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17 सितम्बर, 2017
आवरण कथा ‘रोको रोहिंग्या’ उन लोगों को आईना दिखाती है जो रोहिंग्याओं को शरणार्थी कहकर भारत में बसाने की वकालत कर रहे हैं। इससे भी अजीब तब लगता है जब मीडिया में उजागर होता है कि जम्मू-कश्मीर में हजारों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमान मुस्लिम नेताओं की शह पर बसाए जा रहे हैं, जबकि राज्य में अनुच्छेद-370 के तहत किसी को भी बसने की इजाजत नहीं है। इस सबसे जो बात स्पष्ट होती वह यह कि वोट के लालची राजनीतिक दल ऐसे घुसपैठियों को पहले बसाते हैं, फिर उनका संरक्षण करके उनके हमदर्द बनकर वोट की फसल काटते हैं। इससे देश को, समाज को कितना भी खतरा हो, उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें तो अपने स्वार्थ से मतलब है, बस।
—पी.जयाप्रदा, कोठपेट (आं.प्र.)
कांग्रेस सहित विभिन्न सेकुलर राजनीतिक दलों के नेता रोहिंग्या मामले पर हायतौबा मचा रहे हैं और म्यांमार की आलोचना करते हुए नहीं थक रहे। ऐसे लोगों को म्यांमार की सख्ती तो दिखाई देती हैं लेकिन इससे पहले रोहिंग्या मुसलमानों ने बौद्धों के ऊपर कितने हमले किए, वह उन्हें दिखाई नहीं देता। दूसरी तरफ जो नेता भारत में इन्हें मानवता के नाते भारत में बसाने की बात कर रहे हैं, क्या वे यह बताएंगे कि कश्मीर के हिन्दुओं के दर्द पर उनके मुंह क्यों सिल जाते हैं? इसमें संदेह नहीं है कि म्यांमार ने अपनी अस्मिता और सुरक्षा के लिए जो किया, वह सही किया।
—बी.एल.सचदेवा,आईएनए मार्केट (नई दिल्ली)
जो समाज समय पर नहीं संभलता वह जरूर पीड़ा का शिकार होता है। बंगलादेशी घुसपैठिये के चलते पहले ही भारत का जनसांख्यिक संतुलन बिगड़ रहा है और अब रोहिंग्या मुसलमानों के कारण कई राज्यों में हालात बदले हैं। कुछ दिन पहले जयपुर में हुए फसाद को इसी रूप में देखना चाहिए। रोहिंग्या मुसलमान आपराधिक और देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। अगर इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो आने
वाले दिनों में यह देश के लिए बड़ा
खतरा बनेंगे।
—कृष्ण बोहरा, सिरसा (हरियाणा)
किसी भी हालत में देश की सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहिए। केंद्र सरकार ने इस संबंध में अपना मत भी स्पष्ट रूप से जाहिर कर दिया था। फिर भी सेकुलर मानवता की दुहाई देकर इन्हें देश में बसाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन लोगों को देश की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं है? जब कोई बड़ी घटना घटे तब ही ऐसे लोगों की नींद खुलेगी? आखिर तुष्टीकरण की राजनीति कब तक करेंगे? इन लोगों को अब समझ लेना चाहिए देश की जनता को उनकी नीतियां, कारनामे सब पता हैं। इसलिए तुष्टीकरण की राजनीति छोड़कर वह राष्ट्रहित की राजनीति करें तो अच्छा होगा, नहीं तो कुछ दलों की स्थिति और भी बदतर होने वाली है।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
रोहिंग्या मुसलमानों ने सैकड़ों बौद्धों को मारा। म्यांमार की सेना-पुलिस पर हमला किया। सरकारी प्रतिष्ठानों को तहस-नहस किया। यह क्रम काफी दिनों से चल रहा है। आखिर में तंग आकर म्यांमार सरकार को इनके खिलाफ कड़ा कदम उठाना पड़ा। क्योंकि कोई भी देश एक सीमा तक ऐसी आपराधिक गतिविधियों को सहेगा। फिर भी इन्हें पीड़ित कहा जा रहा है, जबकि हैं ये अपराधी। ऐसे लोगों की हमदर्दी चकमा बौद्धों के लिए क्यों नहीं होती? या सिर्फ मुसलमान के लिए हमदर्दी जागती है? दूसरा, सेकुलरों को एक बात और पता होनी चाहिए कि भारत विभाजन और इसके पूर्व विश्व में जितने शरणार्थियों को भारत ने पनाह दी उतना किसी देश ने नहीं दी।
—जमुना प्रसाद गुप्त, जबलपुर (म.प्र.)
देश के जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, बिहार, केरल, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बंगलादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों ने डेरा जमा रखा है। तुष्टीकरण की विषबेल को खादपानी देने वाले सियासतदानों ने इनका भरपूर संरक्षण किया और अब वह इन्हें एक हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। दरअसल यह सब देश को अशांत करने का षड्यंत्र है। जहां-जहां बंगलादेशी मुस्लिम रहते हैं, वहां के बदतर हालातों से देश पहले से ही परिचित है। अब और सहन करना देश की अखण्डता के लिए खतरा बनकर उभरेगा। समय आ गया है जब केन्द्र सरकार को इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए देश के विभिन्न राज्यों में बसे इन घुसपैठियों को खदेड़ना चाहिए।
—हरीशचंद्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
सेकुलरवादियों की दृष्टि में राष्ट्र से बड़ा वोट हो गया है। इसके लिए वे पाकिस्तान-बंगलादेश और चीन से भी मदद लेने में नहीं हिचकते हैं। उनकी गिद्ध दृष्टि सिर्फ किसी तरह अपने स्वार्थ पर टिकी होती है, वह जैसे ही पूरा होता है, उसके बाद उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं रह जाता। आज के नेताओं की यही हकीकत है। रोहिंग्या मसले पर वह वे बैंक के लालच में ही शोर मचा रहे हैं।
—डॉ. नंदलाल मेहता वागीश, गुरुग्राम (हरियाणा)
खोलते राज
कांग्रेस के नाम से, मैडम का था राज
खोल रहे हैं प्रणव दा, बहुत पुराने राज।
बहुत पुराने राज, मौन मोहन बतलाते
था विकल्प कुछ नहीं, कहां जाकर समझाते?
कह ‘प्रशांत’ मैडम इटली के नौकर सारे
सबके सम्मुख चचा केसरी थे दुत्कारे॥
— ‘प्रशांत’
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