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भारत ‘फीफा अंडर 17’ विश्व कप की मेजबानी कर रहा है, इसकी घोषणा होने के बाद से ही भारत के खेलप्रेमियों, खासकर फुटबॉल प्रेमियों में एक नया जोश दिखता है। भारत की युवा टीम दमखम से भरपूर है, इसीलिए दुनिया की दिग्गज टीमों के सामने उसके प्रदर्शन को लेकर उत्सुकता बनी हुई है
प्रवीण सिन्हा
अच्छा लग रहा है, दुनिया के सबसे चर्चित खेल फुटबॉल के रंग में रंगे भारत को देखकर। यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने कई खेलों में धाक जमाते हुए खुद को अंतरराष्ट्रीय खेल जगत की एक ताकत के रूप में स्थापित किया है। लेकिन एक टीस जरूर थी कि तमाम खेलों में मजबूत दावेदारी पेश करने के बावजूद भारत दशकों से किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर फुटबॉल मैच नहीं खेला। अंतत: इंतजार की वह घड़ी समाप्त हुई और ‘फीफा-अंडर 17’ विश्व कप में भारत पहली बार उतरा है और इसकी मेजबानी भी कर रहा है। 6 अक्तूबर से शुरू हुए इस विश्व कप के आयोजन से पूरे देश में फुटबॉल के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ेगा और आने वाले चंद वर्षों में यही युवा टीम देश का परचम लहराएगी, इसमें कोई शक नहीं है।
फुटबॉल का खेल दुनिया के कोने-कोने में खेला जाता है। उस लिहाज से भारत जैसे विशाल देश के लिए फीफा रैंकिंग में करीब 100वें स्थान पर रहना और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी पहचान कायम न कर पाना अखरता रहा है। लेकिन सरकार, अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ), ‘साई’और खेल मंत्रालय के सामूहिक प्रयास से देश में फुटबॉल के प्रति युवाओं में जो जोश, जुनून, इस खेल से जुड़ने की ललक और विश्व की शीर्षस्थ टीमों से सीखने की भूख दिख रही है, यह किसी महान उपलब्धि से कम नहीं है। इस विश्व कप की मेजबानी दिल्ली, मुंबई, कोच्चि, कोलकाता, गुवाहाटी और मडगांव को मिली है। इनमें से कोलकाता, गोवा, केरल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में लोगों का शुरू से फुटबॉल के प्रति लगाव रहा है, पर दिल्ली व मुंबई में भी इसकी धमक कम नहीं रही।
इस बाबत, पूर्व अंतरराष्ट्रीय भारतीय फुटबॉलर एस.एस. हकीम का कहना है, ‘‘हमारे देश में फुटबॉल शुरू से लोकप्रिय खेल रहा है। जरूरत है तो बस इस खेल को व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाने की। हमने 21 सदस्यीय युवा टीम को तैयार करने के लिए देशव्यापी प्रतिभा खोज अभियान चलाया था, जिसमें 4-5 हजार युवा खिलाड़ियों का चयन किया गया। उसके बाद क्षेत्रीय स्तर पर 100-125 खिलाड़ियों का चयन हुआ जिसमें से अंतत: 40-50 चुने गए, जिन्हें पिछले दो वर्षों से इस विश्व कप के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था।’’
