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नाम : फूलमती (80 वर्ष)
कार्य : पादुकाओं की रखवाली
प्रेरणा : बांके बिहारी जी
अविस्मरणीय क्षण-परिवार का बिखराव
20 लाख रुपए किए गोशाला को दान
नाम : फूलमती (80 वर्ष)करोड़ों की संपत्ति का कोई मालिक अपने प्रिय बांके बिहारी के समीप बने रहने के लिए अगर पदवेशों की रखवाली करे तो सुनकर आश्चर्य होगा न! इससे बड़ा आश्चर्य तब होगा जब वह व्यक्ति अपनी पैतृक सम्पत्ति और पदवेशों की रखवाली से जोड़े लाखों रुपए गोशाला के लिए दान कर दे। पर यह हकीकत है। मूलरूप से मध्य प्रदेश के कटनी की निवासी 80 वर्षीया फूलमती की कहानी बड़ी दिलचस्प है। वे वर्षों से वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के नजदीक दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के पदवेशों की रखवाली करती हैं। इससे वे न केवल अपने बिहारी के नजदीक रहती हैं बल्कि श्रद्धालुओं से उन्हें इसकी एवज में कुछ धन भी मिल जाता है। अपनी पैतृक संपत्ति और पदवेशों की रखवाली से जोड़े धन से उन्होंने 20 लाख रुपये गोशाला को दान किए साथ ही अन्य पैसों से वृंदावन में कुछ निर्माण कार्य भी कराया है। फूलमती बताती हैं,''लगभग 40 साल की उम्र थी, तो भरापूरा घर था। कटनी के हीरागंज इलाके में परिवार की तीन कोठियां, तीन रेस्टोरेंट और मिठाई की दुकानें थीं। लेकिन पता नहीं, परिवार को किसकी नजर लग गई। 18 साल का बेटा और 22 साल की शादीशुदा बेटी गुजर गई। चारों तरफ से संकट ही संकट नजर आ रहा था। ऐसे में मुझे बांके बिहारी की शरण ही दिखाई दी और मैं घर-परिवार छोड़ वृंदावन आ गई।'' वे कहती हैं,''वृंदावन में शुरुआत के 15 साल मैंने सेठ हरगुलाल की हवेली पर ठाकुरजी का प्रसाद तैयार करने में अपनी सेवाएं दीं। लेकिन मन था कि बांके बिहारी के नजदीक कैसे रहा जाए। ऐसे में मंदिर के द्वार के पास श्रद्धालुओं के जूते-चप्पलों की रखवाली शुरू कर दी। श्रद्धालु मुझे इसकी एवज में कुछ धन भी दे जाते हैं। इसमें जो भी धन जीवनयापन के बाद बचता है, उसे ठाकुर जी की सेवा में ही समर्पित कर देती हूं।'' इसी बीच परिवार के बिखराव के बाद फूलमती के नाम लाखों की संपत्तिहो गई। लेकिन उन्होंने पदवेशों की रखवाली करना नहीं छोड़ा। उन्होंने अपनी कटनी स्थित कुछ जमीन को बेचा। जमीन और जूते-चप्पलों की रखवाली से मिले पैसों को जोड़कर 17 लाख रुपये वृंदावन स्थित फलाहारी बाबा की गोशाला को दान कर दिए। इसी तरह वंृदावन में कुछ और निर्माण कार्य भी कराया। वयोवद्धा फूलमती ने जीवन का हर रंग देखा है। सुख भी और दुख भी। विश्वास भी और धोखा भी। उनकी इच्छा है कि मैंने पदवेश सेवा इसलिए शुरू की, जिससे बांके बिहारी का दर न छूटे। मैं चाहती हूं कि बरसाने में राधारानी की स्थली पर भी गोशाला का निर्माण कराऊं। और यही सब करते-करते बिहारी अपने पास बुला लें।
– अश्वनी मिश्र
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