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संस्कृत के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। यह केवल साहित्य, दर्शन और अध्यात्म तक ही सीमित नहीं है। संस्कृत पूर्णतया प्रकृतिसम्मत भाषा है, जिसका वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार है। लेकिन इसे विज्ञान से न जोड़कर इसके व्याप को सीमित करने का प्रयास किया गया
पूनम नेगी
विश्व की सर्वाधिक परिमार्जित एवं व्याकरणसम्मत भाषा के रूप में संस्कृत की उपयोगिता को देश-दुनिया के शिक्षाविद् और भाषा विज्ञानी पहले ही स्वीकार चुके हैं। अब अपनी सुस्पष्ट और छंदात्मक उच्चारण प्रणाली के चलते ‘स्पीच थेरेपी टूल्स’ यानी भाषा के चिकित्सीय उपकरणों के रूप में यह भाषा दुनियाभर में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यहीं नहीं, हमारे भाषा विज्ञानी लंबे अरसे से एक ऐसी भाषा/लिपि की खोज में जुटे थे, जिसका संगणकीय प्रणाली में उपयोग कर उसका संसार की किन्हीं भी आठ भाषाओं में उसी क्षण रूपान्तरण हो जाए। अंततोगत्वा उनकी यह खोज संस्कृत पर आकर पूर्ण हुई। उन्हें एकमात्र संस्कृत ही ऐसी भाषा नजर आई जो उनके सभी मानकों पर पूरी उतरी। आज अनुवाद की दृष्टि से भी दुनियाभर में संस्कृत को सबसे उपयुक्त भाषा माना जा रहा है।
माना जा रहा है कि ‘नासा’ संस्कृत भाषा पर आधारित एक सुपर कंप्यूटर बना रहा है। इस परियोजना की समयसीमा 2025-2034 बताई जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो इसके बाद दुनियाभर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषायी क्रांति आ जाएगी। कंप्यूटर क्षेत्र में संस्कृत की उपयोगिता को लेकर अमेरिका, फ्रांस, जापान, आॅस्ट्रेलिया, जर्मनी और इंग्लैंड जैसे विकसित देशों में भी शोध हो रहे हैं। यही नहीं, एलोपैथी के तमाम दुष्प्रभावों के उजागर होने के बाद से आयुर्वेद के प्रति जिस तरह लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है, उस कारण भी संस्कृत की उपयोगिता काफी बढ़ चुकी है। कारण यह है कि आयुर्वेद पद्धतियों का ज्ञान सिर्फ संस्कृत में ही लिपिबद्ध है। वर्तमान समय में आॅक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और कोलंबिया जैसे 200 से भी ज्यादा प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है। संस्कृत की दूरगामी उपयोगिता के मद्देनजर दुनिया के करीब डेढ़ दर्जन देशों में संस्कृत विश्वविद्यालय खोले जा चुके हैं जहां अच्छी- खासी संख्या में शोध हो रहे हैं।
संस्कृत विश्व की सबसे पुरानी उल्लिखित भाषा है। माना जाता है कि विश्वभर में बोली जाने वाली छह हजार से अधिक भाषाओं में व्याप्त शब्दों का जन्म संस्कृत से हुआ है। मैथिली, हिंदी, उर्दू, कश्मीरी, ओड़िया, बांग्ला, मराठी, सिंधी, पंजाबी, नेपाली आदि भारतीय भाषाएं ही नहीं, ग्रीक, रोमन, लैटिन आदि कई विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से ही जन्मी हैं। हमें अपनी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत पर गर्व होना चाहिए। हमारा समग्र पूरा साहित्य संस्कृत में ही सृजित है। तीन हजार वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी। ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिनि ने अष्टाध्यायी नामक दुनिया का पहला सर्वाधिक व्याकरणसम्मत ग्रंथ लिखा था। वैदिक साहित्य ही नहीं, बौद्ध मत (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए। 1100 ई. तक संस्कृत समस्त भारत को राजभाषा के रूप में जोड़ने की प्रमुख कड़ी थी। मगर कहते हैं न कि किसी देश की जाति, संस्कृति, धर्म और इतिहास को नष्ट करना हो तो उसकी भाषा को सबसे पहले नष्ट करना चाहिए। इसीलिए पहले अरबों और फिर अंग्रेजों ने संस्कृत को समाप्त करने के लिए भारत पर अरबी और रोमन भाषा को थोपा। भारतीय संस्कृति को नष्ट करने में मैकाले ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने भारतीय शिक्षण-शैली को विनष्ट करने का जो षड्यंत्र रचा, दुर्भाग्य से हम उसमें बुरी तरह फंस गए। परिणामस्वरूप आजादी के बाद तथाकथित आधुनिक या आंग्लभाषी शिक्षा पद्धति से शिक्षित लोगों और तदयुगीन शासन व्यवस्था ने भ्रम और अज्ञानतावश संस्कृत को केवल पूजा-पाठ और धार्मिक कर्मकांड तक समेट दिया।