एक अन्य पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर व राष्ट्रीय महिला टीम के कोच अनादि बरुआ ने कहा, ‘‘इसमें कोई शक नहीं है कि एक जमाने में भारतीय फुटबॉल टीम विश्व की शीर्षस्थ टीमों में शामिल थी। लेकिन हमारे यहां इसका पेशेवर अंदाज में समुचित विकास नहीं हो पाया। पर अब भारत ने एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वापसी की है। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि चुने गए 21 युवा फुटबॉल खिलाड़ियों में जबरदस्त प्रतिभा है। इस टीम की तैयारियों पर करोड़ों रुपए खर्च करने के अलावा जर्मनी, ब्राजील, स्पेन और रूस जैसे देशों के दौरों पर अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का जो अनुभव इन्हें मिला है, उसके सकारात्मक परिणाम देखने को आपको जरूर मिलेंगे। हालांकि अमेरिका, कोलंबिया और पूर्व अंडर 17 विश्व चैंपियन घाना के साथ ग्रुप-ए में खेलना भारतीय टीम के लिए कतई आसान नहीं होगा, लेकिन हमारी टीम अगर एक भी उलटफेर कर दे तो वह बहुत बड़ी बात होगी।’’
अंडर 17 फीफा विश्व कप ही वह मंच है जिसने ब्राजील के नेमार व रोनाल्डिन्हो, जर्मनी के टॉनी क्रूस व मारियो गोटेत्ज, स्पेन के आंद्रेस इनिएस्ता व जावी हर्नांडेज और इकेर कैसिलास सहित दुनिया के दर्जनों महान फुटबॉलरों को विश्व फुटबॉल पर राज करने की राह दिखाई है। भारत के पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर हेनरी मेंजेस का मानना है, ‘‘पिछले दो-तीन वर्षों में सरकार और एआईएफएफ ने टीम को अनुभव दिलाने की हरसंभव कोशिश की है। पिछले साल एएफसी अंडर 16 टूर्नामेंट में सऊदी अरब को 3-3 से ड्रॉ पर रोकना और पिछले दिनों मैक्सिको दौरे पर चिली जैसी टीम के खिलाफ 1-1 से ड्रॉ खेलना खुद में एक बड़ी उपलब्धि है।’’
भारतीय टीम के पुर्तगाली कोच लुईस नॉर्टन डि मातोस ने पिछले दिनों टीम की तैयारी और संभावित परिणाम के बारे में ईमानदारी से स्वीकार किया था, ‘‘भारतीय टीम के पास खोने को कुछ नहीं और पाने को बहुत कुछ है। अंडर 17 विश्व कप वह मंच है जहां पर युवा खिलाड़ियों के पास बड़े सपने देखने का मौका होता है।’’
इसमें संदेह नहीं कि देश में फुटबॉल के प्रति एक उत्साहवर्धक माहौल बना हैै। एक मेजबान देश होने के नाते दर्शक हमारी टीम का उत्साह बढ़ाएंगे, खिलाड़ियों का हौसला बढ़ेगा और यही उत्साह भारत को विश्व फुटबॉल के मानचित्र पर आज नहीं तो कल, सम्मानित जगह अवश्य दिलाएगा। ल्ल
और यह है हमारी भारतीय टीम
आइए, जानें फीफा वर्ल्ड कप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले 21 युवा फुटबॉल खिलाड़ियों को-
सनी धालीवाल
भारतीय टीम के तीन गोलकीपरों में से एक हैं 6 फुट 5 इंच लंबे सनी धालीवाल। कनाडा में जन्मे और टोरंटो फुटबॉल क्लब अकादमी में अभ्यास करते रहे सनी जुनून की हद तक फुटबॉल से प्यार करते हैं। अपने देश भारत के लिए खेलने के लिए सनी ने अपना कनाडा का पासपोर्ट तक छोड़ दिया।
धीरज सिंह
भारतीय टीम के दूसरे गोलकीपर हैं मणिपुर के धीरज सिंह। 17 वर्षीय धीरज ने गोल पोस्ट की मजबूती से रक्षा करने की कला बखूबी सीखी है। वे 15 मैचों में भारत की युवा टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
प्रभसुखन गिल
लुधियाना के 16 वर्षीय प्रभसुखन गिल भारतीय टीम के तीसरे गोलकीपर हैं। स्थानीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन करते हुए प्रभसुखन ने भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए लंबा सफर तय किया है।
हैंड्री एंटोनी
