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डॉ. राम मेहर अत्री
मुगल आक्रांताओं के आगमन और दिल्ली के भारत की राजधानी बनने से पहले तक भारतीय इतिहास में हरियाणा की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। अलबत्ता स्वतंत्रता आंदोलन में सूबे के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अग्रणी भूमिका निभाई।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में प्रदेश के अग्रणी नेताओं में राव तुलाराम का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रदेश के ‘राज नायक’ माने जाने वाले राव तुलाराम का जन्म 9 दिसंबर, 1825 को रामपुरा (अब रेवाड़ी) में एक राज परिवार में हुआ था। वे 14 साल की कच्ची उम्र में ही अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए मैदान में उतर गए थे। रामपुरा की कमान संभालने वाले इस वीर ने अपने क्षेत्र की कई सरकारी इमारतों पर कब्जा कर खुद को स्वतंत्र घोषित करते हुए राजा की उपाधि धारण की थी। उन्होंने दिल्ली के क्रांतिकारियों को धन एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने में सहायता प्रदान की थी। 16 नवंबर, 1857 को नरवाना में ब्रिटिश फौज से उनका सामना हुआ, जिसमें उनकी हार हुई। आगे की लड़ाई की रणनीति तय करने के लिए 1862 में वे तात्या टोपे से मिलने पहुंचे, पर उन्हें बंदी बनाए जाने के बाद सैन्य सहायता मांगने को ईरान और अफगानिस्तान चले गए। विदेशी मदद से उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई के लिए फौज भी तैयार कर ली थी, लेकिन इसी बीच 37 वर्ष की अल्पायु में 23 सितंबर, 1863 को काबुल में बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई। वहीं, 7 सितंबर, 1887 को कलिंगा में जन्मे पं. नेकीराम शर्मा ने 20 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। गोपाल कृष्ण गोखले और पं. मदन मोहन मालवीय के विचारों से प्रभावित नेकीराम 1907 में लाला लाजपत राय के देश से निर्वासन के समाचार से बेहद आहत हुए और प्रण किया कि जब तक ब्रिटिश शासन समाप्त नहीं हो जाता, तब तक चैन से नहीं बैठूंगा। ‘अभ्युदय’ समाचारपत्र में लेख प्रकाशित होने के बाद सरकार उन पर नजर रखने लगी। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन दिए, फिर मानसिक और शारीरिक यातना भी दी। नेकीराम आजीवन सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध लड़ते रहे। उन्हीं के प्रयासों से संयुक्त पंजाब में बेगार प्रथा खत्म हुई और अग्रवाल महासभा का गठन हुआ।
जींद के जुलानी गांव के हरफूल सिंह जाट को गोहत्या के विरुद्ध छेड़ी गई जंग के लिए जाना जाता है। उन्होंने गोहत्या के लिए कुख्यात टोहना के राजपूत मुस्लिम और कुरैशी की हत्या तो की ही, जींद, नरवाना, रोहतक के बूचड़खानों को नष्ट कर दिया। इससे खुश होकर नैन खाप ने उन्हें ‘सवाशेर’ की उपाधि दी। ब्रिटिश सरकार ने 1936 में फिरोजपुर में उन्हें फांसी दे दी। हरियाणा की लोक कथाएं हरफूल जाट की वीरता और गोहत्या के खिलाफ चलाए गए अभियान से अटी पड़ी हैं। करनाल में जन्मीं कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थीं। वे 1988 में नासा में शामिल हुईं और विभिन्न पदों पर रहते हुए कई शोध किए और दो बार अंतरिक्ष अभियान पर गर्इं। दूसरी बार 16 दिन तक अंतरिक्ष में शोध करने के बाद 1 फरवरी, 2003 को लौटते समय यान क्षतिग्रस्त हो गया और कल्पना चावला काल कवलित हो गर्इं।
फतेहाबाद जिले के गांव पीली मंदोरी में जन्मे पं. जसराज पहले ऐसे शास्त्रीय गायक हैं, जिनकी आवाज सातों द्वीपों पर गूंजी है। जब वे तीन साल के थे, तभी उनका परिवार हैदराबाद चला गया। पं. जसराज बहुत छोटे थे, तभी पिता का साया सिर से उठ गया। बड़े भाई पं. मनीराम ने उनका पालन-पोषण किया। बचपन में वे तबला बजाते थे। उन दिनों सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी उतना सम्मान नहीं दिया जाता था। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने तबला बजाना छोड़ दिया और प्रण किया कि जब तक शास्त्रीय गायन में विशारद नहीं हो जाएंगे, अपने बाल नहीं कटवाएंगे। इसके बाद उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला तथा आगरा के स्वामी वल्लभदास से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। 2012 में 82 वर्ष की आयु में उन्होंने अंटार्कटिका के दक्षिणी धु्रव पर प्रस्तुति देकर अनूठी उपलब्धि हासिल की। मेवाती घराने की खयाल शैली के इस महान गायक ने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में ‘हवेली संगीत’ पर व्यापक शोध कर कई नूतन बंदिशों की रचना की है। वे पं. जसराज प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक व्ही. शांताराम के दामाद हैं। *
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