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लखनऊ के मनोज भार्गव अमेरिका में व्यवसायी हैं। वे नवोन्मेष से ग्रामीण इलाकों को विकसित करना चाहते हैं तथा इसके लिए बिजली व स्वच्छ पेयजल के लिए उपकरण, प्राकृतिक तरीके से खाद बनाने की विधि भी ईजाद की है
नाम : मनोज भार्गव (64 वर्ष)
कार्य : हंस पावरपैक का निर्माण
प्रेरणा : स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक विचार
अविस्मरणीय क्षण: आश्रमों में
सेवा-साधना
500 करोड़ रु. उत्तराखंड के विकास व
400 करोड़ रु. गरीबों पर खर्च की योजना
दुनिया को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने अपनी 99 प्रतिशत संपत्ति समाज के उत्थान में लगा दी। वे विकास की दौड़ में पिछड़े लोगों के बीच ऊर्जा, साफ पानी और कृषि अपशिष्टों से खाद बनाने वाली सस्ती तकनीक का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं अमेरिका में रहने वाले भारतीय मनोज भार्गव की।
हमारा उद्देश्य विकास की कतार में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति का सशक्तिकरण करना है। उनके हंस पावर पैक (अक्षय ऊर्जा प्रदान करने वाला साइकिलनुमा उपकरण), रेनमेकर फिल्ट्रेशन यूनिट और शिवांश खाद बनाने की विधि चर्चा में है। 14,000 रुपये की लागत वाला एक पावर पैक 12 साल की वारंटी के साथ उपलब्ध है और ग्रामीण इलाके में एक घर की बिजली की जरूरतें पूरी करने में सक्षम है। इसे रोजाना 4 घंटे सौर उर्जा से तथा एक घंटा साइकिल का पैडल चलाकर चार्ज किया जा सकता है। इससे पैदा होने वाली बिजली से 24 बल्ब और एक पंखा चलाया जा सकता है। वहीं, रेनमेकर फिल्ट्रेशन यूनिट गंदे पानी को पीने योग्य बनाती है, जबकि शिवांश खाद विधि के जरिये किसान खाद बनाकर कृषि लागत घटा सकता है। इस विधि से तैयार खाद में यूरिया और अन्य रासायनिक पदार्थ नहीं होते हैं।
भार्गव कहते हैं, ‘‘हमारा उद्देश्य विकास की पंक्ति में पीछे खड़े व्यक्ति का सशक्तिकरण करना है। जहां तक बिजली की बात है, पावर पैक का रखरखाव आसान तो है ही, इससे बिजली भी नहीं चुराई जा सकती है। स्वच्छ ऊर्जा विकल्प आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह तकनीक मोबाइल फोन की तरह क्रांतिकारी सिद्ध हो सकती है। हम लोगों को पीने लायक साफ पानी भी उपलब्ध करवाना चाहते हैं। इसके अलावा, शिवांश खाद विधि से 18 दिनों में खाद बन जाती है, जो एक ही मौसम में बंजर धरती को उपजाऊ बना सकती है। खेतों में इसके इस्तेमाल से कीटनाशक व पानी की कम जरूरत पड़ती है।’’
अपने प्रयास के बारे में भार्गव कहते हैं, ‘‘सरकार काम तो करना चाहती है, लेकिन अच्छे यंत्र ही उपलब्ध नहीं होंगे तो वह क्या कर सकती है।’’ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मे मनोज भार्गव का 12 वर्ष का आध्यात्मिक सफर भी है। इस दौरान उन्होंने ध्यान, सत्संग और हंसलोक के कई आश्रमों में सेवा भी की। उनका परिवार 1967 से अमेरिका में रह रहा है। 1990 में भार्गव भी परिवार द्वारा स्थापित प्लास्टिक उत्पादन का व्यवसाय संभालने के लिए वापस अमेरिका
लौट गए। – प्रस्तुति: प्रशांत बाजपेई
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