कर्नाटक के शर्मीले-शांत स्वभाव के 17 वर्षीय हैंड्री एंटोनी फुलबैक स्थान पर खेलते हैं। एक गरीब परिवार से आए एंटोनी की प्रतिभा को पुर्तगाली कोच मारिया नोर्टन डि मातोस ने निखारा है। एंटोनी मजबूत रक्षण के अलावा आक्रमण में भी उतना ही दखल रखते हैं।
संजीव स्टैलिन
आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद 16 वर्षीय डिफेंडर संजीव स्टैलिन फ्री किक के विशेषज्ञ हैं। 29 मैचों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके संजीव एएफसी अंडर 16 चैंपियनशिप में पहली बार सुर्खियों में आए। चंडीगढ़ फुटबॉल अकादमी में अपनी प्रतिभा निखारने वाले संजीव भारतीय रक्षापंक्ति के मजबूत पहरेदार के रूप में नजर आएंगे।
बोरिस सिंह
मणिपुर के 17 वर्षीय डिफेंडर बोरिस सिंह अपनी चुस्ती-फुर्ती और ताकतवर शॉट्स के लिए जाने जाते हैं। बोरिस ने अपने स्कूली दिनों में टेनिस बॉल से फुटबॉल खेलना शुरू किया था। विरोधी से बॉल हथियाने में उन्हें महारत हासिल है। बोरिस में गजब का दमखम और फुर्ती है।
जितेंद्र सिंह
मूलत: उत्तराखंड के 16 वर्षीय डिफेंडर जितेंद्र सिंह कोलकाता में पैदा हुए। जितेंद्र के पास क्रिकेट और फुटबॉल में से किसी एक खेल को चुनने का विकल्प था। आर्थिक तंगी के बावजूद जितेंद्र ने अपने भाई के सहयोग से फुटबॉलर बनने का सपना पूरा किया। 28 मैचों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके जितेंद्र टीम के चर्चित खिलाड़ी हैं।
अनवर अली
प्रतिभाशाली डिफेंडर अनवर अली आज अगर अंडर 17 फीफा वर्ल्ड कप नहीं खेल रहे होते तो क्रिकेट में नाम कमा रहे होते। अनवर के पिता खुद एक फुटबॉलर रह चुके हैं, उन्होंने ही अपने पुत्र को फुटबॉल को करिअर बनाने के लिए प्रेरित किया। एक चरवाहा परिवार से आए अनवर अली ने पहले एक स्ट्राइकर के रूप में फुटबॉल खेलना शुरू किया था, लेकिन कोच मातोस ने उनकी 6 फुट ऊंची कद-काठी और प्रतिभा को देखते हुए डिफेंडर के स्थान पर खेलने की सलाह दी। आज अनवर टीम के एक मजबूत डिफेंडर के रूप में खुद को स्थापित कर चुके हैं।
नमित देशपांडे
17 वर्षीय डिफेंडर नमित देशपांडे महज 6 वर्ष के थे जब उनका परिवार मुंबई से अमेरिका चल गया था। नमित ने अमेरिका में ही फुटबॉल खेलना शुरू किया। नमित भी सनी की तरह विदेश में खेल रहे प्रतिभाशाली भारतीय फुटबॉलरों की चयन प्रक्रिया से गुजरते हुए भारतीय अंडर 17 वर्ल्ड कप टीम में शामिल हुए।
सुरेश सिंह
इंफाल के 17 वर्षीय मिडफील्डर सुरेश सिंह की पृष्ठभूमि खेल परिवार से है। उनके पिता एक बैडमिंटन खिलाड़ी थे जिन्होंने सुरेश को फुटबॉल खेलने को प्रेरित किया। 28 मैचों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके राइट विंगर सुरेश मैनचेस्टर यूनाइटेड प्रीमियर कप में खेलते हुए सुर्खियों में आए।
निनथोइंगनबा मीती
इंफाल में जन्मे 16 वर्षीय मिडफील्डर निनथोइंगनबा मीती एक गरीब परिवार से हैं। फुटबॉल को अपना करिअर बनाने से पहले वह ताइक्वांडो के शानदार खिलाड़ी थे।
अमरजीत सिंह कियाम (कप्तान)
भारतीय टीम के स्टार मिडफील्डर अमरजीत सिंह टीम के सबसे चर्चित खिलाड़ी हैं। महज 16 वर्ष की आयु में भारतीय अंडर 17 टीम का नेतृत्व कर इतिहास रचने को तैयार हैं अमरजीत। इंफाल में उनके परिजन मछली विक्रेता हैं। चंडीगढ़ फुटबॉल अकादमी के प्रशिक्षु अमरजीत अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर टीम का मनोबल बढ़ाने में सक्षम हैं। वे देश के लिए 30 मैच खेल चुके हैं।