वास्तविकता यह है कि संस्कृत महज साहित्य, दर्शन और अध्यात्म तक सीमित नहीं है, अपितु इस भाषा में उन्नत आर्य संस्कृति में विकसित गणित, विज्ञान, औषधि, चिकित्सा, इतिहास, मनोविज्ञान, भाषा विज्ञान और खगोलीय विज्ञान आदि क्षेत्रों के महत्वपूर्ण ज्ञान तक समाहित हैं। आज यह विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा के रूप में स्थापित है। संस्कृत ऐसी भाषा नहीं है जिसकी रचना की गई हो। यह पूर्णतया प्रकृतिसम्मत भाषा है, जिसका वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार है। शोध विज्ञानियों के अनुसार संस्कृत भाषा की वर्णमाला ब्रह्मांड से निकलने वाली 108 ध्वनियों पर आधारित है। वेदों में इन ध्वनियों के रहस्य के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। ॐ की ध्वनि को नासा और इसरो ने भी स्वीकार किया है। भाषा विज्ञान के मुताबिक अरबी भाषा में कंठ और अंग्रेजी बोलने में केवल होंठों का इस्तेमाल होता है। लेकिन इस मामले में भी संस्कृत का स्थान विशिष्ट है। संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों और व्यंजनों को उच्चारण के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंत:स्थ और ऊष्म वर्गों में सुनियोजित तरीके से विभाजित किया गया है। इसीलिए संस्कृत भाषा मस्तिष्क को गति देती है।
संस्कृत के उच्चारण से मस्तिष्क का सेरेब्रल कॉर्टेक्स सक्रिय होता है तथा सीखने की क्षमता, याददाश्त और निर्णय लेने की क्षमता में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है। इस देवभाषा के अध्ययन और मनन से सूक्ष्म विचारशीलता और मौलिक चिंतन जन्म लेता है। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने संस्कृत को मात्र भाषा नहीं, सनातन संस्कृति की संजीवनी कहा है। शोध में पाया गया है कि जिन छात्रों की संस्कृत पर अच्छी पकड़ थी, उन्होंने गणित और विज्ञान में भी अच्छा प्रदर्शन किया।
वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत के तार्किक और लयबद्ध व्याकरण के चलते स्मरणशक्ति और एकाग्रता का विकास होता है। इसका ताजा उदाहरण है, गणित का नोबेल पुरस्कार कहे जाने वाले फील्ड्स मेडल के विजेता और भारतीय मूल के गणितज्ञ मंजुल भार्गव, जो अपनी योग्यता का श्रेय संस्कृत को देते हैं। वे कहते हैं कि संस्कृत के तार्किक व्याकरण ने उनके भीतर गणित की बारीकियों को समझने का नजरिया विकसित किया। यही वजह है कि विकसित देशों में लोग भारत की पुरातन वैदिक तकनीक और प्रौद्योगिकी की जानकारी हासिल करने के लिए संस्कृत का अध्ययन कर रहे हैं। फोर्ब्स पत्रिका के जुलाई 1987 अंक की एक रिपोर्ट में अत्यंत परिमार्जित एवं वैज्ञानिक व्याकरण के कारण संस्कृत को कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा बताया गया था। आज बहुआयामी उपयोगिता के कारण पूरी दुनिया संस्कृत की ओर दौड़ रही है। अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और जापान जैसे देश भरतनाट्यम, नटराज और श्री चक्र के महत्व पर शोध कर रहे हैं। दूसरी ओर हम भारतीय अंग्रेजी का अंधानुकरण करते समय यह भूल जाते हैं कि हमारे विश्व प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिकों को नवअनुसंधानों की प्रेरणा पुरा संस्कृत साहित्य से ही मिली थी। जगदीशचन्द्र बसु, चंद्रशेखर वेंकट रमण, आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय, डॉ. मेघनाद साहा जैसे विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक अपने शोधों के लिए संस्कृत को ही आधार मानते थे। इन वैज्ञानिकों का कहना था कि प्राचीन ऋषि-मुनियों ने विज्ञान में जितनी उन्नति की थी, वर्तमान में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
संस्कृत का प्रत्येक शब्द अनुसंधान के लिए प्रेरित करता है। आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय विज्ञान के लिए संस्कृत शिक्षा को आवश्यक मानते थे। जगदीशचन्द्र बसु ने अपने अनुसंधानों के स्रोत संस्कृत में भी खोजे थे और एक वैज्ञानिक होने के बावजूद डॉ. साहा स्वयं बच्चों को संस्कृत पढ़ाते थे। विमान विज्ञान, नौका विज्ञान से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हमारे ग्रंथों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार के और भी अनगिनत सूत्र हमारे ग्रंथों में समाए हुए हैं जिनसे आधुनिक विज्ञान को अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश मिल सकते हैं। अगर विज्ञान के साथ संस्कृत का समन्वय कर दिया जाए तो अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हो सकती है। जिस समय संस्कृत का बोलबाला था, उस समय मानव-जीवन ज्यादा संस्कारित था। यदि समाज को फिर से वैसा संस्कारित करना है तो हमें फिर से सनातन धर्म के प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का सहारा लेना ही पड़ेगा। विडम्बना है कि हमारे यहां चिराग तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। हमें यह भूल सुधारनी होगी। हमारी विलक्षण विरासत यह देवभाषा केवल अध्ययन-अध्यापन, साहित्य, संस्कार और कर्मकांड तक न सिमटे, वरन् तकनीक और प्रौद्योगिकी की भाषा बने। विश्व का सिरमौर बनने के लिए संस्कृत का पुनरुत्थान आज समय की महती आवश्यकता है। ल्ल
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