि तीर्थ, शंखिनी देवी तीर्थ, वेदवती तीर्थ, अदिति तीर्थ, सोम तीर्थ, ययाति तीर्थ, धु्रवकुंड तीर्थ, अश्विनी कुमार तीर्थ, वराहा तीर्थ, खंघेश्वर तीर्थ, पुंडरीक तीर्थ, अन्य जन्म तीर्थ, सरक तीर्थ, वृद्ध केदार तीर्थ, श्री कुंज तीर्थ, दशाश्वमेघ तीर्थ, मानुष तीर्थ, सूर्यकुंड तीर्थ, फल्गु तीर्थ, कपिल मुनि तीर्थ सहित अनेक स्थान ऐसे हैं जिससे हरियाणा का गौरव और आध्यात्मिक संबंध पुष्ट होता है। लोग देश-विदेश से यहां आकर भारतीय संस्कृति के दर्शन करते हैं और हिन्दू जनमानस यहां स्नान कर अपना जीवन धन्य करता है।
फिर बहेगी सरस्वती
‘विलुप्त’ सरस्वती नदी की खोज में हरियाणा के कई स्थानों पर खुदाई के बाद एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। यमुनानगर आदिबद्री से महज पांच किलोमीटर दूर सात-आठ फुट की खुदाई में सरस्वती की जलधारा मिली है। जानकारों के अनुसार इसे सरस्वती नदी का जल माना जा रहा है। आदिबद्री से पांच किलोमीटर दूर मुगलवाली गांव में मनरेगा के तहत दर्जनों मजदूर काम कर रहे थे। करीब आठ फुट की गहराई तक खुदाई करने के बाद कुछ मजदूरों को अचानक जमीन से पानी की धारा निकलती दिखी। पहले थोड़ा पानी निकला, लेकिन जैसे ही और खुदाई की तो पानी की मात्र बढ़ती चली गई। यमुनानगर के तत्कालीन डीसी डॉ. एसएस फूलिया ने बताया कि 21 अप्रैल को सरकार ने मनरेगा परियोजना के तहत खुदाई शुरू कराई थी और अब सरस्वती नदी का अस्तिव उभरने लगा है।
सरस्वती नदी शोध संस्थान के संचालक जैन ने बताया कि यह एक सपने के सच होने जैसा है। दर्शन लाल जैन ने 1999 में सरस्वती की खोज का बीड़ा उठाया था। नदी को पुनर्जीवित करने के मौजूदा प्रयास नए नहीं हैं। इससे पहले 2006 में भी इस तरह के प्रयास हुए थे। फिर 2008 में गंभीरता दिखाई गई, लेकिन इस काम में तेजी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकारें बनने के बाद ही आई।
जैन की मानें तो 2006 में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने राजस्थान के जैसलमेर में खुदाई कर स्वच्छ पानी निकाला था। पता चला कि वह पानी सरस्वती का है। अप्रैल, 2008 में फिर बैठक हुई, जिसमें ओएनजीसी और इसरो के अलावा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के जियोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ शामिल हुए। भाजपा की सरकार आने के बाद 7 जून, 2015 को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती और 10 जून, 2015 को केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चिट्ठी भेजी गई। इसके बाद राज्य सरकार ने भी रुचि दिखाई। सरस्वती नदी शोध संस्थान का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला और इसका नतीजा सबके सामने है।
यमुनानगर स्थित वन क्षेत्र आदिबद्री सरस्वती का उद्गम स्थल है। सरस्वती को पुनर्जीवित करने के लिए सरस्वती हैरटेज डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया जा रहा है, जिसमें 20 सदस्य होंगे। इसमें सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष भी शामिल होंगे।
इस क्षेत्र में खुदाई के दौरान मिले अवशेषों और दूरसंवेदी उपग्रहों द्वारा लिए गए चित्रों से पता चलता है कि सरस्वती आज भी धरा के नीचे प्रवाहमान है तथा कुरुक्षेत्र, पिहोवा, हिसार, मोनजोदड़ो, राजस्थान से होते हुए अरब सागर में विलीन होती है। आदिबद्री में यह नदी पहाड़ों से निकलकर धरती में प्रविष्ट होती है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सरस्वती आदिबद्री से गुजरात के देसलपुर तक जाती है तथा हड़प्पा सभ्यता सरस्वती और सिन्धु नदियों के तटों पर ही विकसित हुई है। 1855 में फ्रांस के प्रतिष्ठित पुरातत्वविद् लुइस विवियन डि-सेंट मार्टिन ने अपने शोध में घग्गर नदी को सरस्वती नदी तंत्र की मुख्य नदी माना है। ल्ल
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