अभिजीत सरकार
पश्चिम बंगाल के 17 वर्षीय मिडफील्डर अभिजीत सरकार ने भी गरीबी को दरकिनार कर देश के लिए खेलने का अपना सपना पूरा किया है। अभिजीत के अभिभावक और बचपन के कोच अशोक मोंडल ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए काफी त्याग किया है।
भारतीय टीम की तैयारी के दौरान यूरोपीय दौरे पर अभिजीत ने टीम के लिए सर्वाधिक गोल दागे थे। वे देश के लिए 19 मैच खेल चुके हैं।
कोमल थताल
सिक्किम के 17 वर्षीय मिडफील्डर कोमल थताल बुनियादी तौर पर कपड़े सिलने वाले परिवार से हैं। लेकिन वह फुटबॉल के जरिये टीम की रफूकारी में माहिर हैं। कोमल को फुटबॉल में लाने में उनके पिता ने अहम भूमिका निभाई जो खुद एक फॉरवर्ड के रूप में खेल चुके हैं। कोमल का दायां और बायां, दोनों पैर फुर्ती से चलते हैं, वे दोनों पैरों से पूरी मजबूती से शॉट लगाने का माद्दा रखते हैं। कोमल टीम के कप्तान अमरजीत के साथ सर्वाधिक 30 मैचों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
लालेंगमाविया
मिजोरम के एक व्यवसायी परिवार से आए 16 वर्षीय मिडफील्डर लालेंगमाविया बेहद प्रतिभाशाली फुटबॉलर हैं। अपने स्कूल के लिए सुब्रतो कप अंडर 14 टूर्नामेंट में खेलते हुए वे सुर्खियों में आए। लालेंगमाविया गोल करने में साथी खिलाड़ियों के लिए मददगार साबित होते हैं, जबकि उनमें अकेले दम भी गोल मारने का माद्दा है।
जैक्सन सिंह
मिनर्वा, पंजाब और चंडीगढ़ फुटबॉल अकादमी के प्रशिक्षु जैक्सन सिंह एक बेहतरीन मिडफील्डर हैं। देश के लिए तीन मैच खेल चुके मणिपुर के जैक्सन के सपनों की टीम रियल मैड्रिड है।
नोंगदंबा नाओरेम
इंफाल के 17 वर्षीय फॉरवर्ड खिलाड़ी नोंगदंबा नाओरेम अद्भुत प्रतिभा के धनी खिलाड़ी हैं। चार देशों के अंडर 17 टूर्नामेंट में चिली के खिलाफ बराबरी का गोल दागकर उन्होंने सबको प्रभावित किया था। देश के लिए तीन मैच खेल चुके हैं।
राहुल कैनोली
केरल के 17 वर्षीय फॉरवर्ड राहुल कैनोली स्थानीय स्तर के मैचों से उभरकर राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बने। राहुल को उनके चाचा शिबू ने देश के लिए फुटबॉल खेलने का उनका सपना पूरा करने के लिए प्रेरित किया। मैदान के अंदर बेहद फुर्तीले खिलाड़ी और लांग बॉल पर शॉट्स लगाने में माहिर राहुल देश के लिए चार मैच खेल चुके हैं।
मोहम्मद शाहजहां
मणिपुर के एक और दमदार मिडफील्डर हैं 17 वर्षीय मिडफील्डर मोहम्मद शाहजहां। शाहजहां को मिनर्वा कोल्ट्स की ओर खेलते हुए राष्ट्रीय टीम में स्थान मिला।
रहीम अली
पश्चिम बंगाल के 17 वर्षीय फॉरवर्ड रहीम अली मोहन बागान युवा वाहिनी से निकले खिलाड़ी हैं। रोनाल्डो और सुनील छेत्री को वह अपना आदर्श मानते हैं।
अनिकेत जाधव
मजबूत कद-काठी और दोनों पैरों से जोरदार शॉट लगाने में सक्षम 17 वर्षीय फॉरवर्ड अनिकेत जाधव टीम के आकर्षण का केंद्र हैं। पुणे फुटबॉल क्लब की ओर से खेलते हुए अनिकेत सुर्खियों में आए। 11 नंबर की जर्सी पहनने वाले अनिकेत फॉरवर्ड पंक्ति में कहीं से भी स्कोर करने में सक्षम हैं। वे देश के लिए दो मैच खेल चुके हैं।
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